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मैं, एलिस मुनरो

इस वर्ष का साहित्य का नोबेल पुरस्कार एलिस मुनरो के नाम दर्ज हो गया है. सिद्धहस्त कथा लेखिका के रूप में प्रसिद्ध कनाडा की एलिस साहित्य का नोबेल पानेवाली 13वीं महिला हैं. पेरिस रिव्यू व अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित साक्षात्कारों के आधार पर उनके लेखन जगत में झांकने की एक कोशिश मैं जब 21 साल […]

इस वर्ष का साहित्य का नोबेल पुरस्कार एलिस मुनरो के नाम दर्ज हो गया है. सिद्धहस्त कथा लेखिका के रूप में प्रसिद्ध कनाडा की एलिस साहित्य का नोबेल पानेवाली 13वीं महिला हैं. पेरिस रिव्यू व अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित साक्षात्कारों के आधार पर उनके लेखन जगत में झांकने की एक कोशिश

मैं जब 21 साल की थी, तब से लगातार लिख रही हूं. आज 81 साल की हूं. (इस साल यानी 82 वर्ष की उम्र में एलिस मुनरो ने लेखन से संन्यास लेने की घोषणा की). मैं बहुत धीरे-धीरे लिखती हूं. मेरे लिए लिखना हमेशा काफी कठिन रहा है.

जीवन में कई कठिनाइयां आयीं, लेकिन मेरे हिस्से में किस्मत भी थी. अगर मैं अपने से पहले की पीढ़ी के किसान की बेटी होती, तो मेरे लिए कोई संभावना नहीं होती. लेकिन, जिस पीढ़ी में मैं थी, वहां छात्रवृत्तियां थीं. हालांकि, लड़कियों को उसके लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता था, लेकिन वे उसे हासिल कर सकती थीं. मैं काफी कम उम्र में अपने लिए सोच सकती थी कि मैं एक लेखक बनूंगी. मैं आपको बता दूं कि उस समय कोई और ऐसा या इस तरह का नहीं सोचता था. लेकिन, यह कोई सपनीली राह नहीं थी. मैं जब किशोर थी तब खूब शारीरिक श्रम किया करती थी, क्योंकि मेरी मां ज्यादा काम नहीं कर सकती थी. लेकिन, यह मुझे रोकने के लिए काफी नहीं था. मुझे लगता है, यह एक तरह से मेरी खुशकिस्मती थी. अगर मैं न्यूयॉर्क में किसी काफी धनी परिवार में जन्मी होती, ऐसे लोगों के बीच, जो लेखन के बारे में सबकुछ जानते होते, तो मैं पूरी तरह से नष्ट हो जाती. लेकिन क्योंकि मेरे आसपास ऐसा कोई नहीं था, जो लिखने के बारे में सोचा करता था, इसलिए मेरे अंदर यह विश्वास आया कि ‘हां, मैं यह कर सकती हूं.’

मेरे पास लेखक बनने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था, क्योंकि कुछ और करने के लिए पैसे नहीं थे. मुझे मालूम था कि मैं यूनिवर्सिटी में सिर्फ दो साल रहनेवाली हूं. मुझे मिल रहा वजीफा दो साल के लिए ही था. यह मेरे जीवन में एक अवकाश की तरह था. जब मैं बच्ची थी, तब पूरे घर की जिम्मेवारी मेरे ऊपर थी. यूनिवर्सिटी का वक्त, एकमात्र ऐसा दौर था, जब मुझे घर का काम नहीं करना होता था. यूनिवर्सिटी का दूसरा साल खत्म होने के साथ ही मैंने शादी कर ली. मैं तब 20 साल की थी. हम लोग वैंकूवर चले गये. इस क्षण के साथ रोमांच जुड़ा था. बाहर जाने का, बसने का रोमांच.

जल्दी ही हम एक ठीक-ठाक मध्यवर्गीय जीवन जीने लगे. हम एक घर लेने और एक बच्चे के बारे में सोच रहे थे और समय गंवाये बगैर हमने ऐसा कर भी लिया. मैं सिर्फ 21 साल की थी, जब मेरा पहला बच्च हुआ. हां इस दौरान मैं लगातार लिख रही थी. जब मैं गर्भ से थी, काफी व्यग्रता के साथ लगातार लिखती रहती थी, क्योंकि मुझे यह डर था कि इसके बाद मैं कभी नहीं लिख पाऊंगी. हर बार गर्भ के दौरान इस ख्याल ने मुझे गहरे तक मथा कि मुझे बच्चे के जन्म से पहले कुछ बड़ा करना चाहिए. हालांकि, इस दौरान मुझसे कुछ भी बड़ा नहीं हुआ.

