नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ए के गांगुली के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली पूर्व लॉ इंटर्न ने आरोपों से इनकार करने पर न्यायाधीश गांगुली की कड़ी आलोचना करते हुए संकेत दिए हैं कि वह उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करा सकती है. गांगुली ने हालांकि उसकी इस प्रतिक्रिया पर कुछ कहने से इनकार कर दिया.
इंटर्न ने अपने ब्लाक लीगली इंडिया पर लिखा है, ‘‘जो लोग अफवाहें फैला रहे हैं और मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहे हैं, वे पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं और इस मुद्दे को दूसरा रंग देने के इरादे से ऐसा कर रहे हैं ताकि वे जांच और जवाबदेही से बच निकलें. ’’ उसकी यह टिप्पणी न्यायाधीश गांगुली द्वारा भारत के प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम को लिखे आठ पन्नों के पत्र के बाद आयी है जिसमें उन्होंने इंटर्न का यौन उत्पीड़न करने के आरोपों से इनकार किया और आरोप लगाया था कि कुछ ‘‘शक्तिशाली तबकों ’’ के खिलाफ दिए गए फैसलों के कारण उनकी छवि खराब करने के लिए यह सब किया जा रहा है.
पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का संकेत देते हुए इंटर्न ने लिखा है, ‘‘मैं अपील करती हूं कि इस बात का संज्ञान लिया जाए कि यह मेरे विवेकाधीन है कि मैं उचित समय पर उचित कार्यवाही को आगे बढ़ा सकती हूं. मैं कहना चाहती हूं कि मेरी स्वायत्तता का पूरी तरह सम्मान किया जाए.’’ इंटर्न ने कहा कि जो भी यह दावा कर रहा है कि मेरे बयान गलत हैं, वह न केवल मेरी बेइज्जती कर रहा है बल्कि उच्चतम न्यायालय का भी असम्मान कर रहा है. उसने लिखा है, ‘‘मैं कहना चाहूंगी कि मैंने पूरे मामले में, इस स्थिति की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, बेहद जिम्मेदारी के साथ काम किया है. ’’उधर, कोलकाता में न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा कि वह इंटर्न के जवाब पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगे.
पूर्व न्यायाधीश अशोक कुमार गांगुली ने कहा कि वह इंटर्न के उस ब्लॉग पर टिप्पणी नहीं करेंगे जिसमें पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का संकेत दिया गया है. यह पूछे जाने पर कि क्या वह :इंटर्न: विरोध प्रदर्शन और विभिन्न क्षेत्रों की ओर से डाले जा रहे दबाव राजनीतिक रुप से प्रेरित हैं, पूर्व न्यायाधीश गांगुली ने कहा, ‘‘मैं इस मामले पर कुछ भी नहीं कहना चाहता. मेरी कोई प्रतिक्रिया नहीं है.’’
न्यायमूर्ति गांगुली पर दबाव बढाते हुए तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से उनके इस्तीफे की मांग की. तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पार्टी सांसद सौगत राय ने कहा, ‘‘उन्होंने प्रधान न्यायाधीश को जो कुछ भी लिखा है वह उनका काम है. यह हमारी राजनीतिक मांग नहीं है लेकिन शालीनता और न्याय की मांग है कि उनको नैतिक आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिये.’’उधर वकीलों और सेवानिवृत्त न्यायाधीश के एक समूह ने आज न्यायमूर्ति गांगुली की बर्खास्तगी की मांग करते हुए कोलकाता में एक विरोध जुलूस निकाला.
इंटर्न ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का संकेत देते हुए कहा, ‘‘मैं यह अनुरोध करती हूं कि यह स्वीकार किया जाए कि मुझमें उचित प्रक्रियाओं को उचित समय पर आगे बढ़ाने का विवेक है. मैं यह कहना चाहती हूं कि मेरी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का पूर्ण रुप से सम्मान किया जाए.’’उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय समिति ने न्यायामूर्ति गांगुली के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी की है और कहा है कि पीड़िता का लिखित और मौखिक बयान प्रथम दृष्टया खुलासा करता है कि पिछले वर्ष 24 दिसंबर को ला मैरिडियन होटल के कमरे में न्यायाधीश ने उसके साथ ‘‘यौन प्रकृति का अवांछनीय व्यवहार’’ किया था. न्यायाधीश गांगुली के पत्र को खारिज करते हुए इंटर्न ने कहा है कि घटना के बाद जब वह कोलकाता में अपने कालेज लौटी तो उसने अलग अलग समय पर अपने कुछ फैकल्टी से बातचीत की.
इंटर्न ने लिखा है, ‘‘चूंकि घटना इंटर्नशिप के समय हुई थी और विश्वविद्यालय की इंटर्नशिप के दौरान महिलाओं के यौन उत्पीड़न के खिलाफ कोई नीति नहीं है तो मुझे संकेत दिया गया कि कोई भी कार्रवाई निष्प्रभावी होगी.’’
