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हर भारतीय चेहरा एक किताब है

।। एमजे अकबर।।(वरिष्ठ पत्रकार)ऐसा कौन प्रज्ञावान व्यक्ति होगा, जो गैरजरूरी तथ्य के आकर्षण से खुद को बचा पाये! पश्चिम में औपचारिक डिनर टेबल पर कुर्सियों का क्रम इस तरह तय किया जाता था कि दो पुरुषों के मध्य एक स्त्री हो. यह इस मान्य सिद्धांत पर आधारित था कि किसी महिला की उपस्थिति पुरुषों के […]

।। एमजे अकबर।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
ऐसा कौन प्रज्ञावान व्यक्ति होगा, जो गैरजरूरी तथ्य के आकर्षण से खुद को बचा पाये! पश्चिम में औपचारिक डिनर टेबल पर कुर्सियों का क्रम इस तरह तय किया जाता था कि दो पुरुषों के मध्य एक स्त्री हो. यह इस मान्य सिद्धांत पर आधारित था कि किसी महिला की उपस्थिति पुरुषों के भद्र आचरण को सुनिश्चित करती है. कोई भी लैटिन कवि रोम में पैदा नहीं हुआ था. पुटरेरिको के लोग मदिरापान की अगली सुबह बची रह गयी खुमारी को अपने बगलों में नींबू रगड़ कर उतारा करते थे. रूसी महिला खिलाड़ी मारिया शारापोवा ने 2005 के विंबलडन में खेलते हुए कोर्ट पर 105 डेसीबल तीव्रता की चीख लगायी थी, जो किसी मर्दाना मोटरबाइक की आवाज से ज्यादा है. क्या ऐसी जानकारियां, जो मैंने यात्र के दौरान इधर-उधर का पढ़ते हुए छांट ली हैं, किसी मकसद को पूरा करती हैं? इस सवाल में एक तरह के आडंबर का झीना आभामंडल है, इसके साथ ही यह निराशाजनक रूप से पवित्रतावादी है. ज्ञान की सुंदरता इस कैथोलिक कथन में समाहित है कि हम यह कैसे जान सकते हैं कि हमारे लिए क्या जरूरी है, जब तक हम यह न जानें कि हम क्या नहीं जानते? हर वैज्ञानिक को दार्शनिक की तरह जिज्ञासावान होना चाहिए. कम जिज्ञासा, जिसका मैंने आपको कुछ बेहतरीन उदाहरण दिया है, उच्च जिज्ञासा की तरह ही व्यस्त रखनेवाली होती है.

हद में रहनेवाली जिज्ञासा ने आज तक किसी बिल्ली की जान नहीं ली है. अगर कोई बिल्ली मरी, तो इसलिए क्योंकि उसने निष्कर्ष निकाल कर छलांग लगा दी. अनजान के प्रति प्रश्नाकुलता से रोमांचक अभियानों की शुरुआत होती है. बगैर कदम बढ़ाये, कुछ हासिल नहीं होता. एक कोलंबस सफल हुआ होगा, तो दर्जनों समुद्र में ही गर्क भी हो गये होंगे. लेकिन, इससे क्या? अगली पीढ़ी के लिए असफलता आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है. यही विकास है.

