आधार प्रोजेक्ट को लेकर कई तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं. सबसे बड़ा प्रश्न नागरिकों से संबंधित डाटा की सुरक्षा को लेकर जताया गया है. हालांकि यूआइडीएआइ ने स्पष्ट कर दिया है कि नागरिकों से संबंधित डाटा को पूरी तरह सुरक्षित रखा जायेगा. इस पर चिंता जाहिर करने का कोई कारण नहीं है.
पेश है वरिष्ठ पत्रकार और झारखंड स्टेट न्यूज डॉट कॉम के संपादक मनोज प्रसाद द्वारा यूआइडीएआइ के पूर्व डायरेक्टर जेनरल और झारखंड के मुख्य सचिव आरएस शर्मा से बातचीत की अंतिम किस्त.
-यदि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) को आधार से जोड़ा जाता है, तो झारखंड सरकार सार्वजनिक धन की कितनी बचत कर सकती है और कैसे?
हमारे राज्य में लोगों को सब्सिडी या दूसरे लाभ देने के लिए कई तरह की योजनाएं चलायी जा रही हैं. कुछ तो जिंस के रूप में जैसे जनवितरण प्रणाली और कृषि आदि के लिए और कुछ कैश में जैसे सामाजिक सुरक्षा पेंशन, छात्रवृत्ति, मनरेगा मजदूरी, इंदिरा आवास योजना के लिए धन आदि. हालांकि खर्च का बिल्कुल सटीक आंकड़ा बताना मुश्किल है, पर इन पर औसत वार्षिक खर्च पांच हजार करोड़ हो सकता है (केवल दो चीजों, पीडीएस पर 2500 करोड़ और मनेरगा पर 1500 करोड़ रुपये, जो कुल मिलाकर 4000 करोड़ होता है). प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) से लाभार्थियों में से फर्जी और जाली उम्मीदवारों को अलग किया जा सकेगा और यदि कम से कम 20 प्रतिशत को भी अलग किया जाता है, तो इससे एक हजार करोड़ की बचत हो सकेगी. हमने एनएसएपी (नेशनल सोशल असिस्टेंस प्रोग्राम) और पीडीएस, जिसे ट्रायल स्तर पर जहां भी लागू किया है, में पहले ही बचत को देखा है. सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह है कि यह आश्वस्त करता है कि आधार आधारित भुगतान सेवा और सर्विस डिलिवरी (उदाहरण के लिए पीडीएस) के जरिये लाभ सही आदमी तक पहुंचे. अ व्यक्ति को मिलने वाला लाभ किसी भी हालत में ब को नहीं मिल सकेगा.
–एक धारणा यह है कि अवैध रूप से रह रहे पाकिस्तानी और बांग्लादेशी प्रवासी आधार का दुरूपयोग कर सकते हैं. आपकी क्या राय है?
आधार केवल पहचान का प्रमाण पत्र है न कि योग्यता का. यह विश्व में एक ऐसा यूनिक आइडी प्लेटफॉर्म है, जहां पहचान और योग्यता की अवधारणा को तार्किक रूप से अलग रखा गया है. अब तक हमारे पास कोई विशुद्ध आइडी दस्तावेज नहीं है. आपका ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आइडी कार्ड, बीपीएल कार्ड या मनरेगा जॉब कार्ड आदि प्राथमिक रूप से योग्यता प्रदान करते हैं, ताकि आप ड्राइव कर सकें, वोट दे सकें या सब्सिडी प्राप्त कर सकें. पासपोर्ट आपका पहचान पत्र होने के साथ-साथ आपकी राष्ट्रीयता प्रमाणित करने का भी दस्तावेज है. किसी विशुद्ध आइडी के अभाव में देखें, तो ये सारे दस्तावेज सामान्य आइडी दस्तावेज के रूप में काम करते हैं, उदाहरण के लिए, हवाई अड्डे में प्रवेश का प्रमाण पत्र. इन दस्तावेजों में आइडी को जटिल रूप में योग्यता से जोड़ दिया गया है. आधार में आपके पहचान के आधार पर ये सारे एप्लीकेशन जोड़े गये हैं. इस बिंदु पर यूआइडीएआइ ने शुरू से ही कहा है कि आधार केवल पहचान का प्रमाण पत्र है. यह कहता है कि अमुक अमुक है. इसका पास वह सारा इंफ्रास्ट्रक्चर है जिससे सिद्ध किया जा सके कि अमुक अमुक है (ऑनलाइन सत्यापन के जरिये). आधार नागरिकता या आवासीय का प्रमाण नहीं है. यह आपकी योग्यता के बारे में कुछ नहीं बताता कि आप राशन पाने या दूसरे लाभ लेने के योग्य हैं या नहीं. इसलिए यह पात्रता की गारंटी नहीं देता. इसलिए यूआइडीएआइ से यह उम्मीद करना कि आधार में किसी व्यक्ति को इनरोल करने से पहले उसकी नागरिकता की जांच करे, यह उपयुक्त नहीं होगा. हालांकि दूसरे एप्लीकेशन की तरह नागरिकता भी एक एप्लीकेशन है, जो आधार के जरिये तैयार किया जा सकता है.
