एक बार फिर बिहार सरकार ने किसानों से धान खरीदने की तैयारी शुरू कर दी है. 15 नवंबर से 15 अप्रैल, 2013 तक खरीदारी होगी. खरीदारी का प्राथमिक लक्ष्य 30 लाख टन रखा गया है. समर्थन मूल्य में इजाफा भी है. इस बार सूबे के किसान साधारण और ए ग्रेड के धान की कीमत क्रमश: 60 और 65 रुपये प्रति क्विंटल अधिक पायेंगे. पर, ये वे आंकड़े हैं, जो जनता के सामने दिखाये-बताये जा रहे हैं.
जमीनी स्तर पर धान खरीद की हकीकत क्या है, इसे ध्यान में रखते हुए सरकार व प्रशासन को और गंभीर होना होगा. याद रखना होगा कि पिछले वर्ष किसानों से धान खरीद की जो प्रक्रिया अपनायी गयी थी, उसका अंतिम परिणाम कैसा था? इस वर्ष की नयी खरीदारी से ठीक पहले तक पिछले वर्ष की खरीदारी का हिसाब-किताब कहां बैठ रहा है, कैसा है? 2012-13 की धान खरीद के नतीजों का ध्यान नहीं रखा गया, तो संभव है कि 2013-14 के नतीजे और भयंकर हों. ध्यान रहे कि पिछले वर्ष किसानों से जो धान खरीदा गया, उससे बननेवाला चावल अब तक पूरी तरह सरकारी एजेंसियों के हाथ नहीं आ सका है.
मिलरों के खिलाफ अब तक एफआइआर दर्ज हो रहे हैं. सवाल उठता है कि इन गड़बड़ियों में जिन मिलरों के हाथ थे, क्या प्रशासन उनकी पहचान कर सका है? अगर उनकी पहचान हो भी गयी है, तो क्या इस बार चावल तैयार करने का काम उन्हें नहीं सौंपा जायेगा? महत्वपूर्ण तथ्य है कि राज्य में चावल मिलों की पहले से ही कमी है. ऊपर से जो हैं भी, उनमें से अधिकतर के खिलाफ पिछली बार शिकायतें आ चुकी हैं. अगर धान आवंटन में इन्हें नजरअंदाज कर दिया जाये, तो इस बार चावल मिलों की संख्या और घट जायेगी. दूसरी ओर, धान खरीद का प्राथमिक लक्ष्य पिछली बार से कम भी नहीं है.
तो सवाल है कि धान आखिर दिया जायेगा किसे? पिछली बार मिलरों की ओर से भी आरोप आये. आरोप यह कि आवंटन व चावल अधिप्राप्ति में जम कर रिश्वत चला. पर, अब तक स्पष्ट नहीं है कि इस पूरी प्रक्रिया को हैंडल कर रही सरकारी एजेंसियों के कितने लोगों के खिलाफ जांच हुई और क्या कार्रवाई हुई? यदि वही मिलर और वे ही अधिकारी-कर्मचारी रहे, तो फिर नतीजे अलग कैसे होंगे? ऐसे में प्रशासन को इस बार और सतर्क होना होगा. धान आवंटन व चावल अधिप्राप्ति की प्रक्रिया की गहन निगरानी जरूरी होगी.