हमारा देश और हमारी लोकतांत्रिक शासन प्रणाली आज जिन ज्वलंत समस्याओं और मुद्दों से जूझ रही है, आपने उनका बेबाक वर्णन अपने लेख में किया है. 2014 के लोकसभा चुनावों की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है. सभी राजनीतिक दल अपने कार्यो एवं उपलब्धियों का बखान करते नहीं थक रहे हैं. भले ही आम जनता को इससे कुछ हासिल हुआ हो अथवा नहीं.
यह निर्विवाद सत्य है कि शासक वर्ग के तीन स्तंभों राजनेता, नौकरशाह तथा औद्योगिक घरनों ने अपने स्वार्थ के लिए इस देश को बदहाली के कगार पर खड़ा कर दिया है. राजनेता चाहे सत्ता पक्ष के हों या विपक्ष के (वामपंथियों को छोड़ कर), सभी सोची-समझी रणनीति के तहत देश के ज्वलंत मुद्दों एवं समस्याओं को दरकिनार कर अपनी राजनीतिक पैतरेबाजी से सत्तासीन होना चाह रहे हैं.
भारत की बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या पर कोई नेता अपना मुंह नहीं खोलता, क्योंकि उसे लगता है कि इससे उसका वोट बैंक गड़बड़ा जायेगा. आज देश में तीस वर्ष से कम के 6 करोड़ से ज्यादा नौजवान बेरोजगार हैं. देश आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रहा है. महंगाई जनता की कमर तोड़ रही है. भ्रष्टाचार मध्ययुगीन लूट-खसोट की संस्कृति की याद दिलाता है. अगर बाहर गया काला धन वापस आ जाये तो देश अनेक समस्याओं से मुक्त हो सकता है. लेकिन इस अकूत कालेधन के स्वामी ही भारतीय लोकतंत्र के स्वामी बन बैठे हैं. जाति-धर्म के नाम पर आरक्षण देकर नेताओं द्वारा समस्त देश को बांटने का कुत्सित प्रयास चल रहा है.
आज देशहित और देशाभिमान जैसे शब्द केवल शब्दकोष में रह गये हैं. हमारा देश आंतरिक और बाह्य, दोनों मोरचों पर इतना कमजोर हो गया है कि कोई भी छोटा-बड़ा देश, चाहे चीन हो या अमेरिका, अथवा पाकिस्तान हो या बांग्लादेश हमारी संप्रभुता एवं अस्मिता का मान-मर्दन करने से गुरेज नहीं कर रहा है. हरिद्वार प्रसाद सिंह, टेकारी रोड, पटना