।।राजेन्द्र कुमार।।
लखनऊः गन्ना पेराई को लेकर प्रदेश सरकार व निजी चीनी मिलों के बीच गतिरोध चरम पर पहुंच रहा है. जहां सरकार से सख्ती से कहा है कि सात दिसंबर तक सभी निजी चीनी मिलों में पेराई शुरू हो जानी चाहिए, अन्यथा पेराई ना करने वाली मिलों के खिलाफ कार्रवाई होगी. वही निजी चीनी मिलों के मालिकानों ने सरकार के इस निर्देश को मानने से इंकार कर दिया है. चीनी मिल मालिकों के संगठन ने कहा है कि वर्तमान परिस्थिति में मिलों को चलाना बूते से बाहर है,सरकार चाहे तो खुद मिलें चला लें. चीनी उद्योग के इस इंकार से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का इकबाल ही दांव पर लग गया है.
यूपी की सत्ता संभालने के बाद अखिलेश यादव के समक्ष ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं हुई कि कोई संगठन उनकी सरकार के निर्देश को इस तरह से स्पष्ट रूप से मानने को मना कर दे. यह पहला मौका है जब राज्य में निजी चीनी मिल मालिकों ने एकजुट होकर चीनी मिलों को चलाने से मना किया है. चीनी मिलों के इस जवाब को राज्य के प्रमुख सचिव गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग राहुल भटनागर उचित नहीं मानते. उनका कहना है कि सरकार की ओर से मिलों की भलाई के लिए यथासंभव व्यवस्था कर दी है. चीनी मिल मालिकों के संगठन की मांग पर सरकार ने गन्ना क्रय कर और प्रवेश कर छूट के साथ अन्य सुविधाएं भी प्रदान की है. इसके बाद मिलों को 280-290 रुपये गन्ना मूल्य भुगतान करने के बाद वित्तीय घाटा नहीं होगा. चीनी मिलों द्वारा गन्ना मूल्य 225 रुपए प्रति क्विंटल कर देने की मांग जायज नहीं. राहुल का दावा है कि गत पेराई सत्र की तुलना में चीनी मिलों को करीब 20 रुपए प्रति क्विंटल लाभ होगा.
किसान जागृति मंच के संयोजक डा. सुधीर पवार का यह दावा है. वह कहते हैं कि सूबे की खराब कानून व्यवस्था को लेकर अखिलेश यादव की सरकार पर विपक्षी दल हमलावर रूख अपनाते रहे हैं. अब सूबे के गन्ना किसान मुख्यमंत्री से नाराज हो रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि चीनी मिल मालिकों के दबाव में सरकार ने गन्ना मूल्य में इस बार इजाफा नहीं किया. उसके बाद भी निजी चीनी मिलों के मालिक गन्ने की पेराई शुरू नहीं कर रहे हैं. चीनी मिलों के इस रूख के खिलाफ सरकार को सख्ती करनी चाहिए, वही मुख्यमंत्री अभी तक सिर्फ चेतावनी दे रहे हैं. अब यदि मुख्यमंत्री ने निजी चीनी मिल मालिकों के खिलाफ सख्ती नहीं की तो इसका असर उनके इकबाल पर पड़ेगा और किसान सपा से दूरी बना लेगा.