जमशेदपुर: तामोलिया स्थित ब्रह्नानंद अस्पताल में डॉक्टरों की 24 घंटे निगरानी में करीब आठ दिन के नवजात ‘बजरंगी’ की स्थिति अभी ठीक है. उसका ऑपरेशन सफल हो चुका है, लेकिन खतरा पूरी तरह टला नहीं है. उसके दिल में दो छेद मिले हैं. डॉक्टर परवेज आलम के मुताबिक, अभी दिल के छेद के ऑपरेशन की जरूरत नहीं पड़ेगी. यह खतरनाक नहीं है. बच्च मां का दूध पी रहा है. उसकी सांसें, धमनियों में दौड़ रहे खून की रफ्तार और दिल की धड़कनें सामान्य है. पेशाब -पखाना भी सामान्य रूप से कर रहा है. जो सुखद संकेत है. अब आगे उसे दवा और लोगों की दुआओं की जरूरत है. ब्रrानंद अस्पताल के चिकित्सक 24 घंटे बच्चे पर नजर रख रहे हैं.
बायीं ओर नहीं, मध्य में है बजरंगी का दिल : प्राय: हर व्यक्ति का दिल बायीं ओर होता है. लेकिन बजरंगी का दिल सीने के बीचोंबीच है, जिस कारण उसको उसी जगह फिट किया जा रहा है. डॉ परवेज ने बताया कि दिल को बायीं ओर फिट करना रिस्की हो सकता है.
अगला 24 घंटे काफी महत्वपूर्ण : अपनी टीम के साथ गुरुवार को प्रेस कांफ्रेंस डॉ परवेज ने बताया गया कि किसी भी सेंसेटिव ऑपरेशन में 48 घंटे काफी महत्वपूर्ण होते हैं. पिछला 24 घंटा ठीक-ठाक रहा, अगला 24 घंटे भी उतना ही महत्वपूर्ण है. इस अवधि में कुछ भी संभव है.
बच्चे भूल जाते हैं सांस लेना : डॉ आलम ने बताया कि बच्चों के केस में काफी डर बना रहता है. कभी-कभी बच्च सांस लेना तक भूल जाता है. ऐसे में सांसें थम जाती हैं. ऐसे ही कई जोखिम बरकरार हैं. वैसे बच्चे पर पूरी तरह नजर रखी जा रही है.
बच्चे का वजन कम, संकट ज्यादा: डॉक्टरों के मुताबिक, लंदन समेत अन्य देशों में जहां भी ऑपरेशन हुए हैं, उसमें बच्चे का वजन तीन किलो से ज्यादा था. लेकिन इस केस में परेशानी यह थी कि बच्चे का वजन 1 किलो 934 ग्राम ही है. सामान्य से कम वजन होने से शिशु में कई तरह की बीमारियां पैदा होने का खतरा रहता है.
बच्चे को लगाना होगा एक बैंड : बजरंगी जब बड़ा होगा तो स्वाभाविक तौर पर उछल कूद करेगा. खेलेगा, जमीन पर खिसकेगा. ऐसे में उसकी छाती दबेगी और हृदय पर इसका असर पड़ सकता है. इसकी सुरक्षा के लिए अस्पताल ने अलग से अमेरिकी कंपनी का एक बैंड दिया है, जो सेफगार्ड पूरे सीने का कर रखेगा, जिसको सोते वक्त खोला भी जा सकता है और उसको पहनाया भी जा सकता है.
दिल को हल्का बाहर ही रखा गया है : डॉ परवेज ने बताया कि दुनिया में असफलता के कई केस इसलिए हुए हैं क्योंकि पहले ही ऑपरेशन में पूरे दिल को अंदर कर दिया गया और बच्चे की मौत हो गयी है. इस कारण बजरंगी (करीब आठ दिनों का) का पूरा दिल अभी अंदर नहीं किया गया है.
