भारत ने नये साल की शुरुआत एक गौरवपूर्ण उपलब्धि के साथ की है. 13 जनवरी, 2014 को देश में पोलियो का एक भी मामला न मिले हुए तीन साल हो गये हैं. लेकिन लेप्रोसी उन्मूलन में ऐसा नहीं है. 2012 मे विश्व भर में लेप्रोसी के दो लाख, 32 हजार, 857 नये मामले सामने आये जिनमें 1,34,752 मामले भारत में पाये गये.
लेप्रोसी बीमारी, इससे जुड़ी भ्रांतियां व इसके समुचित इलाज पर विस्तृत जानकारी दे रही हैं दिल्ली की प्रतिष्ठित त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ शहला अग्रवाल.
मानव शरीर ईश्वर की खूबसूरत रचना है. शरीर यदि स्वस्थ हो तो आप समाज में आगे बढ़ते हैं और मान-सम्मान प्राप्त करते हैं. मगर कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं, जो हमें शारीरिक रूप से तो हानि पहुंचाती ही हैं, साथ ही मानसिक और सामाजिक रूप से भी आघात पहुंचाती हैं. ऐसी ही बीमारी लेप्रोसी (कुष्ठ रोग) है. यह विश्व की सबसे पुरानी एवं खतरनाक बीमारियों में से एक है. इसके नाम से ही लोगों के मन मे घृणा की भावना उत्पन्न हो जाती है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस बीमारी के कारण रोगी का शरीर विकृत हो जाता है. दूसरा कारण इससे जुड़ी कुछ गलत धारणाएं भी हैं.
क्यूं होता है लेप्रोसी
लेप्रोसी एक संक्रामक रोग है, जो माइकोबैक्टीरियम लेप्रे नामक बैक्टीरिया के कारण होता है. इस बैक्टीरिया की खोज 1873 मे नार्वे के एक फिजीशियन ‘गेरहार्ड हेंसन’ ने की थी. इन्हीं के नाम पर इसे ‘हेंसन का रोग’ भी कहा जाता है. यह बैक्टीरिया मुख्य रूप से मानव त्वचा, ऊपरी श्वसन पथ, तंत्रिकाओं, आंखों और शरीर के अन्य हिस्सों को प्रभावित करता है. इस रोग में शरीर गलने के कारण विकृत हो जाता है.
लेप्रोसी से बचाव एवं उपचार
वैसे रोगी जिनका उपचार नहीं किया गया हो, उनके क्लोज फिजिकल कॉन्टेक्ट में नहीं आना चाहिए. जो रोगी लंबे समय से चिकित्सा ले रहे हैं, उनसे संक्रमण का खतरा नहीं होता है. मल्टी ड्रग थेरेपी इसका सबसे सफल एवं असरदार उपचार है. इसके उपचार के लिए अधिकांश लोगों को हॉस्पिटल जाने की जरूरत ही नहीं होती है. इसका उपचार लेप्रोसी के प्रकार पर निर्भर करता है, जो 6 से 24 महीने तक चलता है. जितना अर्ली स्टेज में इसकी पहचान हो, उपचार आसानी से संभव है.