।। दीपक कुमार मिश्र ।।
प्रभात खबर, भागलपुर
सुनिए, सुनिए, सुनिए.. आइए, हमारे पास आइए. हम आपको सांसद का टिकट के साथ-साथ मंत्री पद भी देंगे. वो भी मनमाफिक विभाग. जिस तरह कंपनियां सीजन में तरह-तरह के ऑफर देती हैं, उसी तरह चुनावी मौसम में राजनीतिक दलों की ओर से भी ऑफर दिये जा रहे हैं.
हमारे दल में शामिल होइए, हम आपको फलां जगह से टिकट देंगे. टिकट के साथ मंत्री पद भी देंगे. या फिर आयोग या बोर्ड में एडजस्ट कर देंगे. असल में राजनीतिक दलों में भी अब कारपोरेट कल्चर आ गया है. वह दिन दूर नहीं, जब कंपनियों की तर्ज पर वहां भी एमबीए पास लोग सीइओ बनेंगे.
अभी देश के दो प्रमुख राजनीतिक दलों- एक जो केंद्र की अपनी सत्ता बरकरार रखना चाहता है और दूसरा, जो कुरसी छीनना चाहता है, दोनों में ऑफर युद्ध छिड़ा हुआ है. एक दल सौरभ गांगुली को अपने खेमे में लाने का प्रयास करता है, तो दूसरे दल के लोग दूसरे दिन उनके पास पहुंच कर कहते हैं कि वहां मत जाइए, हम आपको उसके ऑफर से अलग और भी कई तरह की सुविधा देंगे. बस हां तो कहिए.
पूर्व नौकरशाहों को दलों में शामिल करने की पुरानी परिपाटी रही है. जीवन भर सरकारी कुरसी पर बैठ कर मलाई खायी, अब ‘माननीय’ बन कर मालपुआ छकना चाहते हैं. बिना कभी पार्टी का झंडा ढोये या सभा और बैठक में दरी समेटे और बिना पोस्टर-परचा चिपकाये भी मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री पद की शोभा बढ़ानेवाले पूर्व नौकरशाहों की कमी नहीं है.
दक्षिण भारत की राजनीति में रील लाइफ वाले लोगों का जलवा रहा है, लेकिन हिंदी पट्टी में तो अफसरों का ही जोर रहा है. इस आफर वॉर से वैसे लाखों कार्यकर्ता हतोत्साहित हो रहे है जिन्होंने अपने घर का चना-चबेना खाकर राजनीतिक खेत बनाया और फसल बोयी.
उसे बड़ा किया और जब फसल पक कर तैयार हुई तथा उसे काटने का वक्त आया, तो राजनीतिक दलों के नेताओं को अपने दधीचि सरीखे कार्यकर्ताओं पर भरोसा नहीं रहा. उन्हें तो फसल कटाई के लिए हाइटेक मशीन चलानेवाला चाहिए इसलिए वो अप-टू-डेट ‘मजदूर’ ला रहे हैं.
कार्यकर्ता व आम जनता भी जानती है कि कल इन्हीं साहब से मिलने के लिए अर्दली के पास पुरजी देनी होती थी, अब ‘जनता के सेवक’ से मिलने के लिए उनके ओएसडी की चिचौरी करनी होगी.
कार्यकर्ताओं की मेहनत पर बड़े नेताओं के बेटे-बेटियों से लेकर नाते-रिश्तेदार तक डाका तो डालते ही रहे हैं, अब इस ऑफर के जमाने में साहब जी लोग और फेस वैल्यू वाले लोग कार्यकर्ताओं का खून-पसीना तक चूस ले रहे हैं.
बस कार्यकर्ताओं को इतना ही सुनने को मिलता है कि आज हमारी राजनीतिक पार्टी जहां है वह लाखों लाख कार्यकर्ताओं की बदौलत है. लेकिन इन कार्यकर्ताओं के घर का चूल्हा कैसे जलता है, इसकी फिक्र किसी को नहीं.