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कोयला कांड: सीबीआई ने न्यायमित्र नियुक्त करने के उच्चतम न्यायालय के प्रस्ताव का किया विरोध

नयी दिल्ली : कोयला खदान आबंटन घोटाला कांड में केंद्रीय जांच ब्यूरो की मोटी-मोटी जांच रिपोर्टों का अवलोकन करके न्यायाधीशों को इसकी खामियों की जानकारी देने के लिये न्याय मित्र नियुक्त करने के प्रस्ताव का जांच एजेन्सी ने आज उच्चतम न्यायालय में पुरजोर विरोध किया. जांच ब्यूरो का तर्क है कि यह उसकी स्वतंत्रता के […]

नयी दिल्ली : कोयला खदान आबंटन घोटाला कांड में केंद्रीय जांच ब्यूरो की मोटी-मोटी जांच रिपोर्टों का अवलोकन करके न्यायाधीशों को इसकी खामियों की जानकारी देने के लिये न्याय मित्र नियुक्त करने के प्रस्ताव का जांच एजेन्सी ने आज उच्चतम न्यायालय में पुरजोर विरोध किया.

जांच ब्यूरो का तर्क है कि यह उसकी स्वतंत्रता के साथ समझौता होगा. न्यायमूर्ति आर एम लोढा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष सुनवाई शुरु होते ही जांच एजेन्सी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेन्द्र शरण ने न्याय मित्र नियुक्त करने के न्यायाधीशों के प्रस्ताव का जोरदार विरोध किया. उन्होंने कहा कि यह उसे स्वीकार्य नहीं है क्योंकि यह उसकी जांच की निगरानी जैसा होगा.

शरण ने कहा, ‘‘इससे इस मामले की जांच में हस्तक्षेप होना निश्चित है. यदि जांच रिपोर्ट न्याय मित्र के साथ साझा की गयी तो यह इस संस्था की स्वतंत्रता के साथ समझौता होगा. रिपोर्ट न्यायालय के लिये है और किसी अन्य व्यक्ति को इसके अवलोकन की अनुमति नहीं दी जायेगी.’’ उन्होंने कहा, ‘‘न्यायमित्र मुझे स्वीकार्य नहीं है.’’ न्यायाधीशों ने कहा कि जांच की निगरानी करने का सवाल ही नहीं है और वह तो सिर्फ तफतीश की निगरानी ही कर रहे हैं.

न्याय मित्र की नियुक्ति के विचार के खिलाफ सीबीआई के इस रुख पर आश्चर्य व्यक्त करते हुये न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘यह समझना मुश्किल हो रहा है कि न्याय मित्र की नियुक्ति से जांच किस तरह प्रभावित होगी. यदि न्यायालय को एक आपसे इतर न्यायमित्र के तथ्यपरक दृष्टिकोण का लाभ मिलता है तो इसमें समस्या क्या है. आप इन रिपोर्ट के अवलोकन में हमें हो रही परेशानियों को महसूस नहीं कर रहे हैं और न्याय मित्र हमें यह बता सकते हैं कि इसमें क्या कमी है.’’

न्‍यायालय ने कहा कि उससे रिपोर्ट पर टिप्पणी के बगैर ही उसका अवलोकन करने की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए. न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि कोयला खदान आबंटन घोटाला प्रकरण में सीबीआई की मोटी-मोटी रिपोर्ट के विश्लेषण के लिये उसे मदद की आवश्यकता है और न्यायालय ने न्याय मित्र के रुप में वरिष्ठ अधिवक्ता टी आर अंद्यारुजिना के नाम का सुझाव भी दिया था.

इस मामले में एक याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने भी इस पर आपत्ति की थी. उनका कहना था कि अंद्यारुजिना ने पहले केंद्र सरकार और कुछ खदान कंपनियों का प्रतिनिधित्व किया था.

न्यायालय ने सभी पक्षों के तर्क सुनने के बाद इस मामले में कोई आदेश नहीं दिया. न्यायालय ने कहा कि इस बारे में बाद में विचार किया जायेगा.

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