आपके शहर के गली-कूचों में जिस मकान के खिड़की-दरवाजे टकटक लाल कागज या लाल रंग से सजे हों, तो समझ लीजिए वह मकान किसी चीनी सज्जन का बसेरा है. गोरे व मझौले कदकाठी के शांत व हंसमुख स्वभाव वाले चीनी लोग दिल्ली, मुंबई, चेन्नई समेत कोलकाता में भी अच्छी-खासी संख्या में रहते हैं. चीनियों के रीति-रिवाज भारतीय पर्व-त्योहारों की तरह ही हैं. कोलकाता के चीनी समुदाय के लोगों पर भी नये वर्ष का खुमार छा गया है. चंद्र-सूर्य राशियों पर केंद्रित चीनी कैलेंडर की शुरुआत जनवरी के अंत या फरवरी के आरंभ में किसी दिन से होती है.
यहां भी ‘लीप इयर’ का प्रावधान है. चीनी नववर्ष का यह रंगीन पर्व ‘चुन ची’ दरअसल बसंतोत्सव ही है. चीनी समुदाय के नर-नारी ‘चुन-ची’ (बसंतोत्सव) के रंग में भाव-विभोर हैं. चीनी समुदाय के लोग नये-नये कपड़े पहने अपने नये साल की बधाई ‘क्यूंग सी फेट छोय’ कहकर देते दिख रहे हैं. चीनी संस्कृति में भी पर्वो पर विशेष खानपान का महत्व है. ‘मा-फा’, ‘लैप च्यॉग’ और ङिांगा-पापड़ खाकर चीनी नये साल का आनंद उठाते हैं. चीनी महिलाएं अपने घरों में आटा, मैदा, गुड़, चीनी, तिल, छुहारा आदि से विविध व्यंजन बनाती हैं. इन्हें वे लोग सगे-संबंधियों व इष्टजनों से मिल-बांट कर खाते हैं. कोलकाता के चीनी भाइयों के लिए भी नया साल विशेष तोहफा है. घर की साउ उक (सफाई) जब शुरू हो जाये, तो समङिाए चुन ची (बसंतोत्सव) आ चुका है.
‘मा फा’ और ‘लैप च्यॉग’ जैसे पकवान का आनंद उठाते हुए युवक मौ-सी (सिंह का मुखौटा) पहने घर-घर जाकर नाचते-गाते-बजाते हैं. ड्रैगन व लायन के स्वांग करते युवकों के दल को लोग खुशी-खुशी लाल लिफाफे में भरकर रुपयों का शगुन यानी ‘हुंग पाव’ देते हैं. ढोल, ताशा मजीरे की धुन पर थिरकते युवा मदमस्त रहते हैं.तिरहट्टी बाजार और टेंगरा-धापा इलाके के चायना टाउन में विशेष समारोह होते हैं. इन चीनी बस्तियों में कहीं मेन्ड्रग तो कहीं हक्का (दो प्रजातियों के) लोग रहते हैं, जो बढ़ईगीरी, दंत-चिकित्सा व चर्म व्यापार के माहिर हैं. टेंगरा के चायना टाउन में ज्यादातर चायनीज रेस्तरां इन्हीं लोगों के हैं. यहां के ‘पी-मई’ नामक चीनी स्कूल में त्योहार का रंगारंग कार्यक्रम कई दिनों तक चलता है. कोलकाता के 86, पार्क स्ट्रीट के एक मकान में स्थित है ‘दि इंडिया चायनीज एसोसिएशन फॉर कल्चर’ जिसका काम है चीनी भाइयों को एक सूत्र में बांधकर रखना.