19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बीज बोओगे तो पेड़ निकलेगा ही

ज्ञान का भंडार तो हमारे भीतर समाया है और हमें केवल अंदर में बसे उस प्रकाश को पूरी तरह से उजागर करने की आवश्यकता है. असली ज्ञान बाहर से थोपने से नहीं आता, वह तो अपने अंदर से प्रस्फुटित होता है. अगर आप बेहतर कर्म करते हैं, तो उसका फल अवश्य ही मीठा होता है.जो […]

ज्ञान का भंडार तो हमारे भीतर समाया है और हमें केवल अंदर में बसे उस प्रकाश को पूरी तरह से उजागर करने की आवश्यकता है. असली ज्ञान बाहर से थोपने से नहीं आता, वह तो अपने अंदर से प्रस्फुटित होता है. अगर आप बेहतर कर्म करते हैं, तो उसका फल अवश्य ही मीठा होता है.जो कर्म तुमने पहले किया था, उसी की बदौलत आज तुम्हें फल मिल रहा है.

नाम, रूप और आकार के इस सीमित संसार में जिस दिन हम पैदा हुए, उसी क्षण से हम कर्म के नियमों के अधीन हो गये. कर्म के मूलभूत सिद्धांत के अंतर्गत ही सारी सृष्टि चलती है. जो भी कर्म करोगे, उसका फल अवश्य मिलेगा. बीज बोओगे तो पेड़ निकलेगा. उस पेड़ से फिर फल निकलेगा, फल में बीज होगा और यह निन्यान्बे का चक्कर चलते ही रहेगा.

कर्मो का चक्रव्यूह
जन्म, मृत्यु और पुनजर्न्म भी इसी कर्म के आधार पर तय होता है. यह जान लेना आवश्यक है कि कर्म की परिभाषा केवल शारीरिक स्तर पर होनेवाले गतिविधियों तक ही सीमित नहीं, बल्कि मानसिक, शारीरिक व भावनात्मक आदि स्तरों को भी सम्मिलित करती है. वाणी, विचारों, भावनाओं, संबंधों और आसक्तियों के द्वारा भी कर्म बनते हैं. एक से दूसरे का जन्म होता है और इनके आपसी चक्रव्यूह से निकल पाना बिल्कुल असंभव-सा लगता है. धीरे-धीरे पल-दर-पल कर्म का संचय होते जाता है.

कर्म से फल बनता है और उस फल से दुबारा नये कर्म का निर्माण होता है. देर-सबेर हमें इन कर्मो के भार का अनुभव होने लगता है. तुम्हारी स्मृति में हो या न हो, लेकिन जो कर्म तुमने पहले किया था, उसी की बदौलत आज तुम्हें फल मिल रहा है. तुम आज करोगे, उसी का फल तुम्हें कल मिलेगा. जो कर्म तुमने किये हैं, उनको तो भोगना ही पड़ेगा. उन्हें बदलना संभव नहीं है, परंतु अपने भविष्य का निर्माण जरूर अपने हाथ में है, क्योंकि आज जो कर्म हम करने जा रहे हैं, वे ही हमारे भविष्य को तय करेंगे. इसलिए कर्म करते समय विवेक का इस्तेमाल करें. कर्म करते समय विवेक का इस्तेमाल कैसे करें? योग का उद्देश्य, बल्कि मैं कहूंगा कि केवल योग ही नहीं, जीवन का भी यही उद्देश्य है. वास्तव में ज्ञान का भंडार तो हमारे भीतर ही समाया है और हमें केवल अंदर में बसे उस प्रकाश पर चढ़े अनेकानेक पदों को एक-एक करके हटाने की जरूरत है और उस प्रकाश को पूरी तरह से उजागर करने की आवश्यकता है.

योग : कर्मसु कौशलम्
इस घनी अंधेरी रात में आशा की किरण है, और उसका नाम है-कर्मयोग. भगवद्गीता में योग की व्याख्या दी है-योग : कर्मसु कौशलम. कार्य में निपुणता योग ही कहलाता है. मतलब कि जब भी तुम कोई कार्य निपुणता और उत्कृष्ट रूप से करते हो, तो वह कर्मयोग है. कैसे?

क्योंकि कार्यकुशलता तभी संभव है, जब तुम अपने आपको पूरी तरह उस काम में झोंक देते हो. संपूर्ण एकाग्रता से जब कोई काम किया जाता है, तब वह अनायास ही सर्वोत्तम ढंग से होता है. लेकिन ऐसा तो कभी-कभार ही हो पाता है, क्योंकि प्राय: हमारा मन विक्षिप्त ही रहता है. परिणामत: हमारे सभी कार्य भी आधे-अधूरे ही रहते हैं.

काम करते समय हमारा मन या तो उस कार्य के फल के बारे में सोचते रहता है या कहीं और ही रहता है. मतलब मन वर्तमान में एकाग्र रहने के बदले भविष्य में उड़ान भरते रहता है या अतीत में गोते खाते रहता है. परिणामत: हमारे सभी कार्यो में त्रुटियां रहती हैं. अगर गौर करोगे तो जब भी तुम्हारे मन ने एकाग्र होकर कोई भी काम किया है, भले ही वह संगीत की रचना हो, काव्य रचना हो या चाहे वह खाना बनाना या बच्चों की देखभाल करना हो, तब वह कार्य निपुणता और कुशलता से होता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें