जन लोकपाल आंदोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी (आप) पहली बार राजधानी दिल्ली में चुनावी किस्मत आजमा रही है. कांग्रेस और भाजपा के परंपरागत दबदबे वाली दिल्ली में ‘आप’ एक नयी किस्म की राजनीति के साथ तीसरी शक्ति के रूप में जनता के बीच है. ‘आप’ नेता मनीष सिसोदिया से प्रीति सिंह परिहार की बातचीत के मुख्य अंश.
आप पहली बार बतौर प्रत्याशी जनता के बीच हैं. जनता आपसे क्या अपेक्षा कर रही है?
जनता के बीच एक बात बार-बार सुनने को मिलती है कि जिस तरह से बाकी के राजनीतिक दल बाद में बदल गये, धोखा दिया हमेशा, चुनाव जीतने के बाद नेता लौटे ही नहीं, न कोई काम कराया, न ही कभी मिलने आये, उनसे मिलने जाओ तो धक्का देकर बाहर भगा देते हैं, ऐसे मत निकल जाना. सबसे बड़ी अपेक्षा तो यही है. इसके साथ ही बहुत सारी स्थानीय समस्याओं के समाधान की अपेक्षा है.
आम आदमी पार्टी चुनाव प्रचार से लेकर अपने मेनिफेस्टो तक में अन्य राजनीतिक दलों से किस तरह अलग है ?
राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में जो एक बहुत बड़ा आडंबर करते हैं, हम वो नहीं कर रहे हैं. बहुत कम खर्चे में प्रचार होना चाहिए. मेरा मानना है कि आप चुनाव को जितना खर्चीला बनाते जायेंगे, उतना ही उसमें सोर्स ऑफ मनी पॉल्यूट होते चले जायेंगे. इसलिए हमने सादगीपूर्ण और सस्ते चुनाव प्रचार को अपनाया है. वो चाहे ऑटो पर स्टीकर लगाने का काम हो या घरों के ऊपर बोर्ड लगाने का. हमने रिक्शे पर खूब प्रचार किया है. साइकिल रिक्शा, हैंड माइक, डोर टू डोर- हमने चुनाव प्रचार के ये तरीके अपनाये हैं, जो बहुत ही सस्ते हैं और साथ-साथ बहुत इफेक्टिव भी. इनमें दिखावा नहीं है. हमारी सभाएं आप देखें, तो उनमें हम भव्य स्टेज नहीं बनाते. एकदम सादगी से एक जगह एकत्र होकर अपनी बात कहते हैं. भाषण नहीं देते, जनता से पूछते हैं कि वह अपने इलाके में कौन से बदलाव चाहती है.
दिल्ली की सत्तर विधान सभाओं के लिए ‘बेदाग’ और जीतने योग्य उम्मीदवार खोजना कितनी बड़ी चुनौती रही आप लोगों के लिए ?
एक चुनौती तो थी, क्योंकि हमने जो मानदंड बनाया, उसमें पहली सीढ़ी यह थी कि हमारे प्रत्याशी की छवि ईमानदार हो. वह चुनाव जीतनेवाला चेहरा हो, यह हमारा क्राइटेरिया नहीं था. हमारे लिए जरूरी था कि उम्मीदवार की छवि अच्छी होनी चाहिए. उसके ऊपर भ्रष्टाचार और चरित्र हनन का कोई आरोप नहीं होना चाहिए. आपराधिक मुकदमा नहीं होना चाहिए.