चूंकि अभी तक के आइडी कागजी हैं, इसलिए यह संभव है कि अलग-अलग कामों के लिए एक ही व्यक्ति अपनी अलग-अलग पहचान बताये. उदाहरण के लिए, इंश्योरेंस के लिए आप युवा बन जाते हैं, ताकि कम प्रीमियम देनी पड़े और ट्रेन यात्र के लिए (दूसरे दस्तावेजों की सहायता से) आप सीनियर सिटीजन बन जाते हैं ताकि इस केटेगरी में शामिल होकर छूट ले सकें. आधार की दुनिया में आपके पास केवल एक ही आइडी है, जो सच का एक मात्र विश्वसनीय स्रोत है.
-कुछ का मानना है कि आधार के इस्तेमाल से निजी कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ेगा. आपकी क्या राय है?
इसके उलट, आधार के कारण पूरे सर्विस डिलिवरी सिस्टम पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा. इससे सेवा प्रदाता एजेंसियां ग्राहकों के प्रति अधिक जिम्मेदार होंगी, क्योंकि पोर्टबिलिटी से शक्ति संतुलन की स्थिति होगी और यह ग्राहकों के पक्ष में होगा.निजी क्षेत्र में, इससे लेन–देन की लागत में कमी आयेगी. उदाहरण के लिए, इलेक्ट्रॉनिक केवाइसी (नो योर कस्टमर) से लोग आसानी से बैंकों में खाते खोल सकेंगे और मोबाइल कनेक्शन पा सकेंगे. केवल एक सेवा क्षेत्र मोबाइल कनेक्शन का उदाहरण लीजिए. इलेक्ट्रॉनिक केवाइसी रहने पर आपको किसी तरह के आइडी दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी. न ही उन्हें फोटोकॉपी करने, सेवा प्रदाता कंपनियों के पास जमा करने और फिर इन कंपनियों को बड़े गोदामों में रखने की जहमत उठानी पड़ेगी. आपका कनेक्शन तुरंत सक्रिय हो जायेगा. इससे स्टोरेज और मोबाइल कंपनियों के लिए फोटोकॉपी करने में आयी लागत में कमी आयेगी. सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि यह आपकी सुरक्षा में मददगार होगा क्योंकि आपके आइडी पेपर का दुरूपयोग किसी अवांछनीय व्यक्ति के लिए मोबाइल कनेक्शन लेने में नहीं हो सकेगा. एक बार जब लेन–देन की लागत में कमी आती है, तो निश्चित रूप से इसका फायदा ग्राहकों को भी लाभ होगा. इससे अर्थव्यवस्था में अनावश्यक रूप से बढ़े खर्चो में भी कमी आयेगी. इसी तरह, माइक्रो एटीएम के इस्तेमाल से कम से कम नकदी का प्रयोग होगा क्योंकि आप अपने बैंक खाता से गांव के ही दुकानदार को जो कि बैंक का बिजनेस कॉरेसपोंडेंस भी है, पैसा ट्रांसफर कर सकेंगे और इस प्रकार बैंकों और गरीबों को लेन–देन के भुगतान लागत में कमी आयेगी (बैंक तक जाने के लिए परिवहन लागत नहीं लगेगी). इसलिए यह उम्मीद जतायी जा रही है कि आधार आधारित भुगतान सेवाओं के जरिये देश की जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है. संभवत: नकदी लेन–देन को कम करने से जीडीपी में 0.5 } का योगदान हो सकता है.इसलिए मेरी नजर में, आधार से अर्थव्यवस्था के सभी पक्षों को संतोषजनक लाभ होगा, जो कि देश के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है.
