– मुश्ताक खान –
निरंतर ग्लूकोज मॉनिटरिंग सिस्टम एवं इंसुलिन थेरेपी एक बेहद उपयोगी तंत्र होकर उभरा
मधुमेह पर नियंत्रण ग्लूकोज के स्तर के आधार पर इंसुलिन लेने की मात्र पर निर्भर
कोलकाता : मधुमेह चिकित्सा के क्षेत्र में काफी काम करने के बावजूद अभी भी चिकित्सा वर्ग इस जानलेवा रोग पर पूरी तरह काबू पाने में सक्षम नहीं हो पाया है.
अपोलो ग्लेनिगल्स अस्पताल के डायबिटीज व इंडोक्रिनोलॉजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. तीर्थंकर चौधरी ने बताया कि हमारा शरीर ग्लूकोज के स्तर को बड़े ही कुशल तरीके से संभालते हुए हर समय बगैर किसी उतार-चढ़ाव के इसे सामान्य बनाये रखता है.
ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन दिया जाता है. वर्तमान में मधुमेह पर नियंत्रण ग्लूकोज के स्तर के आधार पर इंसुलिन लेने की मात्र पर निर्भर करता है. ऐसे में दिन में एक से चार बार तक इंसुलिन लेने की प्रक्रिया होती है. इससे जीवन स्तर काफी कमजोर व जटिल हो जाता है. मधुमेह के विशेषज्ञ डॉ. चौधरी का दावा है कि निरंतर ग्लूकोज मोनिटरिंग सिस्टम एवं इंसुलिन थेरेपी एक बेहद उपयोगी तंत्र है.
निरंतर ग्लूकोजा मोनिटरिंग सिस्टम हमें प्रत्येक 5-15 मिनट के अंदर रक्त में ग्लूकोज के स्तर की जानकारी देता है, जिससे इंसुलिन की खुराक की गणना करने, ग्लूकोज के स्तर में उतार-चढ़ाव को रोकने में मदद मिलती है.
मधुमेह क्या है : डॉ. चौधरी के अनुसार, मधुमेह (जिसे आमतौर पर लोग शुगर रोग कहते हैं) रस प्रक्रिया का एक विकार है, जहां शरीर उर्जा के लिए ग्लूकोज या रक्त शर्करा का उपयोग कर मुसीबत में फंस जाता है. इससे व्यक्ति के शरीर में वसा, लीवर (जिगर) और मांसपेशियों की कोशिकाओं का इंसुलिन के साथ सही तालमेल नहीं बैठ पाता है.
इससे रक्त शर्करा उर्जा के लिए इन कोशिकाओं को एकतृत नहीं कर पाती है. इंटरनेशनल डायबिटिज फेडरेशन के अनुसार दुनिया भर में 371 मिलियन लोग मधुमेह से ग्रस्त हैं, जिनमें से 63 मिलियन मधुमेह रोगी भारत में हैं. भारत मे शहरी इलाकों में मधुमेह 12-18 प्रतिशत एवं ग्रामीण इलाकों में 3-6 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है.
मधुमेह के प्रकार : डॉ. चौधरी के अनुसार डायबिटिज दो प्रकार का होता है. टाइप वन एवं टाइप टू. टाइप वन मधुमेह में शरीर इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता है. यह अधिकतर बच्चों और युवाओं में होता है. जो बचने के लिए पूरी तरह इंसुलिन के इंजेक्शन पर निर्भर करते हैं. टाइप टू मधुमेह में रोगी के शरीर में इंसुलिन का उत्पादन तो होता है, पर वह शरीर की जरूरत से बेहद कम होता है. यह मधुमेह आमतौर पर उम्र बढ़ने के साथ अपना शिकार बनाता है.
रोग के लक्षण : अक्सर मधुमेह का रोग शुरू में पकड़ में नहीं आता है, क्योंकि शुरूआत में इसके लक्षण साफ नजर नहीं आते हैं. बार-बार पेशाब लगना, असामान्य प्यास, जबरदस्त भूख, असामान्य वजन का घटना, अत्यधिक थकान व चिड़चिड़ापन डायबिटिज के कुछ प्रमुख लक्षण हैं.
