-विवेक चंद्र-
रांचीः झारखंड में निर्माणाधीन छह रेल प्रोजेक्ट का स्टीमेट (प्रोजेक्ट कॉस्ट) 3778 करोड़ रुपये बढ़ गया है. वर्ष 2002 में जब प्रोजेक्ट शुरू हुआ था, तो 556 किमी रेलवे लाइन बिछाने का स्टीमेट कॉस्ट 1997 करोड़ रुपये ही था. पर रेलवे ने प्रोजेक्ट पूरा नहीं किया और 2007 में स्टीमेट बढ़ा कर 3771 करोड़ कर दिया. अब एक बार फिर से रेलवे ने स्टीमेट बढ़ा कर 5775 करोड़ रुपये करने की जरूरत बतायी है. बढ़े स्टीमेट पर रेल मंत्रालय के साथ एमओयू करने की फाइल परिवहन मंत्री चंपई सोरेन के पास विचाराधीन है. प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए राज्य सरकार पहले ही 2219 करोड़ रुपये रेलवे को दे चुकी है.
काम में कोताही, हिस्सा देने में कंजूसी : झारखंड में रेल प्रोजेक्ट पूरा करने को लेकर रेलवे कोताही बरत रहा है. अपना हिस्सा देने में भी कंजूसी कर रहा है. 2002 में सभी प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए हुए करार में कुल लागत का 66.66} हिस्सा राज्य को वहन करना था.शेष 33.33 फीसदी सहायता रेल मंत्रालय की ओर से प्रदान की जानी थी. काम पूरा नहीं होने पर 2007 में रेलवे ने प्रोजेक्ट कॉस्ट को लगभग दोगुना कर दिया. साथ ही यह भी तय किया कि बढ़े हुए कॉस्ट (1774 करोड़) में रेल मंत्रालय और राज्य सरकार का आधा-आधा (50-50 फीसदी) हिस्सा होगा. झारखंड अपना हिस्सा हमेशा देता रहा है. अब तक प्रोजेक्ट में कुल 3110.62 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. इसमें झारखंड सरकार 2219 करोड़ रुपये रेलवे को उपलब्ध करा चुकी है. पर रेलवे ने अपने हिस्से से सिर्फ 891.62 करोड़ रुपये खर्च किये हैं.
एक दशक में एक प्रोजेक्ट पूरा
झारखंड में रेल लाइन बिछाने की जिम्मेवारी रेल मंत्रलय की है. झारखंड सरकार का काम रेलवे को राशि उपलब्ध कराने और काम में सहयोग देने का ही है. रेल मंत्रालय की ओर से काम में कोताही बरती जा रही है. एक दशक से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी रेलवे झारखंड के छह में से सिर्फ एक प्रोजेक्ट ही पूरा कर सका है. पांच रेलवे प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए एक बार फिर से अवधि विस्तार की तैयारी कर रहा है. इस बार रेलवे ने वर्ष 2016 तक सभी प्रोजेक्ट पूरा करने की बात कही है. इससे राज्य को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है.
मॉनिटरिंग नहीं होने से बढ़ रही लागत
‘‘देश में रेलवे समेत अन्य विभागों की 150 करोड़ से अधिक की लगभग 200 योजनाओं के क्रियान्वयन में विलंब हो रहा है. कई योजनाओं के प्रोजेक्ट कॉस्ट दो से तीन गुना तक बढ़ गये हैं. प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन कमेटी में योजनाओं के संबंध में विमर्श किया जाता है, पर इसकी मॉनिटरिंग नहीं हो पा रही है.
पीएन सिंह, सांसद