कोलकाता: पश्चिम बंगाल में रोजगार उपलब्ध कराने में अहम रोल अदा करने वाला जूट उद्योग संकट में है. जूट बैग की मांग में कमी से 50 हजार से ज्यादा जूट मिल श्रमिक बेरोजगार हो चुके हैं. स्थिति नहीं सुधरी तो इतनी ही संख्या में और मजदूर बेरोजगार हो सकते हैं. जूट मिल मालिकों की संस्था इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन (इज्मा) ने यह आशंका जतायी है.
एसोसिएशन की ओर से गुरुवार को कहा गया कि केंद्र सरकार ने चीनी के लिए जूट बैग का इस्तेमाल 40 फीसदी से घटा कर 20 फीसदी कर दिया है. अनाज में भी जूट बोरों का इस्तेमाल 90 फीसदी तक सीमित कर दिया गया है. इसका जूट उद्योग पर बुरा असर पड़ रहा है.
जूट उद्योग के लिए जीवन-मरण की स्थिति पैदा हो गयी है. राज्य में जूट उद्योग से 2.5 लाख श्रमिक और 40 लाख किसान सीधे जुड़े हैं. जूट बैग की बिक्री में कमी के कारण 50 हजार श्रमिक पहले ही बेरोजगार हो चुके हैं. स्थिति नहीं बदली तो अगले तीन माह में 50 हजार श्रमिक और बेरोजगार हो जायेंगे. इज्मा के अध्यक्ष राघव गुप्ता व पूर्व अध्यक्ष संजय कजारिया सहित अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों ने गुरुवार को संवाददाता सम्मेलन में जूट उद्योग की परेशानियां गिनाईं. कजारिया ने कहा कि प्लास्टिक लॉबी के दबाव में केंद्र सरकार ने जूट पैकेजिंग कम करने का फैसला लिया है.
पिछले वर्ष गलत तथ्य देकर ज्यादा प्लास्टिक बैग की खरीदारी हुई थी और इस वर्ष उसका इस्तेमाल हो रहा है है. उन्होंने कहा कि 2010 तक जब केंद्र सरकार पर बंगाल सरकार का दबाव था तो जूट उद्योग के पक्ष में फैसला लिया गया था, लेकिन अब चूंकि दबाव नहीं है, इस कारण बंगाल के हितों के खिलाफ फैसले हो रहे हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित राज्य के अन्य राजनीतिक दलों से अपील की कि वे केंद्र सरकार पर फैसले पर पुनर्विचार के लिए दबाव बनायें. इसके साथ ही राज्य सरकार नयी जूट नीति बना रही है. इस जूट नीति के संबंध में इज्मा ने भी सुझाव दिया है. जन वितरण प्रणाली में जूट बैग के इस्तेमाल का आग्रह किया गया है. उल्लेखनीय है कि बंगाल में 62 जूट मिलें हैं. इनमें दो स्थायी रूप से बंद हैं तथा गौरीपुर जूट मिल बीआइएफआर में शामिल है. लुमटेक्स, गोंदलपाड़ा तथा नदिया जूट मिल भी फिलहाल बंद है.
चीनी के लिए जूट बैग का इस्तेमाल सीमित किया
इज्मा अध्यक्ष राघव गुप्ता ने कहा कि केंद्र सरकार की कैबिनेट कमेटी ने 28 नवंबर, 2013 को जूट पैकेजिंग मेटेरियल एक्ट, 1987 में संशोधन का निर्णय किया है. इस कानून के तहत चीनी और अनाज में 100 फीसदी जूट पैकेजिंग अनिवार्य थी. लेकिन अब इसे घटा कर क्रमश: 20 फीसदी और 90 फीसदी कर दिया गया है. इससे जूट बोरों की मांग कर हो गयी है. उन्होंने कहा कि इस संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर वस्त्र मंत्रलय तक को पत्र दिया गया है, लेकिन कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला है. जूट आयुक्त को भी पत्र दिया गया है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है. उन्होंने कहा कि यह गलत तथ्य दिया जा रहा है कि मांग के मुताबिक जूट मिलें जूट उत्पादन करने में सक्षम नहीं है. बंगाल की जूट मिलें 21 लाख टन जूट उत्पादन की क्षमता रखती हैं.