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।।चंचल।।(सामाजिक कार्यकर्ता) सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था. रोज की तरह आसरे की चाय की दूकान गुलजार थी. गांव के जाने-माने लोग अलसुबह घर-बार राम-भरोसे छोड़ कर चौराहे पर आ जमे थे. भट्ठी सुलग रही थी. लोग अपने-अपने यथोचित जगह पर काबिज थे. अचानक पूरब की तरफ से एक मिमियाती आवाज आयी- ‘शंकर का […]

।।चंचल।।
(सामाजिक कार्यकर्ता)

सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था. रोज की तरह आसरे की चाय की दूकान गुलजार थी. गांव के जाने-माने लोग अलसुबह घर-बार राम-भरोसे छोड़ कर चौराहे पर आ जमे थे. भट्ठी सुलग रही थी. लोग अपने-अपने यथोचित जगह पर काबिज थे. अचानक पूरब की तरफ से एक मिमियाती आवाज आयी-

‘शंकर का लिंग ले लो.. साछात हनुमान ले लो..’ चौराहे के लिए यह नया ऐलान था, चुनांचे लोगों का चौंकना लाजमी था. चिखुरी ने चश्मे के नीचे से झांका, कयूम ने गर्दन उठा कर देखा, लखन कहार को पीछे मुड़ना पड़ा, उमर दरजी को चौंकना अच्छा लगा. आसरे जो उस वक्त चाय को केतली में छान रहा था, वह भट्ठी में जा गिरी. गरज यह कि सब कि निगाह उस तरफ मुड़ गयी जिधर से यह आवाज आयी थी. जिधर से यह आवाज आयी थी, वह एक साइकिल पर था, लेकिन चढ़ कर नहीं, पैदल दोनों थे, साइकिल भी और चलानेवाला भी. अधेड़ उम्र का आदमी, जिसके रहन-सहन ने उसे वक्त के पहले ही बूढ़ा बना दिया था, खसखसी दाढ़ी, उखड़े हुए बाल, नीची तहमत ऊपर जालीदार बनियान कंधे पर लाल गमछा. उमर दरजी ने पहचान लिया- अरे ये तो असर्फी है. असरफी पथरकटा..

असराफी पथारकटा? कीन उपाधिया ने ऐसे आंखें गोल की जैसे वो नहीं जानते. लखन कहार ने परिचय दिया. असरफी..ङिांगुरी कù लड़िका. अरे वही जो गांव-गांव घूम के सील-लोढ़ा कूटता था. बड़ा मजाकिया था. गांव की औरतें उसे देखते ही घूंघट काढ़ के भितरा जाती थी. ऐसा-ऐसा मजाक करता था कि पूछो मत. चिखुरी ने असरफी को गौर से देखा-’तो यह ङिंगुरी का लड़का है? एक बात तुम लोगों को नहीं मालूम होगा, इसका बाप ङिंगुरी अपनी जवानी में पहलवान रहा, लेकिन खुराक ने उसे तोड़ दिया. बुलाओ देखो क्या बेच रहा है?’ नवल ने आवाज दिया, आइए असरफी भाई! चिखुरी काका बुला रहे हैं.. सायकिल वहीं लगा दीजिए. उसी बांस से टिका दीजिए आइए.

यहां एक गड़बड़ हो गयी. साइकिल में चूंकी ‘स्टैंड’ ना रहा, चुनांचे उसको कल्लू पंचर वाले के मड़हे की उस बांस की थून से टिकाना पड़ा, जिस पर छप्पर का पूर्वी पाख टिका पड़ा था. उधर साइकिल टिका कर असरफी दो कदम इधर बढ़े कि उधर बांस बीच से टूट गया और साइकिल नीचे गिर गयी और मड़हा झूल गया.

कोइ बड़ी दुर्घटना हो, इसके पहले ही कल्लू निकल कर बाहर भागा. साइकिल के कैरियर पर लदा सामान पानी भरे तसले में जा गिरा, पानी उछाल मारा और आराम से सो रहे करियवा कुकुर पर जा गिरा. वह ऐसे किसी हादसे का आदी नहीं था चुनांचे कों करके भागा और वहां जाकर रुका जहां कीन उपाधिया जनेऊ चढ़ाये बैठे लघुशंका कर रहे थे. कमबख्त वहां जाकर कुनमुनाया और अपने शरीर को ऐसा झटका कि तसले का जो पानी उसके कान में रुका पड़ा था, कीन की पीठ पर जा गिरा. कीन को यह बात नागवार लगी, जिस काम में लगे थे, उसे वहीं जस का तस छोड़ कर एक अद्धा उठाया और बहादुर पर दे मारा (चौराहे पर इस करियवा कुकुर को बहादुर कह कर बुलाया जाता है और वह सुनता भी है) बहादुर समझ गया था कि उसके साथ क्या हो सकता है.

लिहाजा वह तो कूद कर बच निकला, लेकिन ईंट का वह अद्धा खेलावन की दुकान पर अस्सी के स्पीड से जा पहुंचा और सामने पड़े कुम्हड़े में जा घुसा. खेलावन चौंक कर कूदे इस कूदने में उनकी धोती फट गयी. दोहरी मार से बौखलाए खेलावन ने कीन को छोड़ कर उनकी मां से किसी अचूक और अति गोपनीय क्रिया की घोषणा कर दी, जिसे किसी भी सभ्य समाज में गाली कहा और माना जाता है. बाज दफे तो इस एक जुमले पर कई लोग शहीद होते देखे गये हैं, लेकिन यह शहर तो है नहीं. शहर होता तो यह एक घटना दंगा के लिए काफी रहता, लेकिन मामला ठहरा गांव का और गांव में हर कोइ हर किसी का कुछ न कुछ लगता ही है. कीन को उनकी मां के साथ खेलावन ने जो लपेटा मारा था. उसका उन्होंने बुरा नहीं माना, क्योंकि गांव के रिश्ते में खेलावन उनका बाप लगता है. खटीक है तो क्या हुआ. यह सब पलक झपकते हुआ.

जिसकी वजह से यह सब हुआ, वह असरफी बीच डगर में ही खड़े हैं. अचानक उनको याद आया कि साइकिल तो उसी तरह उल्टी पड़ी है. असरफी लपक कर साइकिल की तरफ बढ़े और लगे उसे उठाने. लेकिन साइकिल के नखड़े कि उठने का नाम न ले. जब भी उठे उलार हो जाय. अगला पहिया कंधे के ऊपर और पिछला टस से मस्स न हो. उमर दरजी और लखन कहार दौड़े मदद के लिए, तब जाकर साइकिल सीधी हुई. इस बार गलती न दुहराते हुए साइकिल को दीवार से टिका कर तीनों चिखुरी के दरबार में पहुचे.

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