–आधार के इस्तेमाल के बारे में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का क्या रुख है? क्या राज्य सरकार ने इनरोलमेंट और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के लिए कोई योजना बनायी है?
हमारे माननीय मुख्यमंत्री बेहतर गवर्नेस के लिए तकनीक के इस्तेमाल को लेकर बेहद स्पष्ट और सकारात्मक हैं. निश्चित रूप से आधार गवर्नेस में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है और उन्होंने इसके प्रयोग को लेकर बहुत समर्थन दिया है. हमलोग एक समय-सीमा के तहत काम कर रहे हैं, जिसके तहत पहली जनवरी 2014 से आधार को कई क्षेत्रों में विस्तृत किया जायेगा. हमने पहले ही 3.20 करोड़ की जनसंख्या में से 2.70 करोड़ नागरिकों को इनरोल किया है. यह लगभग 84 प्रतिशत है. हम लगातार लोगों को इनरोल कर रहे हैं और उम्मीद है कि दिसंबर के अंत तक हम 90 प्रतिशत इनरोलमेंट कर लेंगे, जो कि सभी तरह के कामों के लिए उपयुक्त होगा. हम राज्य में स्थायी इनरोलमेंट सेंटर भी स्थापित कर रहे हैं ताकि ताकि लोग आधार में इनरोल करने के लिए आसानी से इनरोलमेंट सेंटर तक पहुंच सकें.
प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना की बात करें, तो भारत सरकार ने पहले ही सात जिलों की पहचान की है. एलपीजी में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण को पहले ही चार जिलों में शुरू किया जा चुका है और एक तय समय-सीमा के अंदर पूरे राज्य में इसे लागू किया जायेगा. अगले तीन महीने में हम प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण को मनरेगा और नेशनल सोशल असिस्टेंस प्रोग्राम में भी लागू करेंगे. हमने आधार आधारित भुगतान सेवा को डाकघरों के जरिये शुरू किया, जिसका उद्घाटन हमारे मुख्यमंत्री ने 2 अक्तूबर को किया. हम इसे इस साल के अंत तक पूरे राज्य में लागू करेंगे. राज्यों में हम आधार इनरोलमेंट में सबसे आगे रहे हैं और अब हम इसके प्रयोग में भी आगे होने वाले हैं तथा साथ ही इसके सर्विस डिलिवरी क्षमता का भी भरपूर लाभ उठा रहे हैं.
-क्या राज्य सरकार झारखंड में आधार प्रोजेक्ट को लागू करने में किसी तरह की परेशानी का सामना कर रही है?
