नयी दिल्ली/कोलकाता: भाजपा और तृणमूल कांग्रेस ने एक महिला इंटर्न के यौन उत्पीड़न के मामले में फंसे सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एके गांगुली का मामला शुक्रवार को संसद में उठाया.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और तृणमूल कांग्रेस ने न्यायमूर्ति गांगुली को पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग (डब्ल्यूबीएचआरसी) के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग करते हुए कहा कि उन्हें नैतिक आधार पर अब तक इस्तीफा दे देना चाहिए था.
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने मामला उठाते हुए कहा कि ‘संरक्षक और आश्रित’ के बीच विश्वास का रिश्ता होता है और भरोसा तोड़नेवाले को माफ नहीं किया जा सकता.
सुषमा ने कहा : नैतिक आधार पर उन्हें अब तक इस्तीफा दे देना चाहिए था, लेकिन वह ढीठ बनकर अपने पद पर बने हुए हैं. उन्हें तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए या उन्हें पद से हटा दिया जाना चाहिए. उन्होंने 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में एक लड़की के सामूहिक दुष्कर्म की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि उस समय पूरा देश आक्रोशित था और इस उम्मीद से एक कड़ा कानून पारित किया गया था कि ऐसे अपराध दोबारा नहीं होंगे.
तृणमूल कांग्रेस के नेता सुदीप बंद्योपाध्याय ने सुषमा के विचारों से सहमति जताते हुए कहा कि गांगुली को तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐसे अपराधों को सहन नहीं किया जा सकता और ऐसे लोगों को इतने उच्च पदों पर बने रहने की अनुमति नहीं होनी चाहिए.
इस बीच, कोलकाता से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने उन्हें डब्ल्यूबीएचआरसी के अध्यक्ष पद से हटाने की संसद में उठी मांग पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
न्यायमूर्ति गांगुली से जब उन्हें हटाये जाने को लेकर संसद के दोनों सदनों में उठी मांग पर प्रक्रिया देने को कहा गया, तो उन्होंने कहा : मैं इस बारे में कुछ नहीं कहूंगा. उन्होंने कहा : मैंने आरोपों से इनकार किया है. इसके अलावा मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं है. न्यायमूर्ति गांगुली डब्ल्यूबीएचआरसी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से पहले ही इनकार कर चुके हैं. 2011 में सत्ता में आने के बाद न्यायमूर्ति गांगुली को डब्ल्यूबीएचआरसी का अध्यक्ष नियुक्त करनेवाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को दो बार पत्र लिखकर पूर्व न्यायाधीश के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है.