भागलपुर: भागलपुर का टिल्हा कोठी अपना ऐतिहासिक स्वरूप खोता जा रहा है. इसमें पड़ती दरारें, मिट्टी का कटाव, टूटते-फूटते कंगूरे, फर्श, दीवारें व खिड़कियां इसके जमींदोज होने की आशंका का संकेत दे रहे हैं. प्राचीन इतिहास के विशेषज्ञ इस विरासत की दुर्दशा पर गहरी चिंता जताने लगे हैं. इसके जीर्णोद्धार के लिए जिला प्रशासन ने 49 लाख 50 हजार का प्रस्ताव भी तैयार कराया था.
यह प्रस्ताव तत्कालीन जिलाधिकारी नर्मदेश्वर लाल ने तैयार कराया था. तब एक कागजी पेच फंस गया था. विश्वविद्यालय जब तक अनापत्ति प्रमाणपत्र नहीं दे देता तब तक राज्य सरकार इस पर कोई निर्माण या मरम्मत कार्य नहीं करा सकती. इसी बीच 31 मई 2012 को टिल्हा कोठी का भ्रमण करने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आये. उनके आने से दो दिन पूर्व तत्कालीन कुलपति डॉ विमल कुमार ने अनापत्ति प्रमाणपत्र जिलाधिकारी को सौंप दिया.
इसके बाद निर्धारित तिथि को मुख्यमंत्री ने टिल्हा कोठी का भ्रमण भी कर लिया और इसके जीर्णोद्धार के लिए जिला प्रशासन ने सारी कागजी प्रक्रिया भी पूरी कर ली, लेकिन जीर्णोद्धार का काम शुरू नहीं हुआ. विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षकों का मानना है कि अगर पूर्व जिलाधिकारी नर्मदेश्वर लाल कुछ दिन और भागलपुर में कार्यरत रह गये होते, टिल्हा कोठी का जीर्णोद्धार हो गया होता.
वरना भागलपुर खो देगा अपनी विरासत
प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के कोर्स को–ऑर्डिनेटर डॉ अरुण कुमार झा ने बताया कि यह भवन यूरोपियन शैली का है. इसमें भागलपुर के पहले कलक्टर क्लिवलैंड रहा करते थे. उन्होंने बताया कि पुरातात्विक दृष्टिकोण से यह भवन काफी महत्वपूर्ण है. इसे संवारने की सख्त जरूरत है, अन्यथा भागलपुर अपना एक विरासत खो देगा.