जब भी कोई नयी शुरुआत होती है, तब कई तरह की परेशानियां और बाधाएं सामने आती हैं. आधार को पहले के सभी डाटा से जोड़ा जा रहा है. हालांकि यह एक बार का ही काम है, पर बेहद आवश्यक है. लाभुकों की सूची को आधार से तैयार करना और उन्हें बैंक खाता से जोड़ना, दो महत्वपूर्ण कार्य हैं, जिसमें थोड़ा समय लगेगा. हम इस पर कड़ी मेहनत कर रहे हैं ताकि इसे एक तयशुदा समय में पूरा किया जा सके. दूसरी चुनौती अपने लोगों को इस सिस्टम के लाभों के बारे में समझाना है. कई दौर की वार्ताओं के बावजूद सरकारी व्यवस्था के ही कई लोग इसे अपने ऊपर अनावश्यक बोझ मानते हैं. यह कुछ वैसी ही स्थिति है, जब बैंक कोर बैंकिंग सोल्यूशन (सीबीएस) को अपना रहे थे और कर्मचारी बैंक खातों के डिजिटलीकरण के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे. लोग बैंकों के बीच परस्पर संबद्धता और आपसी कामकाज की संभावनाओं और देश की वित्तीय व्यवस्था में इसके महत्वपूर्ण योगदान को नहीं समझ पा रहे थे. इसी तरह, आधार और इसके डिलिवरी सिस्टम से जुड़ाव को एक रणनीतिक पहल के रूप में देखा जाना चाहिए, जिससे एक बेहतर, प्रभावी, दक्ष, अधिक पारदर्शी, सस्ता और ग्राहकों के अनुरूप डिलिवरी सिस्टम तैयार हो सकेगा और जिससे इस देश में डिलिवरी सेवाओं में बड़ा बदलाव आयेगा.
-आधार से जुड़े मामले पर क्या आप झारखंड के नागरिकों को कोई संदेश देना चाहेंगे?
मेरा मानना है कि आधार सार्वजनिक सेवा तंत्र को दुरुस्त करने की अब तक की सबसे बड़ी पहल है और अन्य सभी बदलावों की भांति, इसमें भी कई काम हैं और कई बार यह लोगों के लिए असहज भी होता है. इससे उन लोगों की आय भी घटेगी, जो सिस्टम की खामियों का लाभ उठा रहे थे. कुछ ऐसे भी मामले सामने आयेंगे, जिसमें क्रियान्वयन स्तर पर खामियों से लोगों को दिक्कतें होंगी. लेकिन ये चीजें सुधार की राह में रोड़ा नहीं बनना चाहिए. इसे हमें बरदाश्त करना होगा, क्योंकि इससे सर्विस डिलिवरी सिस्टम को बेहतर करने का रास्ता बनाया जा सकेगा. मुङो उम्मीद है कि लोग और लाभार्थी इसे समझ सकेंगे, क्योंकि अंतत: उन्हीं लोगों को आगे लाभ होने वाला है. अखबारों में कुछ ऐसी भी खबरें आ रही हैं, जिसमें बताया गया है कि कुछ बच्चे जिनके पास आधार नहीं है, उन्हें छात्रवृत्ति से वंचित किया जा रहा है. पहली बात तो मैं साफ करना चाहूंगा कि आधार के न रहने पर किसी को भी छात्रवृत्ति देने से इनकार नहीं किया जा सकेगा. हालांकि छात्रों के इनरोलमेंट के लिए सुविधाएं मुहैया करायी जा रही हैं. यह अत्यंत प्रशंसनीय है कि यदि सातवीं कक्षा के छात्र को आधार मिलता है, तो आने वाले वर्षो में जब वह उच्चतर कक्षाओं में जाता है, तो उसकी छात्रवृत्ति का नवीकरण स्वत: ही हो जायेगा. वर्तमान में किसी यूनिक आइडेंटिफिकेशन के अभाव में हम हर साल छात्रों का डाटाबेस तैयार करते हैं. लेकिन अब उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि हमें पहले ही लाभार्थियों का पता है. आधार नंबर आजीवन काम आने वाला है, जो कि बदलता नहीं और सभी तरह के लेन-देन में उपयोगी होगा. इसलिए मैं सभी से इस बदलाव में भागीदारी करने का आग्रह करूंगा.
भारत ने यूआइडी के रूप में एक महती कार्य अपने हाथों में लिया है, ताकि पब्लिक सर्विस डिलिवरी में आमूल-चूल बदलाव लाया जा सके. मेरा मानना है कि इससे हमारे डिलिवरी सिस्टम में मौलिक परिवर्तन आ सकेगा. मोबाइल की पहुंच, बायोमेट्रिक तकनीक में विकास, अंतर संबद्ध तंत्र और दूसरी तकनीकें इसे संभव बनाती हैं. मेरा विचार है कि यह सही समय है, जब हम इसे बेहतर तरीके से लागू करें.