देवघर: देवघर को जिला अस्पताल का दर्जा भले ही मिल गया हो, लेकिन अभी भी सरकार इसे अनुमंडल अस्पताल की तरह ही ट्रीट कर रही है. जिला अस्पताल में 21 डॉक्टरों का पद स्वीकृत है लेकिन आज तक इसका स्ट्रेंथ पूरा नहीं हुआ है. जबकि पिछले दिनों राज्य के स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र सिंह ने सदर अस्पताल विजिट के दौरान कहा था कि जिला अस्पताल का दर्जा सदर अस्पताल को मिला है.
जितने भी डॉक्टरों की जरूरत है, जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, सरकार देगी. पहले फेज में उन्होंने कम से कम सात नये डॉक्टर देने की बात कही थी लेकिन डॉक्टरों की संख्या बढ़ने के बजाय घट गयी है. दो फेज में ट्रांसफर तो हुआ है लेकिन देवघर सदर अस्पताल को कुछ खास नहीं मिला है. जो एक-दो डॉक्टर मिले हैं उन्होंने अभी तक योगदान ही नहीं दिया है. लेकिन देवघर से जितने डॉक्टरों का तबादला हुआ उन्हें विरमित कर दिया गया है. इस कारण जिला अस्पताल में डॉक्टरों की कमी हो गयी है.
देवघर जिला अस्पताल में पदस्थापित डॉक्टरों को मिलाकर अभी तीनों पाली में 11 डॉक्टर डय़ूटी कर रहे हैं, विडंबना है कि 11 में से आठ डॉक्टर प्रतिनियुक्ति पर हैं. आठों किसी न किसी प्रखंड में पदस्थापित हैं. इस तरह जिला अस्पताल प्रतिनियुक्ति पर ही चल रहा है.
दोपहर बाद अस्पताल में नहीं होती कोई जांच
सदर अस्पताल में दोपहर बाद किसी भी प्रकार की जांच नहीं होती है. चाहे मरीज कितना भी सीरियस हो, उन्हें बाहर की जांच घर या एक्सरे आदि का ही सहारा लेना पड़ता है. ऐसा नहीं है कि देवघर जिला अस्पताल में यंत्र नहीं है. सभी महंगे यंत्र मौजूद हैं लेकिन कहीं एक्सपर्ट की कमी तो कहीं यंत्र के लिए जरूरी सामग्री की कमी है. इस कारण मरीजों को लाभ नहीं मिल पा रहा है. देवघर शहर के लिए विडंबना यह भी है कि प्राइवेट में भी शाम होते ही सभी जांच घर, एक्स-रे क्लिनिक, अल्ट्रा साउंड क्लिनिक आदि बंद हो जाते हैं. गंभीर रूप से बीमार मरीज सुबह होने का इंतजार करते हैं या डॉक्टर उन्हें बेहतर इलाज के लिए रेफर कर देते हैं. देवघर सदर अस्पताल के डॉक्टरों के सामने एक दिक्कत यह भी है कि दोपहर से लेकर सुबह होने तक वे सिर्फ एडवाइस ही कर सकते हैं. क्योंकि मरीज की बीमारी जानने के लिए जरूरी जांच की सुविधा अस्पताल में नहीं है. ऐसे में जो डॉक्टर पदस्थापित हैं, वे परिजनों के कोप का भाजन बनते हैं. क्योंकि बिना मर्ज जाने भला डॉक्टर कैसे करेंगे इलाज.