।। अंजलि सिन्हा।।
(महिला मुद्दों की जानकार)
भारतीय महिला बैंक की पहली शाखा का उद्घाटन मुंबई में हो गया है. इसी के साथ अहमदाबाद, गुवाहाटी समेत छह अन्य शहरों में भी इसकी शाखाओं का उद्घाटन हुआ है. अगले छह माह में ही इसकी 20 शाखाएं हो जायेंगी. अनुमान है कि 2020 तक उसकी 770 शाखाएं खुल जायेंगी. मुंबई में जहां बैंक के उद्घाटन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी ने शिरकत की, वहीं गुवाहाटी में साहित्य की जानीमानी विदुषी को आमंत्रित किया गया था.
यह महिलाओं का अपना बैंक है, जिसमें सिर्फ महिलाएं कर्मचारी होंगी, यद्यपि पुरुष इसमें अपना खाता खोल सकते हैं, लेकिन कर्ज आदि की सुविधाओं में महिलाओं को वरीयता मिलेगी. महिला सशक्तीकरण की दिशा में इस शुरुआत को महत्वपूर्ण माना जा रहा है. यह नारा दिया गया है कि ‘महिला सशक्तीकरण-भारत का सशक्तीकरण.’ ज्ञात हो कि फरवरी के अंत में बजट घोषणा के समय ही वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने इसकी घोषणा की थी और एक हजार करोड़ की पूंजी आवंटित की गयी थी.
बैंक के उद्घाटन के वक्त इस बात को रेखांकित किया गया कि बैंक द्वारा दिये गये क्रेडिट में महिलाओं का प्रतिशत महज 7.3 है. पालनाघर, केटरिंग आदि लघु उद्योगों को भी कर्ज देकर यह कोशिश की जायेगी कि महिलाओं के सशक्तीकरण को बढ़ावा मिले. इस बैंक की चेयरपर्सन ऊषा अनंतसुब्रह्मण्यम के मुताबिक, बैंक महिलाओं से जुड़े उत्पादों पर अधिक फोकस करेगा. महिला सशक्तीकरण के लिए कोई भी कदम स्वागतयोग्य है. इस तरह, भारतीय महिला बैंक यदि ठीक से संचालित हो सके, सरकार यदि धन मुहैया कराये तथा महिला ग्राहक इस सुविधा का लाभ उठा सकें, तो अच्छा है. ऐसे कदमों से इस पुरुष वर्चस्व वाले समाज को स्त्री हितैषी वातावरण तैयार करने में मदद मिलेगी. लेकिन, नीतिगत स्तर पर हमें इन प्रयासों से भ्रम नहीं पालना चाहिए और. हमें चिड़िया की आंख साधने की तरह हमेशा यह पड़ताल करना जरूरी है कि दूरगामी तथा स्थायी रूप से महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए क्या आवश्यक है?
सवाल है, क्या महिला सशक्तीकरण के लिए इससे बेहतर रास्ता यह नहीं होता कि सभी बैंकों में महिलाओं की नियुक्ति को बढ़ावा दिया जाता तथा इनमें उनकी कुछ फीसदी नियुक्ति सुनिश्चित कर दी जाती? एक अलग ढांचा खड़ा करने के बजाय अगर यह किया जाता कि जो सुविधाएं इस महिला बैंक में महिलाओं को देने की बात की जा रही है, वह अगर सभी बैंकों का नियम बनता, तो सभी जरूरतमंद महिलाएं उसका लाभ उठातीं. यह बात जरूर है कि सरकार को इसके लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती तथा अधिक राशि की भी जरूरत पड़ती. यदि सभी शाखाओं में उनका संख्या बल बढ़ेगा और उन्हें खाता खोलने के लिए वरीयता दी जायेगी, तो वे वहां तक पहुंचेंगी भी. यह पूरे समाज तथा परिवार पर असर डालेगा. इस रूप में सशक्तीकरण का स्तर व्यापक होता.
‘फस्र्ट पोस्ट’ के अपने एक आलेख में मदन सबनविस ने भारतीय महिला बैंक के बिजनेस मॉडल पर कुछ सवाल खड़े किये हैं. वे मानते हैं कि अगर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के जरिये ही इस काम को बढ़ावा दिया जाता, तो नये बैंकों के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने जो नये नियम बनाये हैं, उनका पालन होता. बैंकों को प्रोत्साहित किया जाता कि अगर उन्होंने महिलाओं के लिए विशेष सुविधाएं मुहैया करायीं, तो शाखाओं की लाइसेंसिंग में उन्हें वरीयता दी जाती, यहां तक कि प्रायरिटी सेक्टर के कज्रे में भी प्रधानता दी जाती. इसके अलावा कज्रे देने में अपनाया गया जोखिम चूंकि बड़े बैंक की बैलेंस शीट का हिस्सा होता, तब बैंक के लिए रिस्क अर्थात जोखिम कम होता. अब भारतीय महिला बैंक के लिए रिकवरी, परिसंपत्ति/ एसेट्स की गुणवत्ता, कर्ज देने में लक्ष्य आदि की जिम्मेदारी निभानी होगी. साफ है कि यह कदम प्रायोगिक किस्म का है, जिसके अंतर्गत हम बैंकों का एक नया ढांचा बना रहे हैं. यही काम हम लोगों ने यूनिक आइडेंटिटी नंबर के संदर्भ में किया है.
इसमें कोई दो राय नहीं कि हम दुनिया के एकमात्र देश होंगे, जहां आवश्यक सामाजिक सेवाओं के सार्वजनिक वितरण को ‘योजनाओं’ के संदर्भ में देखा जाता है, जिन्हें कृतज्ञ जनता के नाम पर सरकारें ‘लोकरंजक खर्चो के नाम पर पेश करती हैं. बाकी तमाम देशों में यह सरकारों का काम ही होता है कि वह जनता के पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार एवं जीवन यापन सुगम बनाने को सुनिश्चित करें.
आजकल स्त्री सशक्तीकरण के नाम पर टोकन कामों की बहुतायत होने लगी है. इधर अपनी राजधानी में महिला पोस्ट ऑफिस की शुरुआत पहले ही हो गयी है. पुरानी दिल्ली के इलाके में महिला बाजार बन रहा है, जहां दुकानदार सिर्फ महिलाएं होंगी. रेलवे ने महिला स्पेशल ट्रेन दिल्ली से 150 किमी की दूरी पर पहले ही चलवा दी है. अभी कौन-कौन से मंत्रालय क्या-क्या महिला स्पेशल काम करेंगे, आगे देखते जाना है.