जब मेरी पहली किताब प्रकाशित हुई, उस वक्त मैं करीब 36 साल की थी. मैं ये कहानियां वर्षो से लिख रही थी. आखिरकार एक रायर्सन प्रेस नाम के एक कनाडाई प्रकाशक (बाद में इसे मैकग्रॉ-हिल ने खरीद लिया) ने मुझे खत लिखा और मुझसे पूछा कि क्या मेरे पास इतनी कहानियां हैं, जिनसे एक किताब प्रकाशित की जा सके? उनकी योजना तीन लेखकों की एक सम्मिलित किताब निकालने की थी. वैसे यह योजना शक्ल नहीं ले पायी. उन्होंने वह प्रकाशन छोड़ दिया, लेकिन मेरी कहानियां एक दूसरे संपादक के सुपुर्द कर दीं. नये संपादक ने मुझसे कहा कि अगर आप तीन और कहानियां लिख सकती हैं, तो आपकी किताब आ जायेगी. इस तरह मैंने तीन और कहानियां लिखीं, ‘इमेजेज’,‘वाकर ब्रदर्स कॉवबॉय’ और पोस्टकार्ड. इनमें से कुछ टैमारैक रिव्यू में प्रकाशित हुई, जो एक छोटी सी साहसी पत्रिका थी.

मैंने जब लिखने की शुरुआत की, उस वक्त मेरी महत्वाकांक्षा उपन्यास लिखने की थी. लेकिन मैंने कहानियां लिखनी शुरू की, क्योंकि मैं घर और बच्चों को संभालने के बीच से बहुत ज्यादा वक्त नहीं निकाल पाती थी. लिखते-लिखते मैंने कहानी का एक ऐसा फॉर्म (रूप) हसिल किया, जो कहानियों के लिए प्राय: इस्तेमाल नहीं किया जाता. मैंने परंपरा से अलग लंबी कहानियों का रूप विकसित किया. मुझे लगा कि मैं जो कहना चाहती हूं, वह लंबी कहानियों में ही मुमकिन है. यह शुरू में काफी कठिन था, क्योंकि लोग छोटी कहानियां चाहते हैं और मेरी कहानियां इस मायने में थोड़ी अलग थीं कि वे बड़ी होती जाती थीं. जो कुछ अलग तरह की बातें कहती थीं.

ज्यादातर मौकों पर मैं यह नहीं जानती कि कहानी कितनी बड़ी होनेवाली है. लेकिन मैं इसके अपना आकार हासिल करने पर आश्चर्यचकित नहीं होती हूं. उसे जितनी जगह चाहिए, मैं उसे देती हूं. वैसे भी, मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं कि मैं जो लिख रही हूं उसे क्या नाम दिया जा रहा है, उसे किस विधा के अंतर्गत रखा जा रहा है. इसे कहानी कहा जा रहा है, या कुछ और. यह अपने आप में एक कथा(फिक्शन) है और मेरे लिए इतना ही महत्वपूर्ण है.

लोग कहते हैं कि मेरी भाषा कवितामय है. मैं कविताएं आज भी यदा-कदा लिखती हूं. मुझे कविता का विचार पसंद है. लेकिन जब आप गद्य लिख रहे होते हैं, तब आपको इस बात को लेकर हमेशा सचेत रहना पड़ता है कि आप गद्य को जानबूझ कर कवितामय न बना दें. गद्य की भाषा में पैनापन होना चाहिए और अब मुझे इसी तरह लिखना पसंद है.

हां, मुझें लोक-कथाएं आकर्षित करती हैं. लेकिन, एक लेखक होने के नाते यह किसी को नहीं पता होता कि वह किस ओर आकर्षित होगा. आप पहले से कुछ तय नहीं करते. अचानक आपको एहसास होता है कि हां, मुझे यह लिखना है. यह जरूर है कि लोग जो कहानियां सुनाते हैं, मैं उन्हें ध्यान से सुनती हूं. उनकी लय को पकड़ने और फिर लिखने की कोशिश करती हूं. हम लोगों से ऐसी कई कहानियां सुनते हैं, जो जीवन की विचित्रता को बयान करती हैं. मैं ऐसी कहानियां उठाती हूं, और देखने की कोशिश करती हूं कि वे मुझसे क्या कहना चाहती हैं या फिर मैं उनसे कैसा व्यवहार करना चाहती हूं?

मुझे लोगों के साथ बातचीत, उनके जीवन में आनेवाले आश्चर्यो पर काम करना पसंद है. मेरे लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है, कि आप जिस चीज की उम्मीद नहीं कर रहे थे, वह आपके साथ हो जाये. मेरी एक कहानी ‘रनअवे’ में एक औरत जिसका दांपत्य जीवन काफी कठिनाइयों भरा रहा है, अपने पति को छोड़ने का फैसला करती है. एक उम्रदराज और तार्किक औरत की बातों से उसे ऐसा करने का हौसला मिलता है. और जब वह बाहर निकलने के लिए कदम बढ़ाती है, तो महसूस करती है कि वह ऐसा नहीं कर सकती. जबकि उसके पास उस जीवन से बाहर आने के कई कारण हैं. आखिर ऐसा क्यों होता है? मैं ऐसे विषयों पर लिखती हूं, क्योंकि मुझे यह नहीं पता कि ऐसा क्यों होता है? मेरे लिए जरूरी है कि मैं ऐसी घटनाओं की ओर ध्यान दूं. इनमें ऐसा कुछ है, जो ध्यान दिये जाने की मांग करता है.

प्रस्तुति: अवनीश मिश्र

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