बच्चों को सही रास्ते पर लाने का, समझाने का बड़ों का फर्ज होता है. बच्चे अपने भविष्य को लेकर इतने गंभीर नहीं होते, लेकिन माता-पिता यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि बच्चों के लिए क्या जरूरी है और क्या जरूरी नहीं..
वंशिका बारहवीं क्लास और झरना दूसरी क्लास में पढ़ती थी. राशि ने वंशिका और झरना से अपना सिलेबस लाने को कहा. दोनों अपना-अपना सिलेबस ले आयीं, लेकिन वंशिका ने कहा- मम्मा अभी परसों दादी मां का जन्मदिन है, तो क्यों न हम दादी मां के जन्मदिन के बाद ही तैयारी शुरू करें. इसका मतलब तुम लोगों का पढ़ने का मन नहीं है? राशि ने पूछा. नहीं ताई जी, ये बात नहीं है. झरना ने कहा. तो क्या बात है मेरी बिटिया रानी. राशि ने बड़े दुलार से पूछा. ताई जी, वो क्या है कि दादी मां का हैप्पी बर्थ डे है न, अगर हम पढ़ेंगे तो फिर बर्थ डे की तैयारी कैसे करेंगे! झरना ने बड़ी मासूमियत से कहा. ओह..हो, तो हमारी नन्ही गुड़िया ये तो बताये कि वो क्या तैयारी करेगी? राशि ने उसके गालों को थोड़ा खींचते हुए पूछा.
तभी वंशिका ने कहा कि मम्मा झरना तो अभी सेकेंड में ही है. इसकी क्या तैयारी करवानी. इसको दादी मां के जन्मदिन के बाद ही पढ़ाना और मैं भी तभी पढ़ पाऊंगी. सारा दिमाग तो जन्मदिन की पूजा में लगा रहेगा, तो फिर पढ़ाई में मन कैसे लगेगा..और मम्मा बड़ी मां कहती हैं कि जब पढ़ाई में मन ना लगे, तो नहीं पढ़ना चाहिए. ऐसी पढ़ाई से क्या फायदा कि मैं हाथ में किताब लिये बैठी रहूं, मन कहीं और हो. आप भी हमेशा यही कहती हो कि क्वालिटी स्टडी होनी चाहिए. यानी जितनी देर भी पढ़ो, मन लगा कर पढ़ो. आपको दिखाने के लिए फालतू में किताबें खोल कर ना बैठूं.
तभी वहां पायल आ गयी और वो बोली- ऐसा मैं इसलिए कहती हूं जिससे तुम सब ईमानदारी से पढ़ाई करो. हम सब तुम बच्चों के पीछे पड़े रहें कि पढ़ाई करो और तुम्हारा मन ना हो, तो भी तुम डांट से बचने के लिए किताब खोल कर बैठो मगर ध्यान कहीं और हो, ऐसे दिखावे से क्या फायदा? अगर ऐसा करोगे भी तो तुम किसे धोखा दोगे? खुद को ही ना? माता-पिता या बड़ों को बेवकूफ बनाने से क्या होगा? नंबर तुम्हारे खराब आयेंगे. रिजल्ट तुम्हारा खराब होगा. जीवन भर के लिए कम परसेंटेज के कारण जो भविष्य बिगड़ेगा और रिकार्ड खराब होगा, वो हमेशा खलेगा और यही सोचते रहोगे कि काश! थोड़ी मेहनत और की होती और फिर सारा दोष घरवालों के सिर मढ़ोंगे कि हम तो बच्चे थे, आपने ही हमें समझाया होता, नहीं मानते तो दो थप्पड़ लगाये होते, कैसे भी करके पढ़ाई करवाई होती, तो इतना खराब रिजल्ट ना होता. इसीलिए अभी तो समझा रही हूं और अगर नहीं माने तो सख्ती करूंगी. फिर भी ना माने तो थप्पड़ मारने से हिचकूंगी नहीं. तुम्हारी भलाई के लिए मैं सब कुछ करूंगी. इसलिए बार-बार समझाती हूं. मैं नहीं चाहती कि हम बड़ों से कहीं कोई चूक हो.
बच्चों को सही रास्ते पर लाने का, समझाने का बड़ों का फर्ज होता है. बच्चे अपने भविष्य को लेकर इतने गंभीर नहीं होते, लेकिन माता-पिता यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि बच्चों के लिए क्या जरूरी है और क्या नहीं. बड़ों को अपनी तरफ से बच्चों को समझाने का पूरा प्रयास करना चाहिए, ताकि मन में कभी ‘काश’ जैसे शब्द के लिए जगह न रहे. इसीलिए तुम सबसे भी कहती हूं, पूरा प्रयास करो जिससे कहने की जरूरत ना पड़े कि ‘‘काश! हमने पढ़ाई की होती या काश! बड़ों की बात मानी होती.’’ बड़ी मां मैं प्रॉमिस करती हूं कि दो दिन बाद अच्छी तरह पढ़ाई करूंगी और जैसे आप कहेंगी वैसे ही पढ़ूंगी मगर दादी मां के जन्मदिन के बाद. वंशिका ने कहा. ठीक है बेटा. तुम दो दिन बाद ही पढ़ाई शुरू करना. राशि उन्हें दो दिन का समय दे दो. वैसे भी जब बच्चे अपने पर विश्वास करने को कहें तो उन पर विश्वास करना चाहिए. वो हमारी बात मानते हैं तो हमें भी उनकी बात माननी चाहिए. बच्चों को कभी यह नहीं लगना चाहिए कि बड़े हम पर हमेशा अपनी बात थोपते हैं. बच्चों को हमेशा यह लगना चाहिए कि उनकी बात हमारे लिए महत्वपूर्ण है.
अगर वो बड़ों की बात मानते हैं या हमारा सम्मान करते हैं तो बड़ों को भी उनकी भावनाओं का, उनके निर्णय का सम्मान करना चाहिए. इससे बच्चों और बड़ों के बीच आपसी समझदारी पनपेगी, साथ ही एक-दूसरे पर विश्वास बढ़ेगा और बच्चे बेहिचक होकर अपनी बात और अपनी समस्या बड़ों से शेयर कर सकेंगे. पायल ने राशि को समझाते हुए कहा.
वीना श्रीवास्तव
लेखिका व कवयित्री
इ-मेल: veena.rajshiv@gmail.com