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जीने की कला सिखाती है रामायण : प्रज्ञा भारती

गया: धामीटोला में श्री रामचरितमानस नवाह्न् पारायण यज्ञ समिति के तत्वावधान में आयोजित नवाह्न् पारायण पाठ के अंतर्गत शुक्रवार को सामूहिक रूप से सुंदर कांड का पाठ किया गया. संध्याकालीन प्रवचन में साध्वी प्रज्ञा भारती ने कहा कि रामायण जीने की कला सिखाती है व भागवत मरने की. रामायण पारिवारिक धर्म का अद्भुत शास्त्र है. […]

गया: धामीटोला में श्री रामचरितमानस नवाह्न् पारायण यज्ञ समिति के तत्वावधान में आयोजित नवाह्न् पारायण पाठ के अंतर्गत शुक्रवार को सामूहिक रूप से सुंदर कांड का पाठ किया गया. संध्याकालीन प्रवचन में साध्वी प्रज्ञा भारती ने कहा कि रामायण जीने की कला सिखाती है व भागवत मरने की.

रामायण पारिवारिक धर्म का अद्भुत शास्त्र है. इसमें पिता, पुत्र, सास, ससुर, गुरु, शिष्य, मित्र, प्रजा, राजा व भाई आदि के मर्यादित जीवन जीने का शाश्वत संदेश है. उन्होंने कहा कि मानस में राजधर्म का भी विस्तृत वर्णन है. राजा वही हो सकता है, जो प्रजा को त्रिताप से मुक्त करे. राम राज्य में वैदिक, दैविक व भौतिक ताप था ही नहीं. कोई विवाद नहीं था. वहां न डॉक्टर थे और न वकील. साध्वी ने भरत चरित्र की व्याख्या करते हुए कहा कि हमारा छोटा भाई भरत हो सकता है.

अगर, हम बड़े होकर राम बने, सास कौशल्या बनेगी, तो वधू सीता बनेगी. आचरण स्वयं करना होता है, तभी व्यक्ति और समाज प्रभावित व प्रेरित होता है. भरत का चरित्र इतना निर्मल था कि स्वयं राम अहर्निश उनका स्मरण करते थे. इस अवसर पर मुन्ना डालमिया, सुशीला डालमिया, गीता शर्मा, डॉ मुनि किशोर सिंह, अनिल स्वामी, विजय शर्मा, रामावतार धानुका आदि मौजूद थे. संचालन डॉ राधानंद सिंह ने किया.

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