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पास आइए, क्यों बैठे हैं दूर-दूर..

।। जावेद इस्लाम।। (प्रभात खबर, रांची) कहते हैं, दिल्ली दूर है. पर हकीकत यह है कि यह दूर होकर भी करीब है. दिल्ली (केंद्र) में किसकी सरकार बन रही है, यह जिज्ञासा तो स्वाभाविक है, पर दिल्ली राज्य यानी ‘छोटी दिल्ली’ में सरकार को लेकर पूरे देश की ऐसी दीवानगी? बड़ी दिल्ली तो बड़ी दिल्ली, […]

।। जावेद इस्लाम।।

(प्रभात खबर, रांची)

कहते हैं, दिल्ली दूर है. पर हकीकत यह है कि यह दूर होकर भी करीब है. दिल्ली (केंद्र) में किसकी सरकार बन रही है, यह जिज्ञासा तो स्वाभाविक है, पर दिल्ली राज्य यानी ‘छोटी दिल्ली’ में सरकार को लेकर पूरे देश की ऐसी दीवानगी? बड़ी दिल्ली तो बड़ी दिल्ली, छोटी दिल्ली सुबहानअल्लाह! सभी माथापच्ची कर रहे हैं. आम आदमी से लेकर खास आदमी तक सरकार बनाने का एक से एक फामरूला सुझा रहे हैं. पर ‘आप’ हैं कि अकड़े हुए हैं, किसी की सुन ही नहीं रहे हैं. विपक्ष में बैठने की ऐसी बेकरारी! हम बताना चाहते हैं कि हमारे चाचा द्वय के पास भी एक संकटमोचक फामरूला है. यदि श्रीराम चाचा और रहीम चाचा के फामरूले पर अमल हो, तो यह दूरगामी व ऐतिहासिक साबित हो सकता है.

देखिए, आप बेकरार हो रहे हैं, खीज भी रहे हैं कि यह बंदा लंबी भूमिका बांधे जा रहा है, झट से क्यों नहीं बता देता! मैं आपकी बेकरारी समझ रहा हूं. फिर भी कहूंगा कि थोड़ा धैर्य रखिए. यह कोई मामूली फामरूला नहीं है. इसे सुनना-समझना काफी धैर्य की मांग करता है, जबकि धैर्य आजकल की दुनिया से नदारद हो चुका है. धैर्य के लिए संयम चाहिए, और जब बड़े-बड़े ‘बाबा’ गण संयम न रख पा रहे हों, तो आपलोगों पर उम्मीद का बोझ क्यों डाला जाये? खैर, दिल थाम कर पढ़िए, हमारे चाचा द्वय का संकटमोचक फामरूला.. भाजपा और कांग्रेस मिल कर ‘छोटी दिल्ली’ की सरकार बना लें. क्यों, चौक गये न फामरूला सुन कर? चाचा द्वय का मानना है कि इस फामरूले से छोटी दिल्ली की सरकार बनती है, तो वर्तमान व भविष्य की कई समस्याओं का हल हो जायेगा.

कांग्रेस और भाजपा का सत्ता-द्वंद्व जिस तरह देश की राजनीति व सांप्रदायिक सौहार्द का कबाड़ा कर रहा है, उस पर लगाम लग सकती है. थोक वोट के लिए न कांग्रेस को नरेंद्र मोदी का भय मुसलमानों को दिखाने का मौका रहेगा, न भाजपा मुसलिम तुष्टीकरण का हल्ला मचा कर हिंदुओं को अपने पाले में खींच पायेगी. और खुदा न करे, ‘आप’ जैसे किसी खेलबिगाड़ू मोरचे के कारण 2014 की लोकसभा त्रिशंकु हो गयी, तो ‘छोटी दिल्ली’ की सरकार का फामरूला ‘बड़ी दिल्ली’ की सरकार बनाने में भी काम आयेगा. वैसे भी भाजपा व कांग्रेस की नीतियों में फर्क कहां रह गया है?

अगर हिंदुत्व के तड़के और सेकुलर के टोटके को छोड़ दिया जाये तो. दंगों के दाग दोनों को ही अच्छे लगते हैं. आर्थिक नीतियों के मामले में दोनों के बीच एक ही राह पर आगे निकलने की होड़ मची हुई है. दोनों अमेरिका के मुरीद, दोनों विदेशी पूंजी के याचक, दोनों कारपोरेट-परस्त. अगर भाजपा व कांग्रेस एक साथ आये, तो सबसे बड़ी खुशी कारपोरेट जगत को होगी. ‘टू विंडो’ की जगह ‘सिंगल विंडो’ से काम चल जायेगा. दोनों पार्टियों से अलग-अलग ‘डील’ नहीं करनी पड़ेगी. अगर फामरूला पसंद आया हो, तो ई-मेल कर राय दें.

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