संताल परगना का क्षेत्र आज भी विकास के लिए तरस रहा है. इस क्षेत्र में न तो बड़े उद्योग-धंधे हैं और न ही आमदनी के मजबूत साधन. अगर कुछ है, तो लगनशील मानव संसाधन व खनिज संपदा.
बावजूद इसके यहां का विकास समुचित विकास नहीं हो रहा. संताल परगना के संदर्भ में एक बात सच है कि किसी भी सरकार ने इस क्षेत्र पर कभी ध्यान नहीं दिया. आज हालत यह है कि ललमटिया व चितरा के कोयले से एनटीपीसी कहलगांव में बिजली उत्पादन होता है. लेकिन, संताल परगना के गांव-गांव तक बिजली नहीं है. शहरों में भी कम ही बिजली रहती है. हां, रखरखाव व मरम्मत के नाम पर हर साल लाखों रुपये बोर्ड जरूर खर्च करता है.
मार्च के नजदीक आते ही बोर्ड की ओर से बड़े-बड़े दावे किये जाते हैं. क्या ये दावे सिर्फ राशि की लूट के लिए होते हैं? ग्रामीणों को सपने दिखाये जाते हैं कि इस साल आपके गांव तक बिजली पहुंच जायेगी. यही नहीं गांवों में खंभे गाड़ दिये जाते हैं. तार जोड़ दिये जाते हैं. फिर भी बिजली नहीं आती है. हां, जोड़ा गया तार जरूर चोरी हो जाती है. विकास के नाम पर ग्रामीणों की भावना से यह खिलवाड़ कितना जायज है.
संताल परगना से कई बार लोगों की ऐसी भी शिकायत आती है कि बगैर बिजली के बिल भेज दिया जाता है. सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए. अब जबकि बिजली बोर्ड का बंटवारा होने जा रहा है.
इससे संबंधित प्रस्ताव कैबिनेट में रखा गया है. इसके बाद से क्या यह उम्मीद की जा सकेगी, अब गांवों तक बिजली पहुंच जायेगी? हालांकि वर्तमान सरकार संताल परगना में बिजली के लिए कई उपाय कर रही है. दुमका व सोनारायठाढ़ी में बिजली ग्रिड का शिलान्यास हो चुका है. वहीं दुमका ग्रिड को गोविंदपुर से जोड़ने की प्रकिया जारी है. इसके बाद संताल परगना में अबाधित बिजली मिलने लगेगी.
बिजली आयेगी तो उम्मीद की जा सकती है कि उद्योग-धंधे लगेंगे. बिजली के अभाव में एक दशक पहले देवघर से दर्जनों की संख्या में रोलिंग मिल बंद हो गयीं. कई मिल मालिक अपनी फैक्ट्री दूसरे राज्यों में लेकर चले गये. सरकार व बिजली बोर्ड के अधिकारियों को इस पर ध्यान देने की जरूरत है. बिजली के बगैर आखिर आज विकास की कल्पना कैसे की जा सकती है?