मुजफ्फरपुर: आजादी के बाद एक समय विकास के राष्ट्रीय मानक में बिहार तीसरे पायदान पर था. पर श्रीबाबू के निधन के बाद बिहार में एक शून्य पैदा हो गया. इसका असर सूबे के विकास पर भी पड़ा.
बिहार सामाजिक व राजनीतिक रूप से देश में सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया. इसका सीधा असर उच्च शिक्षा पर पड़ा और वह न्यूनतम स्तर तक पहुंच गया. यह हाल तब है जब सरकार कुल बजट की 23 प्रतिशत राशि शिक्षा पर खर्च कर रही है और द्वितीय व तृतीय अनुपूरक बजट में इसके 25 प्रतिशत तक पहुंचने की संभावना है.
यह बातें सूबे के शिक्षा मंत्री पीके शाही ने सोमवार को डॉ जगन्नाथ मिश्र कॉलेज में आयोजित श्रीकृष्ण सिंह जयंती समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में कही.
उन्होंने कहा कि शिक्षा मंत्री होने के बावजूद उन्हें यह स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं कि वर्तमान में सूबे के विवि में शैक्षणिक गतिविधियां मृतप्राय हो गयी है. स्थिति यह है कि जिस वीसी को समाज में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था, वे आज पीएचडी के बाह्य विशेषज्ञ की नियुक्ति, शिक्षकों के स्थानांतरण व कर्मियों की नियुक्ति के लिए पैसे मांगते फिर रहे हैं. ऐसे वीसी की संख्या कम है. पर इसके कारण सभी वीसी को लोग शक की नजर से देख रहे हैं. पिछले ढाई साल से इसमें सुधार का प्रयास हो रहा है.
सरकार का मानना था कि वीसी नियुक्ति में राज्यपाल व सरकार का आधिपत्य न हो. यह पारदर्शी हो. पर पूर्व राज्यपाल को यह मंजूर नहीं था. अब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के पक्ष को सही मानते हुए विज्ञापन के माध्यम से वीसी व प्रो-वीसी की नियुक्ति का आदेश दिया है. इसके लिए सर्च कमेटी का गठन भी किया जा चुका है.