क्रिस्टोफर ने कोई गलती की, तो यही कि उसने उन लोगों तक यूरोप के रोगों के स्थानांतरण का मार्ग खोल दिया, जिन्होंने कभी भी स्मॉल पॉक्स जैसी किसी जानलेवा चीज का नाम नहीं सुना था, क्योंकि उन्हें इस बात का एहसास था कि इनसानी जरूरतों को प्रकृति के उपहारों तक सीमित रखा जाना चाहिए. खोज तब अभिशाप का रूप ले लेती है, जब यह आक्रमण और शोषण को उकसावा देती है. ये दोनों क्रूरता दिखाने की अनंत इनसानी क्षमता को प्रदर्शित करते हैं. किसे पता कि मंगल ग्रह पर भेजे जानेवाले विभिन्न अभियान, जिनमें एक अभियान भारत का भी है, क्या खोज करेंगे? लेकिन अगर हम मंगल को पृथ्वी में बदलने की कोशिश करेंगे, तो यह भयावह मूर्खता होगी. अगर हम कभी भी मंगलवासियों को खोज लें, तो हम उनके लिए एक अपमानजनक शब्द खोज निकालेंगे और उनके खनिजों को ुचुराने के लिए जनसंहार की शुरुआत करेंगे. निजी अमेरिकी कंपनियों ने निवेशकों को मंगल की जमीन का टुकड़ा बेचना पहले ही शुरू कर दिया है.

जिज्ञासा का असल आकर्षण छोटी-मोटी चीजों में है. भारतीयों से ज्यादा जिज्ञासु कोई नहीं होता. यही कारण है कि उपमहाद्वीप पर कोई भी बस या ट्रेन की यात्र कभी भी शांत नहीं होती. बातचीत जनता के लिए उत्तेजक का काम करती है. ब्रिटेन के उलट यहां अनजान लोगों के साथ बातचीत को शिष्टाचार माना जाता है.

मीडिया चाहे कुछ भी सोचता रहे, भारतीय कभी भी भारत के बारे में मीडिया से नहीं जानते. वे कभी इस बात पर पक्का यकीन नहीं करते कि मीडिया जो सत्य उनके सामने परोस रहा है, वह तोड़ा-मरोड़ा हुआ नहीं है. उन्हें पता है कि सत्य, किसी भी सूरत में तथ्य से कहीं बड़ा है. वे राजनीति और सत्ता के बारे में एक दूसरे से बसों की सीट पर बैठ कर या ट्रेन के डिब्बे में अजनबियों से बातचीत करते हुए जानते हैं. इस जानकारी को वे फिर चाय की दुकानों या दफ्तरों के सहारे आगे फैलाते हैं. किसी अनजान व्यक्ति का कोई स्वार्थ नहीं होता है. भारत में काफी पहले से सोशल मीडिया रहा है, उससे कहीं पहले, जब तकनीक ने इसे लोगों के हाथों में पहुंचा दिया. हर भारतीय फेस (चेहरा) एक बुक (किताब) है. हर भारतीय आवाज एक ट्विटर.

भारतीय सिर्फ चुनाव सर्वेक्षणों के आधार पर अपना मन नहीं बनाते. वे जनमत का आनंद सशक्तीकरण के औजार के तौर पर लेते हैं. वे अपना समय लेते हैं, क्योंकि उनके पास इसकी कमी नहीं है. लेकिन, एक बार जब वे मन बना लेते हैं, तो उसे बदलना आसान नहीं होता है. वे लोकतंत्र के उस ढांचे से प्यार करते हैं, अभिव्यक्ति और फैसले की आजादी जिसका स्तंभ है. उन्हें मालूम है कि फैसले का दिन एक मौलिक अधिकार है, इसे न स्थगित किया जा सकता है, न समाप्त. उन्हें हर दिन मोमबत्ती जुलूसों या रैलियों की जरूरत नहीं पड़ती. एक दिन ऐसा आयेगा, जब उनका ज्वालामुखीय गुस्सा फूट पड़ेगा और इसकी जगह वे उम्मीदों में नया निवेश करेंगे. एक दिन, भारतीय अपनी दुनिया के भगवान बनते हैं. उन्हें इससे ज्यादा किस बात की दरकार है? चुनाव परिणामों को लेकर राजनेता चिंतित होते हैं, मीडिया उन्मादी हो जाता है, सरकार नाखून चबाने लगती है. मतदाता परिणामों की कभी चिंता नहीं करते, क्योंकि उन्हें इसके बारे में बहुत पहले से पता होता है.

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