तीसरे चरण में भरे जायेंगे दिल के छेद : पहले चरण केऑपरेशन में कुछ चीजें ही ठीक की गयी हैं. दूसरे चरण में सीने के सरफेस को ठीक किया जायेगा. तीसरे चरण में उसके दोनों दिल के छेद को भरा जायेगा. डॉक्टर आलम ने कहा कि दिल के छेद को बाद में भी भरने में दिक्कत नहीं है, लेकिन अभी सबकुछ सामान्य रहना चाहिए.
बच्चे के ही स्कीन व हड्डी को काटकर बनाया जायेगा सीना : बजरंगी के सीने पर फिलहाल जो कवर लगाया गया है, वह कृत्रिम है. लेकिन बाद में तीसरे चरण में जब बच्च बड़ा हो जायेगा, तब उसके ही स्कीन और हड्डी को काटकर सीने में लगाया जायेगा, ताकि सबकुछ सामान्य रह सके. इसको लेकर चिकित्सकों ने प्लानिंग कर रखी है. अगर सबकुछ सामान्य रहा तो यह प्रक्रिया अपनायी जायेगी.
चार से पांच लाख का खर्च आने की उम्मीद : डॉ परवेज ने बताया कि तीनों चरण का आपरेशन पूरा होने तक चार से पांच लाख रुपये लग सकते हैं. यह सही है कि परिवार गरीब है लेकिन ब्रह्नानंद अस्पताल के ट्रस्टी की ओर से मदद की जा रही है. अब तक 95 हजार रुपये खर्च हो चुके हैं. अभी और लगना बाकी है. इसको लेकर अन्य लोगों से भी मदद की अपील की जा रही है. डॉ शेट्टी की हरी झंडी के बाद आगे बढ़ा सीनियर कार्डियेक सजर्न डॉ परवेज आलम ने जब ऑपरेशन किया था, तब डॉक्टर देवी शेट्टी से पहली बातचीत हुई. डॉ देवी शेट्टी ने ऑपरेशन को हरी झंडी दी. इसके बाद ऑपरेशन के लिए वे लोग आगे आये.
पूरी दुनिया में 2012 तक हुए थे 22 ऑपरेशन
डॉ परवेज ने बताया कि पूरी दुनिया में वर्ष 2012 के नवंबर माह तक कुल 22 ऑपरेशन हुए थे. इस ऑपरेशन में बच्चों के जीवित बचने की घटना कम हुई है. वैसे कई बच्चे लंदन और कई देशों में ऐसे हैं कि ऑपरेशन के बाद सुरक्षित हैं और अभी 24 साल तक के उम्र के हो चुके हैं.
देश में आठ ऑपरेशन, पांच एम्स में
देश में आठ ऑपरेशन ऐसे हुए हैं. पांच एम्स अस्पताल में हुआ है. इसमें से कई बच्चों की मौत हो चुकी है.
एम्स में ऑपरेशन का हाल :
2007-साबा-पहले चरण के ऑपरेशन के दौरान ही मौत हो गयी
2009-विभा देवी की पत्नी-ऑपरेशन के तीन सप्ताह के बाद उसकी मौत हो गयी थी
2010-मध्यप्रदेश के बच्चे का ऑपरेशन के दसवें दिन मौत हो गयी थी
2010-बिहार के सिवान से बच्च आया था, जिसकी जानकारी नहीं मिल पायी है
2010-साबा दूसरे चरण में ऑपरेशन किया गया, जिसके बाद छह साल का अभी तक बच्च सुरक्षित है
2012-एम्स में ही बिहार के एक बच्चे का इलाज किया गया, जो अभी एक साल का है
दूसरे स्थानों पर ऑपरेशन
जयपुर-2009 में यहां ऑपरेशन के लिए बच्च लाया गया, लेकिन ऑपरेशन के पहले ही उसकी मौत हो गयी
भोपाल-ऑपरेशन के पहले ही बच्चे की मौत हो गयी