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.. तो ऐसे हजम होता है गरीबों का निवाला!

सीतामढ़ीः राज्य सरकार ने खाद्यान्न योजनाओं से गरीबों को लाभान्वित कराने व खाद्यान्न का घोटाला रोकने के लिए न जाने कितने उपाय किये हैं. सरकार के स्तर से कई तरीके इजाद किये गये ताकि घोटाला रुक सके और खाद्यान्न सीधे गरीबों तक पहुंचे, पर शायद सरकार को मालूम नहीं कि अगर वह डाल-डाल पर है […]

सीतामढ़ीः राज्य सरकार ने खाद्यान्न योजनाओं से गरीबों को लाभान्वित कराने व खाद्यान्न का घोटाला रोकने के लिए न जाने कितने उपाय किये हैं. सरकार के स्तर से कई तरीके इजाद किये गये ताकि घोटाला रुक सके और खाद्यान्न सीधे गरीबों तक पहुंचे, पर शायद सरकार को मालूम नहीं कि अगर वह डाल-डाल पर है तो खाद्यान्न माफिया पात-पात पर. यानी सरकार के हर नियम व कायदों का काट माफियाओं के पास है. ये माफिया बीच का ऐसा रास्ता निकालते हैं, जिससे कि वे आराम से खाद्यान्न का घोटाला भी कर ले और पकड़े जाने का काफी कम गुंजाइस हो. यह बात अलग है कि इन्हीं माफियाओं के गुर्गे कभी-कभी नमक हरामी कर जाते हैं, जिसके चलते खाद्यान्न से भरा ट्रक का ट्रक अधिकरियों के हत्थे चढ़ जाता है. सूत्रों ने बताया कि कल हो या आज जो भी खाद्यान्न माफिया हैं, उनको विभागीय अधिकारियों का पूरा आशीर्वाद प्राप्त है. यह बात अलग है कि विभाग के कौन-कौन लोग इन माफियाओं से मिले रहते हैं, यह गहन जांच के बाद ही पता चलेगा.

घोटाले का नया तरीका

सूत्रों पर यकीन करें तो कई ऐसे डीलर हैं जो किसी-किसी माह में खाद्यान्न के लिए पैसा जमा नहीं करते हैं. हर माह की 10 तारीख तक डीलरों को पैसा जमा कर देना होता है. 10 तारीख तक खाद्यान्न माफिया सोये रहते हैं. उसके बाद वे इस खोज में लग जाते हैं कि कौन-कौन डीलर खाद्यान्न के लिए पैसा जमा नहीं किये हैं. कहा जाता है कि इसकी जानकारी देने में एसएफसी के कर्मी माफियाओं को मदद करते हैं. तब माफियाओं द्वारा उन डीलरों के नाम पर एसएफसी के खाते में पैसा जमा किया जाता है जो पैसा जमा नहीं किये होते हैं. यह सब सुनियोजित तरीके से होता है. यानी डीलर को पता भी नहीं होता है और इधर उनके नाम पर पैसा जमा कर माफिया खाद्यान्न का उठाव कर कालाबाजार में बेच देते हैं.

बताया गया है कि पैसा जमा कर माफिया बैंक से पे-इन-स्लीप लेते हैं और उस पर संबंधित एमओ से अनुशंसा करा कर एसएफसी कार्यालय में जमा कर देते हैं. अवैध तरीके से यह अनुशंसा करने के एवज में माफियाओं द्वारा एमओ को कथित तौर पर मोटी रकम दी जाती है. सूत्र यहां तक कहते हैं कि अनुशंसा के आलोक में एमओ को प्रति क्विंटल 100 रुपये मिलता है. एसएफसी से वैसे तो डीलरों को एसआइओ तीन कॉपी में निर्गत किया जाता है, जिसकी प्रति अनुमंडल कार्यालय में भी भेजी जाती है, लेकिन जो पैसा माफिया जमा किये होते हैं उसका एसआइओ मात्र दो कॉपी में निर्गत किया जाता है. यहां तक की इस दो कॉपी के एसआइओ पर किसी का हस्ताक्षर नहीं होता है और न इसमें से कोई कॉपी एसडीओ को भेजी जाती है. हस्ताक्षर होता भी है तो वह भी फरजी. खास बात एक यह कि छह माह व साल भर पूर्व भी अगर कोई डीलर खाद्यान्न का उठाव नहीं किये हैं तो इसका पता लगा कर माफिया खुद पैसा जमा कर खाद्यान्न का उठाव कर लेते हैं.

जांच होने पर खुलासा

बताया गया है कि ईमानदार तरीके से और वह भी तह तक इस खाद्यान्न के कारोबार की जांच हो तो सब कुछ खुल कर सामने आ जायेगा. सूत्र कहते हैं कि जिले के किसी भी एक प्रखंड के डीलरों के खाद्यान्न उठाव की साल भर की जांच कर ली जाये तो यह पता चल जायेगा कि साल भर में कितने माह का खाद्यान्न डीलर तो कितने माह का खाद्यान्न माफिया उठाये.

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