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पुलिसिया कार्यशैली ही जिम्मेवार

फ्लॉप साबित हो रहीं नक्सली हमले पर काबू पाने की कोशिशें औरंगाबाद (ग्रामीण) : उग्रवाद व आतंकवाद आज पूरे विश्व में चर्चा का विषय है. आम लोगों की जान-माल की सुरक्षा अब भगवान भरोसे ही रह गयी है. उग्रवाद पर काबू पाने की जितनी भी कोशिशें की गयी हैं, वह अब तक फ्लॉप ही साबित […]

फ्लॉप साबित हो रहीं नक्सली हमले पर काबू पाने की कोशिशें

औरंगाबाद (ग्रामीण) : उग्रवाद व आतंकवाद आज पूरे विश्व में चर्चा का विषय है. आम लोगों की जान-माल की सुरक्षा अब भगवान भरोसे ही रह गयी है. उग्रवाद पर काबू पाने की जितनी भी कोशिशें की गयी हैं, वह अब तक फ्लॉप ही साबित हुई है.

औरंगाबाद में उग्रवाद इस कदर घर कर गया है कि यहां के लगभग 25 लाख नागरिकों की सुरक्षा की जिम्मेवारी और जवाबदेही शायद ही कोई लेना चाह रहा हो. सवाल यह उठता है कि जिस पुलिस के भरोसे हम अपनी जान-माल की सुरक्षा चाहते हैं, वह खुद लाचार क्यों है?

जब वह अपनी ही सुरक्षा करने में नाकाम साबित हो रही है, तो औरों की सुरक्षा की क्या गारंटी है. खैर बात जो हो, लेकिन औरंगाबाद जिले में हाल के दिनों में जो नक्सली घटनाएं हुई हैं, वह खौफ पैदा करने के लिए काफी है.

कार्यशैली बदलनी होगी

नक्सली हमले पर वैसे तो कोई प्रतिक्रिया कम ही आती है, लेकिन व्यवसायी मनोज प्रसाद, संजय गुप्ता, मनोहर सिंह, समाजसेवी विनय कुमार सिंह, रामराज पासवान, उदय कुमार, पंकज कुमार, बुद्धिजीवी विवेक नाथ सिंह, ईश्वर दयाल प्रसाद ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि नक्सलियों के हमलों को बेअसर करने के लिए पुलिस को सभी संसाधनों से लैस होना होगा. ताकि, कहीं से भी चूक न हो.

उनकी कार्यशैली में भी बदलाव लाना होगा. नक्सल समस्या पर काबू तभी पाया जा सकता है, जब पुलिस और पब्लिक के बीच समन्वय होगा. नक्सल प्रभावित थानों में एंटी लैंड माइंस की व्यवस्था करनी होगी, तभी उस वाहन से पुलिस गश्ती कर सकती है.

नरसंहारों का खेला खेल

दरअसल, 90 के दशक से वर्ष 2000 तक बिहार नरसंहारों का राज्य बन कर रह गया था. एक तरफ नक्सली संगठन माले लिबरेशन, संग्राम समिति और एमसीसी आदि थे, तो दूसरी तरफ निजी सेनाएं भूमि सेना, ब्रहर्षि सेना और रणवीर सेना. इन सभी संगठनों के पास हथियारबंद दस्ता थे और नेतृत्व करने के लिए खुर्राट राजनीतिज्ञ.

ऐसी स्थिति में जनसंहारों की लाइन तो लगनी ही थी. लक्ष्मणपुर बाथे, सेनारी और मियांपुर के नरसंहार देश-विदेश के मीडिया में छाये रहे. औरंगाबाद जिले में रणवीर सेना के मौजूद मजबूत नेटवर्क का पहला और अभी तक आखिरी उदाहरण मियांपुर है.

अधिकतर प्रखंड कब्जे में

वैसे तो, औरंगाबाद जिला ही नक्सलियों का गढ़ माना जाता है. जिला मुख्यालय को छोड़ दिया जाये, तो हर प्रखंड में नक्सलियों का आतंक है. मदनपुर, गोह, हसपुरा, दाउदनगर, ओबरा, बारुण, नवीनगर, कुटुंबा, रफीगंज व देव ये ऐसे प्रखंड हैं, जहां नक्सल समस्या हावी है.

खास कर देव, नवीनगर, कुटुंबा और गोह में नक्सली संगठनों की तूती बोलती है. टंडवा, उपहारा, ढिबरा, नरारी कला, खैरा, फेसर , सिमरा, माली, खुदवां, पौथू, मदनपुर थाना नक्सलियों के टारगेट में रहे हैं. इनमें अधिकतर थानों पर नक्सली हमले हो चुके हैं. जवानों की मौत भी हुई है और हथियार भी लूटे गये हैं. माली थाना की घटना को कौन भूल सकता है.

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