हम अकसर किसी से कहते हैं कि तुम भी गिरगिट की तरह रंग बदल रहे हो! जाहिर है ऐसा हम गिरगिट के स्वभाव को ध्यान में रख कर कहते हैं, जो समय-समय पर अपना रंग बदलने के लिए जाना जाता है. पर आपने कभी सोचा है कि गिरगिट अपना रंग कैसे बदल लेता है? क्या गिरगिट के भीतर रंगों का भंडार होता है, जो जरूरत के अनुसार उनका इस्तेमाल कर लेता है? दरअसल, इस प्राणी की त्वचा में एक विशेष गुण होता है.
वह गुण होता है उसकी विशेष प्रकार की कोशिकाएं यानी सेल क्रोमाटाफोरस में. ये सेल क्रोमाटाफोरस दिमाग द्वारा नियंत्रित होती हैं. किसी भी खतरे को भांप कर गिरगिट का दिमाग इन कोशिकाओं को संदेश भेजता है. कोशिकाएं इसी के अनुरूप फैलने या सिकुड़ने लगती हैं, तो ये सेल क्रोमाटाफोरस अपना आकार बदल कर छोटी या बड़ी हो जाती हैं और पिगमेंट के कारण गिरगिट का रंग बदल जाता है. वह फौरन चारों तरफ के रंगों में घुल-मिल कर अपने शत्रुओं से अपनी रक्षा कर लेती है. शिकार को पकड़ने के लिए भीपत्तोंया स्थानीय रंग को धारण कर लेती है.
तापमान कम या ज्यादा होने पर भी इसका असर उसकी त्वचा पर दिखाई देने लगता है. इसके शरीर से विशेष प्रकार के हार्मोन के निकलने से कोशिकाएं उत्तेजित होने लगती हैं. गिरगिट की त्वचा में ऊपर से नीचे पीली, भूरी, काली और सफेद रंग के पिगमेंट से भरी कोशिकाएं होती हैं. इंटरमेडिन, एसीटिलकोलिन व एड्रीनेलिन नाम से हार्मोन ही उन कोशिकाओं को उत्तेजित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं. दिलचस्प बात है कि गिरगिट अकेलापन पसंद करते हैं. जब उसका शत्रु से सामना होता है, तो अपने पीले धारियों के साथ लाल रंग में बदल जाते हैं और जब वह बीमार होते हैं, तो उनका रंग पीला हो जाता है, क्योंकि अब उसमें रंग बदलने के लिए ऊर्जा बहुत कम बचती हैं.
प्रजातियां
मुख्य रूप से दो जातियां वर्णित हैं- ब्रूकेसिया (19 प्रजातियां) और कैमेलियो (70 प्रजातियां). इनमें से लगभग आधी प्रजातियां सिर्फ मेडागास्कर में पायी जाती है, अन्य अफ्र ीका में सहारा के दक्षिण में. पश्चिमी एशिया में दो प्रजातियां पायी जाती हैं, एक दक्षिण भारत और श्रीलंका में और दूसरी (यूरोपीय गिरिगट, कैमेलियो, कैमलियॉन) उत्तरीअफ्रीकासे लेकर दक्षिणी स्पेन तक. अधिकांश गिरिगट 17-25 सेमी लंबे होते हैं, अधिकतम लंबाई 60 सेमी तक हो सकती है. कुछ में घुमावदार पूंछ भी पायी जाती है. इसकी बाहर ओर निकली हुई आंखें एक-दूसरे से भिन्न दिशा में घूम सकती हैं. दक्षिणअफ्रीकाकी कुछ प्रजातियां अंडों के बजाय बच्चों को ही जन्म देती हैं.