टाइप टू डायबिटिज के मुख्य लक्षण: डॉ. चौधरी ने बताया कि लगातार संक्रमण, धुंधला दिखना, कटने व जलने पर जल्द ठीक न होना, हाथ व पैर का सन्न होना, त्वचा, मसूढ़े एवं मुत्रशय में संक्रमण होना टाइप टू डायबिटिज के मुख्य लक्षण हैं. शारीरिक गतिविधि का कम होना, आहार ठीक नहीं होना एवं कमर के आसपास वजन बढ़ने से भी इस रोग का खतर बढ़ता है.
मधुमेह का प्रभाव : डायबिटीज के इलाज में दुनिया भर में नाम कमा चुके डॉ. चौधरी ने बताया कि मधुमेह का सटीक इलाज नहीं करवाने से अंधापन, गुर्दे का काम न करना और स्नायू (नर्व) को नुकसान पहुंच सकता है.
ट्रिटमेंट प्लान : डॉ. चौधरी के अनुसार मधुमेह के इलाज के तरीके में हुए महत्वपूर्ण प्रगति में ग्लूकोज मोनिटरिंग एवं इंसुलिन वितरण की प्रक्रिया को सहज बनाया गया है. पिछले दो दशत में इस संदर्भ में काफी अच्छे परिणाम सामने आये हैं.
मधुमेह की रोकथाम (सीजीएमएस तरीका) : मधुमेह की सफलतापूर्वक रोकथाम के लिए एक निगरानी प्रणाली की जरूरत है, जो लगातार आपके ग्लूकोज स्तर की जांच करता रहे. ग्लूकोज मोनिटरिंग का सबसे सामान्य तरीका ब्लड ग्लूकोज मीटर एवं कंटिन्यूअस ग्लूकोज मोनिटरिंग (सीजीएम) सिस्टम है.
सीजीएम ग्लूकोज के स्तर को मापने का एक तरीका है. शरीर में ग्लूकोज के स्तर की जांच के लिए बने सीजीएम में एक ग्लूकोज सेंसर, एक ट्रांस्मीटर एवं एक छोटा सा एक्सट्रनल मोनिटर होता है. जिसे इंसुलिन पंप में भी लगाया जाता है. कंटिन्यूअस ग्लूकोज मोनिटरिंग (सीजीएम) सिस्टम फिंगरस्टिक्स के मुकाबले पूरी जानकारी उपलब्ध कराता है, जिससे इलाज के लिए सही निर्णय लेने में मदद मिलती है. फलस्वरूप ग्लूकोज को बेहतर तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है.
इंसुलिन पंप थेरेपी, मधुमेह उपचार के चिकित्सा की आधारशिला : डॉ. चौधरी ने बताय कि इंसुलिन पंप शरीर के बाहरी हिस्से में लगाये जाने वाला एक छोटा सा यंत्र है, जिसे अक्सर एक बेल्ट पर या जेब में रखा जाता है. पंप आसानी से सीधे शरीर में इंसुलिन पहुंचाने का काम करता है. रोगी अपने पंप को प्रत्येक दो या तीन दिन के अंदर इंसुलिन रिफिल कर लेते हैं. इंसुलिन पंप तक्लीफदेह इंजेक्शन का विकल्प है. ऐसे में रोजाना तीन-चार इंजेक्शन लगाने के बजाय प्रत्येक तीन दिन में एक बार इंसुलिन पंप के द्वारा इंसुलिन लिया जा सकता है. इससे टाइप वन व टाइप टू दोनों प्रकार के मधुमेह पर नियंत्रण पाया जा सकता है.
डॉ. चौधरी के अनुसार, यूं तो बाजार में कई तरह के इंसुलिन पंप मौजूद हैं, पर उनमें सबसे बेहतर व विकसित इंसुलिन पंप टेक्नॉलोजी मेडट्रोनिक का पैरडाइम वीईओ है. वीईओ पंप मधुमेह के इलाज में एक वरदान साबित हुआ है. दुनिया भर में लगभग सात लाख लोग मधुमेह के इलाज के लिए वर्तमान में इंसुलिन पंप का इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे काफी फायदा मिला है.