लेकिन समाज में अच्छे लोगों की कमी नहीं है इसलिए चुनौती ईमानदार प्रत्याशी खोजना नहीं थी. दरअसल, जो लोग सामाजिक रूप से सक्रिय हैं, ईमानदार हैं, उनकी राजनीति में दिलचस्पी कम है. वे चुनाव के मैदान में आना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें पता है कि चुनाव लड़ना आज किस तरह का काम है. अपराधी भी चुनाव लड़ रहे होते हैं उनके साथ-साथ भ्रष्ट लोग भी. इसलिए उनके अंदर चुनाव मैदान में उतरने का आत्मविश्वास नहीं बन पाता. इसलिए असली चुनौती यह थी कि ऐसे लोगों को चुनाव में उतरने के लिए तैयार किया जा सके. आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए बनी चयन समिति का काम यह था कि ऐसे लोगों के मन में भरोसा जगाया जाये. हमने काफी हद तक यह भरोसा जगाया है और बहुत से ऐसे लोगों को आगे लेकर आये हैं जो ईमानदार इरादों के साथ चुनाव लड़ सकते हैं. यहां मैं यह कहना चाहूंगा कि अच्छे लोगों की समाज में कमी नहीं है, बस राजनीति में उनकी रुचि जगाना जरूरी है.
राजनीतिक दल जीतने वाले चेहरे चुनाव में उतारते हैं .आम आदमी पार्टी एकदम नये चेहरों को लेकर आयी है?
मैंने कहा न कि हमारी कसौटी यही थी कि प्रत्याशी ईमानदार होना चाहिए. हम बेईमान आदमी को चुनाव में नहीं उतारेंगे, फिर वो चाहे कितना भी जीतनेवाला चेहरा क्यों न हो.
इससे ‘आप’ के जीतने की संभावना भी प्रभावित हो सकती है?
ऐसा बिल्कुल नहीं है, क्योंकि जनता अब अच्छे और बुरे के फर्क को समझ चुकी है.
अभी तक के अनुभव से क्या लगता है कि आप मौजूदा राजनीति को बदल पाने में कामयाब होंगे?
मुङो लगता है कि राजनीति तो बदलने लगी है और राजनीतिक दलों के ऊपर बदलाव का बहुत बड़ा दबाव है. हालांकि, अभी तो उन्होंने दिखावा करना शुरू किया है. कांग्रेस और बीजेपी में पहली बार चुनाव लड़ने के इच्छुक कार्यकर्ताओं से फॉर्म भरवाया गया है. हम लोगों ने सबसे पहले फॉर्म भरवाया था. पहली बार चुनाव से पहले एक शॉर्ट लिस्ट बन रही है फिर प्रत्याशी तय किये जा रहे हैं. मैं बहुत बड़ी बात नहीं कहता, लेकिन यह संभावनएं हैं कि अगर ये दल अपनी राजनीति को नहीं बदलते हैं, तो इनका अस्तित्व संकट में आ जायेगा क्योंकि जनता ने एक नयी किस्म की राजनीति का सपना देखना शुरू कर दिया है.
चुनाव मैदान में आपका अब तक का अनुभव कैसा रहा है ?
पहले से चली आ रही राजनीति और राजनेता जन सरोकारों से पूरी तरह कट चुके हैं. अगर कोई कुछ काम करने की कोशिश कर भी रहा है, तो वह बहुत हवाई काम कर रहा है. मतलब वह ऐसे समाधान लेकर आ रहा है, जो जनता को नहीं चाहिए. मूल बात यह है कि जमीनी तौर पर लोग किन समस्याओं से जूझ रहे हैं, वे क्या चाहते हैं, इस बात की परवाह नहीं दिख रही है. कहीं. बस पैसा है, पैसा खर्च कर दो, उसमें से कुछ भ्रष्टाचार कर दो, कुछ शो ऑफ कर दो कि देखो हम ये कर रहे हैं, इस तरह का समाधान लोगों को नहीं चाहिए.
अगर ‘आप’ का प्रदर्शन इस चुनाव में उम्मीदों के अनुरूप नहीं होता है तब भी क्या ‘आप’ लंबी पारी खेलने को तैयार है?
