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86 बस्ती मामला: सुप्रीम कोर्ट या सरकार ही दे सकती है राहत

जमशेदपुर: झारखंड हाई कोर्ट के फैसले के बाद भी जुस्को (टाटा स्टील) 86 बस्तियों को पानी-बिजली देगी या नहीं, इसको लेकर संशय बरकरार है. मामले में शिकायतकर्ता के साथ-साथ हर कोई अपनी दलील दे रहा है, हर कोई कोर्ट के फैसले की व्याख्या करने की कोशिश कर रहा है. लेकिन विधि विशेषज्ञों ने प्रभात खबर […]

जमशेदपुर: झारखंड हाई कोर्ट के फैसले के बाद भी जुस्को (टाटा स्टील) 86 बस्तियों को पानी-बिजली देगी या नहीं, इसको लेकर संशय बरकरार है. मामले में शिकायतकर्ता के साथ-साथ हर कोई अपनी दलील दे रहा है, हर कोई कोर्ट के फैसले की व्याख्या करने की कोशिश कर रहा है. लेकिन विधि विशेषज्ञों ने प्रभात खबर को बताया कि मामले में अब हाई कोर्ट के बजाय सुप्रीम कोर्ट का ही रास्ता बचा है.

अगर राज्य सरकार चाहे तो उक्त बस्तियों को वैद्य बनाने के लिए ऑर्डिनेंस जारी करा सकती है, जिसके अलोक में ही उन बस्तियों को पानी-बिजली दी जा सकती है. लेकिन यह रास्ता फिलहाल सरकार के लिए जोखिम और चुनौती भरा है. सरकार या उसमें शामिल पार्टियां इसके राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन करने के बाद ही कोई कदम उठायेंगी. ऐसे में बस्ती वासियों को वहां से भी तत्काल राहत मिलती नजर नहीं आ रही है. हां सुप्रीम कोर्ट से ही इसकी बेहतर राह निकाल सकता है. सुप्रीम कोर्ट मान चुकी है कि मूलभूत सुविधाओं से मालिकाना हक का कोई लेना-देना नहीं है. वह अब तक कई मामलों में ऐसा आदेश भी दे चुकी है कि मूलभूत सुविधाओं से मालिकाना हक का कोई संबंध नहीं होता. पानी और बिजली पाना जिंदा रहने के लिए लोगों का हक है, जिससे किसी को वंचित नहीं किया जा सकता.

इस आदेश से नहीं मिल सकता बिजली-पानी : सरकारी अधिवक्ता
झारखंड हाई कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उसके आलोक में 86 बस्तियों के अवैध निर्माण पर बिजली-पानी नहीं दिये जा सकते. चूंकि बस्तियां ही अवैध हैं, इसलिए उन्हें बिजली और पानी नहीं दिया जा सकता. सरकार एवं कंपनियों के लिए इस आदेश का अनुपालन कराना अनिवार्य है. जहां तक इस फैसले को चुनौती देने या मामले का हल निकाने की बात है, तो फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, या सरकार उस पर कोई फैसला ले सकती है, जो मान्य हो, लेकिन वर्तमान आदेश पर उन्हें बिजली- पानी नहीं मिल सकता.

-इंद्रीनील चटर्जी, सरकारी अधिवक्ता

सरकार बस्तियों में दे रही है बिजली-पानी
हाई कोर्ट ने भले ही कुछ भी फैसला दिया हो, लेकिन सरकार बस्तियों में बिजली-पानी दे रही है. यह मूलभूत सुविधा है, जिससे सरकार किसी को वंचित नहीं रह सकती. ऐसे में सरकार और कंपनियों के बीच उत्पन्न अलगाव कैसे दूर किया जाय, यह विचारणीय है.

सुप्रीम कोर्ट विकल्प या सरकार फैसला ले : पूर्व पीपी
बस्तियों को बिजली-पानी देने के संबंध में जो आदेश आया है, उसके आधार पर किसी हाल में वे नहीं मिल सकते. इस मामले में हाई कोर्ट में रिव्यू पिटीशन भी दाखिल नहीं किया जा सकता. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ही एकमात्र विकल्प है. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, या सरकार भी कोई फैसला ले सकती है. सरकार अध्यादेश लाकर लोगों को बिजली-पानी मुहैया कराये या फिर बस्तियों को वैध करार दे. कोर्ट के वर्तमान आदेश से कोई लाभ नहीं मिलने वाला है. -पीएन गोप, पूर्व लोक अभियोजक (पब्लिक प्रॉसिक्यूटर)

प्रशासन वेट एंड वॉच की स्थिति में
जिला प्रशासन वेट एंड वॉच की स्थिति में है. प्रशासन महाधिवक्ता से रायशुमारी करने के बाद इस पर कोई फैसला लेगा. महाधिवक्ता से राय मांगने के लिए अब तक हालांकि आवेदन भेजा नहीं गया है और न ही कोई जानकारी हासिल की गयी है. इस मामले पर प्रशासन के रूख का बस्तीवासियों को इंतजार है.

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