पिछले दिनों हैदराबाद में एक बस दुर्घटना हुई, जिसमें 45 लोग जल कर मर गये. आग की लपटों में घिरी बस और उसमें जले लोगों की तसवीर अत्यंत भयावह थी. यह हमारे देश के लिए एक दुखद पहलू है कि अब बड़ी संख्या में मौतें सड़क दुर्घटनाओं में होती हैं.
लापरवाही और गैर जिम्मेदार होकर गाड़ी चलाने में तो भारत ने सबको पीछे छोड़ दिया है. सरकार पहले की भांति लापरवाह बनी हुई है. हैदराबाद की घटना से कई प्रश्न उठते हैं. मसलन वॉल्वो बसें जिन्हें लक्जरी बसें कहा जाता है, सुरक्षा के मानदंडों को पूरा करती हैं या नहीं. जलती बस में से बच कर निकले एक व्यक्ति ने बताया कि जब बस में आग लगी, तब लगभग सभी सो रहे थे. जब उन्हें पता चला, तो शीशे तोड़ने की कोशिश की, पर वो उसे नहीं तोड़ पाये. लक्जरी गाड़िओं में चारों तरफ के शीशे बंद होते हैं. उन्हें संभवत: खोलने का बटन ड्राइवर के पास रहता है.
लेकिन उनमें लिखा होता है कि इमरजेंसी में शीशा तोड़ दें. लेकिन हैदराबाद में हुई बस दुर्घटना में यात्रियों ने शीशे तोड़ने की कोशिश की, पर वे कामयाब नहीं हो पाये. यह एक तरह से यात्रियों के साथ चीटिंग है. नि:संदेह गाड़ी मालिक पर यात्रियों की जान के साथ खिलवाड़ का मामला दर्ज किया जाना चाहिए. हमें दूसरे पक्षों की ओर भी ध्यान देना होगा. अभी हाल में टोयोटा कंपनी ने विदेशों में बेची अपनी लाखों गाड़ियों को तकनीकी खराबी के कारण वापस मंगा लिया. ऐसी ही बहुत सी कंपनियां हैं, जिन्होंने लोगों के हित में ये कदम उठाये हैं. पर दुर्भाग्य से भारत में ऐसा नहीं है.
आये दिन कारों में आग लगने की खबरें आती हैं. ऑटोमेटिक दरवाजे आग लगने पर स्वत: लॉक हो जाते हैं. लाख कोशिशों के बावजूद वे नहीं खुलते. स्पष्ट है कि कंपनियां धड़ल्ले से लोगों के जान से खेल रही हैं. राहुल श्रीवास्तव, हजारीबाग.