रांची: निजी व गैर सरकारी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने तथा स्कूलकर्मियों की समस्याओं के समाधान के उद्देश्य से झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण (जेट) की स्थापना वर्ष 30 सितंबर 2005 को हुई थी. झारखंड हाइकोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने जेट का गठन किया. ट्रिब्यूनल का कार्य एक्ट व नियमावली के विरुद्ध हो रहा है. बिना राज्य सरकार की सहमति से पीड़ितों से कोर्ट फी स्टांप लिया जा रहा है. सत्यापित प्रति के लिए भी शुल्क वसूला जा रहा है, जबकि सरकार ने नियमावली में शुल्क तय ही नहीं किया है.
पीड़ितों को त्वरित न्याय भी नहीं मिल पा रहा है. पूर्व में ट्रिब्यूनल केस दायर होने के साथ ही प्रतिवादियों को नोटिस जारी करता था. निर्धारित तिथि पर अंतरिम आदेश के मुद्दे पर सुनवाई होती थी, लेकिन जेट में अब स्थिति दूसरी है. केस दायर होने पर प्रतिवादियों को नोटिस जारी नहीं किया जाता. तीन माह बाद सुनवाई के लिए तिथि निर्धारित होती है. उसके बाद प्रतिवादियों को नोटिस जारी करना है या नहीं इस पर सुनवाई होती है. नोटिस जारी होने पर तीन माह का समय दिया जाता है. अंतरिम आदेश पर सुनवाई में ही छह माह लग जाते हैं. सप्ताह में सिर्फ तीन दिन (सोमवार, बुधवार व शुक्रवार) ही कोर्ट की कार्रवाई चलती है.
क्या है एक्ट व नियमावली
झारखंड एजुकेशन ट्रिब्यूनल एक्ट 2005 के अनुसार किसी भी प्रकार का संशोधन राज्य सरकार के स्तर पर किया जायेगा. जेट स्वयं नियम या शुल्क तय नहीं कर सकता. राज्य सरकार के स्टैंडिंग काउंसिल अभय कुमार मिश्र ने बताया कि एक्ट की धारा-नौ में कहा गया है कि कोई भी पीड़ित जेट में आवेदन दाखिल कर सकेगा. धारा-11 के तहत पीड़ित को त्वरित न्याय मिलेगा.
धारा-13 के अनुसार ट्रिब्यूनल अंतरिम आदेश पारित करे या नहीं, प्रतिवादियों को नोटिस जारी करेगा. शुल्क संबंधी कोई जिक्र नहीं किया गया है, पर शपथ पत्र लिया जाता है. इसमें 20 रुपये का कोर्ट फी स्टांप देना पड़ता है. सत्यापित प्रतिलिपि के लिए ट्रिब्यूनल झारखंड हाइकोर्ट रुल्स शीडय़ूल-6 के तहत विहित प्रपत्र में आवेदन मांगता है, जबकि यह सिर्फ हाइकोर्ट के लिए लागू है. शुल्क के लिए स्टांप देना पड़ता है. प्रति पृष्ठ अलग से तीन रुपये शुल्क दिया जाता है. श्री मिश्र ने कहा कि सरकार ने शुल्क तय ही नहीं किया है, लेकिन ट्रिब्यूनल शुल्क वसूल रहा है. वसूला गया शुल्क किस मद में जमा हो रहा है.