कोलकाता: उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एके गांगुली ने किसी इंटर्न का उत्पीड़न या उसके प्रति कोई अवांछित आचरण करने के प्रयास से इनकार करते हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम से शिकायत की कि अदालत ने उनके पक्ष पर ठीक ढंग से ध्यान नहीं दिया. न्यायमूर्ति गांगुली ने प्रधान न्यायाधीश को लिखे आठ पृष्ठों के पत्र में कहा है कि वह इस पत्र की एक प्रति राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी भेज रहे हैं. न्यायमूर्ति गांगुली ने अपने पत्र में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी पर भी प्रश्न उठाया.
उनका कहना था कि उनके पक्ष की ओर ध्यान नहीं दिया गया. अपने पत्र में उन्होंने घटना की रात का भी जिक्र करते हुए अपना पक्ष लिखा है. उन्होंने लिखा है कि उन्होंने कमेटी को बताया था कि उक्त इंटर्न ने अपने लैपटॉप पर करीब 20 पन्ने टाइप किये थे. काम के बाद उसके साथ सौहार्दपूर्ण बातचीत हुई थी. इंटर्न के सुरक्षित घर लौटने के लिए उन्होंने गाड़ी की भी व्यवस्था की थी. उन्होंने कहा कि वह हाल की कुछ घटनाक्रमों को लेकर व्यथित हैं. वह इस बात को लेकर दुखी हैं कि उच्चतम न्यायालय ने उनका पक्ष ठीक ढंग से नहीं लिया.
न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा कि एक इंटर्न के आरोपों को लेकर मीडिया में चल रही बातों पर गहन विचार के बाद वह अपनी चुप्पी तोड़ने पर विवश हुए हैं. पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष गांगुली ने कहा कि सबसे पहले वह यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि उन्होंने कभी भी किसी महिला इंटर्न का उत्पीड़न नहीं किया और न ही उसके प्रति कोई अवांछित प्रयास किया. ऐसा आचरण मेरे व्यक्तिगत आचरण से मेल नहीं खाता. पत्र में लिखा है कि उन्होंने कई पुरुष और महिला इंटर्न की काफी मदद की है. वे आज तक उनका काफी सम्मान करते हैं. न्यायमूर्ति गांगुली ने अपने पत्र में कहा कि उनकी छवि को धूमिल करने के संगठित प्रयास हो रहे हैं क्योंकि दुर्भाग्य से उनका कार्य ऐसा रहा है, उन्होंने कुछ फैसले कुछ शक्तिशाली हितों के खिलाफ दिये हैं. उन्होंने कहा कि वह इस पूरे मामले को उनकी छवि धूमिल करने की स्पष्ट साजिश के तौर पर देखते हैं जो किसी निहित उद्देश्य से किया गया है. उन्होंने आरोपों की जांच करने के लिए उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की समिति पर सवाल उठाते हुए दलील दी कि चूंकि इंटर्न लड़की उच्चतम न्यायालय की कर्मचारी नहीं थी और वह एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश थे इसलिए समिति गठित करने की कोई जरूरत नहीं थी. गांगुली ने कहा कि न्यायाधीशों की समिति गठन से पहले इंटर्न द्वारा उच्चतम न्यायालय या आप श्रीमान (भारत के प्रधान न्यायाधीश) के समक्ष किसी भी रूप में कोई शिकायत नहीं की गयी थी और संभवत: लड़की ने अपना बयान समिति के निर्देश पर दर्ज कराया.
न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा कि एक समाचार पत्र में 12 दिसंबर की एक खबर निश्चित तौर पर अटॉर्नी जनरल द्वारा दायर एक याचिका का आधार नहीं हो सकती जिस पर प्रधान न्यायालय के कार्रवाई करने की जानकारी है. उन्होंने कहा कि इसलिए बताया गया कारण स्वीकार नहीं किया जा सकता कि समिति का गठन यह पता लगाने के लिए किया गया कि क्या न्यायाधीश एक सेवारत न्यायाधीश है, क्योंकि ब्लॉग ने स्पष्ट रुप से सेवानिवृत्त न्यायाधीश होने का खुलासा कर दिया था. उन्होंने न्यायालय के अधिकारियों के व्यवहार के बारे में शिकायत करते हुए कहा कि उनके प्रवेश करते ही उन्हें अधिकारियों के एक जमघट ने घेर लिया जो कि संस्थान के लिए अशोभनीय है. उन्होंने कहा कि उनके साथ हिरासत में एक व्यक्ति जैसा व्यवहार किया गया.
इंटर्न ने समिति के समक्ष दायर एक हलफनामे में कहा है कि न्यायाधीश ने आल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआइएफएफ) से संबंधित एक रिपोर्ट पूरी करने के लिए उसे क्रिसमस की पूर्व संध्या पर होटल के कमरे में बुलाया था.
क्या कहा
मेरी छवि को धूमिल करने के संगठित प्रयास हो रहे हैं क्योंकि दुर्भाग्य से मेरा कार्य ऐसा रहा है, मैंने कुछ फैसले कुछ शक्तिशाली हितों के खिलाफ दिये हैं. मैं इस पूरे मामले को मेरी छवि धूमिल करने की स्पष्ट साजिश के तौर पर देखता हूं जो किसी निहित उद्देश्य से किया गया है.