हमारी पार्टी का प्रदर्शन हमारी उम्मीदों से कहीं आगे है. हमने जितना सोचा नहीं था, उससे अधिक हमें लोगों का साथ मिल रहा है. लगता था कि लोग हमें क्रिटिसाइज कर रहे होंगे, लेकिन जब हम लोगों के बीच जा रहे हैं, तो अपने प्रति एक विश्वास से भरा माहौल पा रहे हैं. हमारे सामने सवाल चुनाव में प्रदर्शन का नहीं है, सवाल है कि बिजली के दाम कैसे कम होंगे? महंगाई कैसे कम होगी? भ्रष्टाचार कैसे समाप्त होगा, स्कूलों की फीस कैसे कम होगी? अस्पतालों में दवाई और इलाज कैसे सहजता से लोगों को मिलेगा? हम यह नहीं सोच रहे हैं कि हमको लंबी रेस में जाना है. हमारी चिंता यह है कि ये सारे काम कैसे होंगे.
‘आप’ को अगर सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं मिलता, कुछ सीटें ही मिलती हैं, तो आप जिस बदलाव के सपने लोगों को दिखा रहे हैं, वह कैसे संभव होगा?
बेशक बहुत सी चीजें ऐसी हैं, जो दिल्ली में सरकार बनाने की स्थिति में ही पूरी हो सकती हैं लेकिन बहुत सारी चीजें ऐसी भी हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए विपक्ष में बैठ कर भी सरकार को मजबूर किया जा सकता है. और इसके लिए ईमानदारी तथा मजबूत इरादा चाहिए, जो हमारे पास है. आप इसे ऐसे देख सकते हैं कि हमने (हमने का मतलब है जनता ने, मैं अपनी या टीम की बात नहीं कर रहा) संसद में पक्ष या विपक्ष में नहीं बैठ क र भी शनिवार और रविवार को भी सरकार को संसद चलाने के लिए मजबूर कर दिया था. इसलिए अगर इरादा हो, तो बहुत कुछ किया जा सकता है. और मेरा मानना है कि एक विधायक में अगर समझ, हिम्मत और पक्के इरादे हैं, तो वह अपनी विधानसभा को मॉडल बना सकता है.
विवादित छवि वाले मौलाना तौकीर से अरविंद केजरीवाल की मुलाकात पर क्या कहेंगे?
मुङो लगता है कि चीजों को बहुत तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है. अरविंद वहां चादर चढ़ाने गये थे और उनसे उनकी मुलाकात हो गयी. हमें जो भी मिलता है हम सबको कहते हैं कि आप हमारे साथ जुड़ें. हमारी राजनीति तोड़ने की नहीं है. हमारा हिंदुओं को मुसलिमों से बचाने या मुसलिमों को हिंदुओं से बचाने का भाव नहीं है, हम चाहते हैं कि हिंदू-मुसलिम सब एक होकर राजनीति में आयें. हम शंकराचार्य पर भी यकीन करते हैं, श्री श्री रविशंकर और मौलानाओं पर भी. हम सब पर यकीन करते हैं.
फंड को लेकर ‘आप’ पर सवाल उठाये जा रहे हैं, इस पर क्या कहेंगे?
यह सिर्फ कोरी बकवास चल रही है. आम आदमी पार्टी के फंड पर तो सवाल उठ ही नही सकता, क्योंकि जिनसे भी हमे फंड मिल रहा है उनका नाम और मिलनेवाली राशि का ब्योरा हमने अपनी वेबसाइट पर डाल रखा है.
इस तरह के आरोपों का ‘आप’ के कार्यकर्ताओं पर कैसा असर पड़ता है?
इसका सकारात्मक असर ही हुआ है, आत्मविश्वास बढ़ा है. अगर हमने कोई चोरी की होती, तो ऐसे आरोप और जांच हमारे मन में डर पैदा करते. जो जांच इन्हें करनी है वो सब हमारी वेबसाइट पर मौजूद है. इससे एक अच्छी बात यह भी हुई कि जिन लोगों को पता नहीं था कि ‘आप’ को मिलने वाले चंदे की जानकारी हम वेबसाइट पर डालते हैं, वो भी इस बारे में जान गये. हमें मिलनेवाला चंदा बढ़ गया.