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बंद में अराजकता के जिम्मेवार कौन?

झारखंड बंद के दौरान राजधानी रांची में हिंसा, तोड़-फोड़, आगजनी, दुकानदारों से मारपीट की घटनाएं हुईं. सड़क जाम की वजह से आवश्यक सेवाएं भी बाधित रहीं. डेयरी और अस्पताल सेवाओं पर काफी बुरा असर पड़ा. चंद उपद्रवियों ने कानून को अपने हाथ में ले लिया. बंद समर्थकों ने महिलाओं से र्दुव्‍यवहार किया. पुलिस मूकदर्शक बनी […]

झारखंड बंद के दौरान राजधानी रांची में हिंसा, तोड़-फोड़, आगजनी, दुकानदारों से मारपीट की घटनाएं हुईं. सड़क जाम की वजह से आवश्यक सेवाएं भी बाधित रहीं. डेयरी और अस्पताल सेवाओं पर काफी बुरा असर पड़ा. चंद उपद्रवियों ने कानून को अपने हाथ में ले लिया. बंद समर्थकों ने महिलाओं से र्दुव्‍यवहार किया. पुलिस मूकदर्शक बनी रही.

इन घटनाओं ने पुलिस व प्रशासन की भूमिका को कठघरे में खड़ा कर दिया है. सवाल खड़ा होता है कि क्या हमारा प्रशासन बंद से निबटने के लिए तैयार है? यदि हां, तो उपद्रवियों के खिलाफ तत्काल सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की गयी? बंद को समय-समय पर न्यायपालिका ने असंवैधानिक ठहराते हुए अनुचित बताया है. व्यवस्था दी गयी थी कि बंद के दौरान हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई बंद के आयोजकों से की जानी चाहिए. बावजूद इसके हमारे देश में तमाम जनसंगठन और राजनीतिक दल समय-समय पर बंद आहूत करते रहे हैं.

बंद का आयोजन एक राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा है. कई बार बंद का मकसद सिर्फ अपनी ताकत दिखाने के लिए किया जाता है. झारखंड में स्थानीय नीति की मांग को लेकर बंद का आह्वान किया गया था. कई राजनीतिक दलों का दबा-छिपा समर्थन रहा. सवाल उठता है कि जब ये राजनीतिक दल सत्ता में थे, तो उन्होंने स्थानीय नीति बनाने की संजीदा कोशिशें क्यों नहीं कीं?

आज भी जब स्थानीय नीति बनाने की मांग उठ रही है, तो यह सभी राजनीतिक दलों का फर्ज बनता है कि वे राजनीति से ऊपर उठ कर आम सहमति कायम करने का रास्ता अख्तियार करें तथा सरकार को भरपूर सहयोग प्रदान करें, न कि राजनीतिक लाभ के लिए अपने सिद्धांतों से भी अलग हट कर बयानबाजी करके माहौल बिगाड़ने के आरोपों का सामना करते नजर आयें. ख्याल रहे कि लोकतंत्र में असहमति दर्शाने के लिए भी लोकतांत्रिक तरीके अपनाये जाने चाहिए, वरना यह भीड़तंत्र बनकर रह जाता है और भीड़ का कोई दर्शन नहीं होता? अपनी बातें रखने का यह कौन-सा तरीका है? इस उपद्रव में जो भी हैं, उन्हें चिह्न्ति कर कानूनी कार्रवाई के दायरे में लाने की जरूरत है, ताकि उपद्रवियों को कड़ा सबक मिले.

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