उसने लिखा, ‘‘मुझे यह भी सूचित किया गया कि मेरे पास केवल एक ही रास्ता है कि पुलिस में शिकायत दर्ज करायी जाए जो मैं करना नहीं चाहती थी. बहरहाल, मैं महसूस कर रही थी कि युवा विधि छात्रों को सतर्क करना महत्वपूर्ण है कि दर्जा और स्थिति को नैतिकता और गरिमा के मापदंडों के साथ भ्रमित नहीं किया जाए. इसलिए मैंने ब्लाग पोस्ट के जरिए ऐसा करने का रास्ता चुना.’’ इंटर्न ने कहा है कि न्यायमूर्ति गांगुली के खिलाफ आरोपों की जांच करने वाली तीन जजों की समिति के समक्ष गवाही के दौरान उसने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए कार्यवाही की गोपनीयता और इस मामले में शामिल हर किसी की निजता सुनिश्चित किए जाने की अपील की थी.’’ उसने लिखा है, ‘‘मैंने तीन सदस्यीय जजों की समिति की नीयत और क्षेत्रधिकार पर किसी भी समय सवाल नहीं उठाया और पूरा विश्वास था कि वे मेरे बयानों की सचाई को मानेंगे.’’
इंटर्न ने कहा कि 18 नवंबर को समिति के सामने पेश होने और बयान देने के बाद उसने समिति को अपने हस्ताक्षर के साथ एक लिखित बयान भी सौंपा था. 29 नवंबर को उसने अतिरिक्त महाधिवक्ता इंदिरा जयसिंह को एक हलफनामा भेजा था जिसमें यौन शोषण की घटना से जुड़ी जानकारियां दीं और उनसे उचित कार्रवाई करने का अनुरोध किया. इंटर्न ने कहा कि हलफनामे में वहीं चीजें थीं जो उसने समिति के सामने दिए गए अपने बयान में कहीं.
इंटर्न ने कहा, ‘‘समिति की रिपोर्ट के क्रियाशील हिस्से को सार्वजनिक किए जाने के बाद भी कई प्रतिष्ठित नागरिक और कानूनविदों ने समिति के निष्कषों का उपहास करना और मुझे बदनाम करना जारी रखा.’’ इंटर्न ने कहा, ‘‘इस वजह से मैंने अपनी और उच्चतम न्यायालय की गरिमा की रक्षा के लिए अपने बयान के ब्यौरों को स्पष्ट करना जरुरी समझा. इसलिए मैं इंदिरा जयसिंह को अपने बयान सार्वजनिक करने का अधिकार देती हूं.’’ समिति को सौंपे गए अपने हलफनामे में इंटर्न ने कहा था कि गांगुली ने उसे क्रिसमस की पूर्व संध्या पर एक रिपोर्ट पूरी करने के लिए अपने होटल के कमरे में बुलाया था.
उसने कहा, ‘‘न्यायाधीश ने मुझसे कहा कि रिपोर्ट अगले दिन जमा करनी है और मैं होटल में ही रुककर पूरी रात काम करुं. मैंने इससे इनकार करते हुए कहा कि मुझे काम जल्द ही पूरा करना है और अपने पीजी हॉस्टल लौटना है.’’ इंटर्न ने कहा, ‘‘कुछ देर बाद न्यायाधीश ने रेड वाइन की बोतल निकाली और वाइन पीते हुए कहा कि चूंकि तुम दिनभर काम करके थक गयी होगी, तुम मेरे बेड रुम में चली जाओ और आराम कर लो.’’ इंटर्न ने कहा, ‘‘इसके बाद न्यायाधीश ने कहा, ‘तुम बहुत सुंदर हो’. मैं तुरंत अपनी जगह से उठी और जब तक कुछ कहती उन्होंने मेरी बांह पकड़कर कहा कि तुम्हें पता है कि नहीं कि मैं तुम्हारे प्रति आकर्षित हूं? लेकिन मैं तुम्हें पसंद करता हूं, मैं तुमसे प्यार करता हूं. जब मैंने वहां से हटने की कोशिश की तो उन्होंने मेरी बांह चूमते हुआ फिर कहा कि वह मुझसे प्यार करते हैं.’’
उधर, उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को लिखी अपनी चिठ्ठी में न्यायमूर्ति गांगुली ने उच्चतम न्यायालय द्वारा उचित सुनवाई की व्यवस्था न करने की भी शिकायत की और कहा था, ‘‘मुझे लगता है कि यह कुछ निश्चित हितों के इशारे पर मेरी छवि धूमिल करने की स्पष्ट कोशिश है.’’ न्यायमूर्ति गांगुली 2जी आवंटन घोटाले से जुड़े कई मामलों में आदेश देने वाली पीठ का हिस्सा थे. इन आदेशों में केंद्र द्वारा टेलीकॉम कंपनियों को दिए गए 122 लाइसेंस रद्द करने का आदेश शामिल है.