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नन्ही निशु वैज्ञानिक बन करेगी गांवों का विकास

आदित्यपुर: अगर दिल में कुछ हासिल करने का जोश व जुनून हो, तो मुश्किल हालात के बावजूद लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है. इसी को साबित किया है आदित्यपुर बनतानगर की नन्हीं छात्र निशु कुमारी ने. उसने राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित विज्ञान प्रतियोगिता में अव्वल आकर सिर्फ बनतानगर का ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य का […]

आदित्यपुर: अगर दिल में कुछ हासिल करने का जोश व जुनून हो, तो मुश्किल हालात के बावजूद लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है. इसी को साबित किया है आदित्यपुर बनतानगर की नन्हीं छात्र निशु कुमारी ने. उसने राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित विज्ञान प्रतियोगिता में अव्वल आकर सिर्फ बनतानगर का ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य का नाम रौशन किया है. इस उपलब्धि के बाद उसे बधाई देनेवालों का तांता लग गया है. निशु ने आठ-नौ अक्तूबर को दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की विज्ञान प्रतियोगिता में इस्टर्न जोन (ओड़िशा, बंगाल, बिहार व झारखंड) में प्रथम स्थान प्राप्त किया है. उसके बाद 10 अक्तूबर को दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित समारोह में उपराष्ट्रपति ने निशु को पुरस्कार के रूप में 20 हजार रुपये का चेक व प्रशस्ति पत्र प्रदान किया.

ऐसे तैयार किया मॉडल
निशु की सोच थी कि सिर्फ शहर के लोग ही पंखे व कूलर का आनंद नहीं ले सकते, बल्कि ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी पंखे व कुलर की ठंडी हवा का एहसास कर सकते हैं. उसी सोच को ध्यान में रखते हुए उसने देहाती कुलर व पवन ऊर्जा पर काम किया और मॉडल तैयार किया.

उपलब्धि में पापा व शिक्षक का सहयोग
निशु कहती है कि जिस मॉडल के कारण आज उसकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनी है, उसे तैयार करने में पापा व स्कूल के विज्ञान शिक्षक नंदीश्वर कृष्ण सिंह का काफी योगदान रहा. मॉडल तैयार करने में जिस सामान की आवश्यकता पड़ती थी, पापा लाकर देते थे. पवन ऊर्जा बनाने के लिए छोटा डायनमो खोजने में काफी परेशानी हुई. फिर भी दोनों मॉडल को 10 दिनों के अंदर तैयार कर लिया था. मॉडल की पूरी राइटप भी उसने स्वयं तैयार की, जिसे प्रतियोगिता में प्रस्तुत किया गया.

अब्दुल कलाम से मिलना सपना जैसा
निशु में बचपन से ही विज्ञान के क्षेत्र में कुछ करने जुनून दिख रहा था. वह वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम से काफी प्रभावित थी. उनकी जीवनी भी पढ़ी है. वह बताती है कि उसका सपना था कि किस तरह अब्दुल कलाम से मिल सके. यह सपना 10 अक्तूबर को दिल्ली में साकार हुआ. जब उसे उप राष्ट्रपति के द्वारा अवार्ड दिया जा रहा था तो श्री कलाम वहां मौजूद थे.

अवार्ड ने वैज्ञानिक बनने के रास्ते खोल दिये : निशु कहती है कि वैसे तो विज्ञान के क्षेत्र में कुछ करने की इच्छा थी, लेकिन वैसा कोई सहयोग नहीं मिलने के कारण नहीं कर सकती थी. इसीलिए इच्छा थी कि पढ़-लिख कर आइएएस करूंगी, लेकिन इंस्पायर अवार्ड ने जीवन का मकसद ही बदल दिया और अब वैज्ञानिक बनने के रास्ते खोल दिये हैं.

अंगरेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाने की थी इच्छा : निशु के पिता अखिलेश प्रसाद औद्योगिक क्षेत्र स्थित ओमनी ऑटो में ऑपरेटर का काम करते हैं. उनका कहना है कि निशु में बचपन से ही प्रतिभा दिखती थी. उसी को देखते हुए किसी अंगरेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाने की इच्छा थी, लेकिन आर्थिक स्थिति उतनी मजबूत नहीं होने के कारण नहीं पढ़ा सका. निशु के साथ पुत्र सूर्य नारायण सिंह को भी कुलुपटांगा स्कूल में नाम लिखवा दिया.

भारत सरकार भी देगी छात्रवृत्ति : निशु ने बताया कि भारत सरकार उसकी पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति देगी. साथ ही मैट्रिक करने के बाद उसे दिल्ली बुला लिया जायेगा, जहां उसकी पढ़ाई का सारा खर्च सरकार वहन करेगी.

फ्री कोचिंग में कर रही पढ़ाई : निशु टाटा स्टील द्वारा कुलुपटांगा में चलनेवाले नि:शुल्क कोचिंग सेंटर में पढ़ाई कर रही है. वहीं पर वह अलग से कुछ राशि देकर कंप्यूटर की भी शिक्षा ग्रहण कर रही है.

सातवीं से मिल रही स्कॉलरशिप : निशु की प्रतिभा को देखते हुए राज्य सरकार उसे सातवीं कक्षा से ही राज्य मेधा छात्रवृति दे रही है. इसके माध्यम से उसे सलाना 2000 रुपये दिये जा रहे हैं.

मां-पिता कर रहे पढ़ाई में सहयोग : निशु के पिता अखिलेश प्रसाद बीएससी (गणित प्रतिष्ठा) व मां कुंजन देवी मैट्रिक पास हैं. जिसके कारण घर में उसे पढ़ाई में सहयोग मिल रहा है.

हर अभिभावक अपनी पुत्रियों की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दें, ताकि वह भी किसी भी क्षेत्र में बेहतर कर सके. हर लड़की में कुछ करने की इच्छा होती है, सिर्फ उसे प्रोत्साहित करने की जरूरत है.
निशु कुमारी, इंस्पायर अवार्ड विजेता

निशु को अंगरेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाने की इच्छा थी, लेकिन दो बच्चे होने के कारण पढ़ाई का खर्च वहन नहीं कर सकता था. इसीलिए सरकारी स्कूल में दोनों बच्चों का नाम लिखवा दिया. लेकिन निशु में शुरू से प्रतिभा दिख रही थी. उसे किसी भी तरह वैज्ञानिक बनाना है, ताकि देश की सेवा कर सके.

अखिलेश प्रसाद, पिता
निशु से उम्मीद थी कि वह अपने परिवार के नाम को रौशन करेगी. उसी को ध्यान में रखते हुए घर में भी मैं स्वयं पढ़ाई कराती थी.
कुंजन देवी, मां

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