देवघर: मधुपुर अनुमंडल अंतर्गत मारगोमुंडा थाना क्षेत्र के किशनपुर गांव में तीन साल के दौरान लगातार दूसरी बार गन फैक्ट्री का उदभेदन तो हुआ, किंतु अब तक किंगपिन का पता पुलिस नहीं लगा सकी है. पुन: इस अवैध कारोबार के उदभेदन के करीब तीन माह बीतने को है. बावजूद पुलिस यह पता नहीं कर सकी है कि किसके संरक्षण में हथियार बनता था.
यह अवैध धंधा सुनसान स्थल पर बने दो कमरे में ही संचालित हो रहा था. इस कारण लोग शंका भी नहीं कर पाते थे. पुलिस को अनुसंधान में पता चला है कि इस अवैध कारोबार का लिंक बिहार के मुंगेर से जुड़ा है. कारोबार का जाल बिहार, बंगाल, ओड़िसा सहित अन्य प्रांतों तक फैला है. 2010 में भी इस गन फैक्टरी में छापेमारी हुई थी. आरोपित इसी साल कुछ महीने पूर्व बेल पर छूटे थे.
संरक्षण में अवैध कारोबार का संचालन
तीन वर्ष के अंदर दो बार अवैध गन फैक्टरी का पर्दाफाश होने के बाद अब भी कई रहस्य बरकरार है. दोनों ही बार काम करने वाले कारीगर और मकान मालिक ही अभियुक्त बने. इतने बड़े पैमाने पर कारोबार के लिए पैसा कहां से आया और इसका सरगना कौन है? इसका उद्भेदन होना अब भी बाकी है. नक्सली संगठन या सफेदपोश के संरक्षण के बगैर इतने बड़े पैमाने पर दो-दो बार अवैध गन फैक्टरी का संचालन संभव नहीं हो सकता.
दो बार में बरामद हुआ था दो सौ हथियार
इस बार 53 व पिछले बार 150 से भी अधिक पिस्टल पकड़े गये थे. पूर्व के मामले में भी उग्रवादी संगठन को पिस्टल सप्लाई की बात सामने आयी थी. 16 मार्च 2010 को भी कांड में 11 आरोपित नामजद बने थे. उस मामले में पांच आरोपित जेल गये थे जिसमें किशनपुर के ही तीन आरोपित थे. बताया जाता है कि किशनपुर में निर्मित हथियारों की आपूर्ति रेल व सड़क मार्ग से अपराधियों द्वारा किया जाता था. यह भी पता चला है कि जांच में कई राज दबे हुए रह गये थे. हथियारों की सप्लाई लोहरदगा समेत कई अन्य जगहों पर विभिन्न संगठनों को होने की बात आ रही थी. सफेदपोश के संरक्षण की भूमिका की भी जांच करायी जाय तो कई राज खुल सकते हैं.