कोई यात्री शेड, तो कोई सड़क किनारे गुजारता है रात
गरीबों की हाड़ कंपा रही ठंड से राहत दिलाने के लिए इन दिनों कोई रहनुमा नहीं दिख रहा है. पेट की धधकती आग को बुझाने के लिए दिन हो या रात सड़क पर रात गुजारने वाले कामगारों के जख्म कड़कड़ाती ठंड में फिर से ताजा हो गयी है.
लेकिन, इन गरीब कामगारों के जख्मों पर मरहम लगाने वाले प्रशासनिक अमला की हालत तो यह है कि कामगारों की फिक्र छोड़ खुद के जख्मों पर मरहम लगाने की फिराक में गरीबों के लिए आवंटित अलाव की राशि ऊपर ही ऊपर गटक गये.
जी हां! यह सोलह आने सच है कि ठंड से कामगारों को राहत दिलाने के लिए आपदा प्रबंधन विभाग हर वर्ष 50 हजार रुपये की राशि अलाव जलवाने के लिए आवंटित करती है.
इसके मद्देनजर कैमूर जिले में अलाव जलाने के लिए छह प्वाइंट चुने गये थे, लेकिन विडंबना है कि जब जिला मुख्यालय में ही अलाव नहीं जले, तो प्रखंड मुख्यालयों का हाल क्या होगा. पछुआ हवा के साथ हाड़ कंपा देने वाली ठंड से रविवार की देर रात प्रभात खबर के संवाददाता ने गरीब कामगारों का हाल जान कर उन गरीबों से विशेष पूछताछ की.