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‘महाभारतेर युद्धे’ का मंचन

– राणा अवधूत कुमार – बंगला नाटक का भोजपुरी संस्करण, अद्भुत, बेमिसाल सासाराम : आपने विभिन्न भाषाओं का अनुवाद संस्करण तो देखा-सुना होगा, लेकिन किसी भाषा का दूसरी भाषा में परिवर्तन और खुले मंच पर उसका मंचन, शायद डेहरी जैसे दूसरे शहरों में असंभव ही दिखता है. लेकिन, इस असंभव को संभव कर दिखाया आर्टिस्ट […]

– राणा अवधूत कुमार –

बंगला नाटक का भोजपुरी संस्करण, अद्भुत, बेमिसाल

सासाराम : आपने विभिन्न भाषाओं का अनुवाद संस्करण तो देखा-सुना होगा, लेकिन किसी भाषा का दूसरी भाषा में परिवर्तन और खुले मंच पर उसका मंचन, शायद डेहरी जैसे दूसरे शहरों में असंभव ही दिखता है. लेकिन, इस असंभव को संभव कर दिखाया आर्टिस्ट एसोसिएशन ऑफ बंगाल के कलाकारों ने.

बंगला में रचित नाटक ‘महाभारतेर युद्धे’ के भोजपुरी संस्करण का मंचन जब डालमियानगर के मॉडल स्कूल में हुआ, तो वहां बैठे सभी दर्शक दांतों तले अंगुली दबाने लगे. खास कर तब, जब दुर्योधन बने तपन दत्ता, भीम की भूमिका निभा रहे जग्गू ठाकुर को कहते हैं, ‘अरे जगुआ, तोरा बहिन के बियाह से लेके तोरा बाप के क्रिया-कर्म तक में हम दू सौ रुपया ना देले रहतीं त दुअरे से बरीयतिया भाग जाइतन’.

एक अन्य संवाद में जब भीम (जग्गू) से हारने पर फिर तैयार न होते दुर्योधन को देख दर्शक खुद दुर्योधन (मुखिया) को जमीन पर गिराने की बात करने लगे, ‘तोहरा बाबू के ई मंच ना ह ए मुखिया जी, ई महाभारत के मंच है, जहां तहरा भीम से हारेही के पड़ी’. इस नाटक में दुर्योधन की भूमिका निभा रहे तपन दत्ता गांव के मुखिया हैं, जो अपने धन बल-बाहुबल से ही गांव में नाटक का प्रोग्राम कराते हैं.

अपनी मरजी से पात्रों का चयन व पात्रों को अपने जूते के तलवे के नीचे रखते हैं. लेकिन, महाभारत का युद्ध नाटक में निदेशक ने जो समाज को संदेश देने का प्रयास किया है कि दुर्योधन चाहे जितना भी धनवान क्यों न हो जाये, शक्तिशाली क्यों न हो जाये, लेकिन अंत में उसे भीम से हारना ही है.

अन्याय के विरोध में जब जनता जगती है, तो शासकों को जनता के सामने झुकना ही पड़ता है. नाटक का विषय जरूर महाभारत के प्रसंग से लिया गया है, लेकिन इसमें छिपे संदेश की प्रासंगिकता आज भी बरकरार है. तमाम प्रयासों के बाद भी सत्य व धर्म की ही जीत होती है.

अभिनव कला संगम द्वारा आयोजित इस 23वें लघु नाटक प्रतियोगिता में बंगाल से आये कलाकारों की भोजपुरी भाषा में पकड़ देख यह कहना मुश्किल है कि वे भोजपुर-रोहतास-कैमूर के नहीं हैं. तपन दत्ता ने बताया कि नाटक के मंचन के लिए पिछले तीन महीनों से रियाज चल रहा था.

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