पटना: मुख्यमंत्री से लेकर विभागीय सचिव तक जनता दरबार लगाया करते हैं. इसका मकसद आम लोगों को सीधे सरकार के शीर्ष स्तर पर अपनी शिकायत रखने का मौका उपलब्ध कराना और समस्याओं का तेजी से निबटारा करना है. लघु जल संसाधन विभाग में जनशिकायतों के निबटारा के आंकड़ों को देखें, तो ऐसे दरबार बेमानी साबित दिखते हैं. सभी स्नेतों से सितंबर तक विभाग को 400 मामले मिले. इनमें मात्र 29 का ही निबटारा हो सका और 371 शिकायतें अब भी लंबित हैं.
मुख्यमंत्री के यहां महीने के तीसरे सप्ताह में लघु जल संसाधन विभाग के फरियादी आती हैं. सितंबर तक विभाग के समक्ष सीएम के यहां से 33 मामले आये. इनमें से मात्र आठ का ही निबटारा किया जा सका है और 25 अब भी लंबित हैं.
कुछेक मामलों की गंभीरता को देख जनता दरबार में भी सीएम वैसे आवेदनों को अपने पास रखते हैं और फिर उनके सचिवालय से होते हुए वह विभाग को भेजा जाता है या राज्य भ्रमण के दौरान कोई जनप्रतिनिधि या आम आदमी मुख्यमंत्री को जब आवेदन देते हैं, तो उसे भी सीएम सचिवालय के माध्यम से विभाग को भेजा जाता है.
सीएम के सचिवालय से लघु जल संसाधन विभाग को 144 मामले भेजे गये. इनमें से मात्र आठ का ही निबटारा किया गया और 136 अब भी लंबित हैं. मुख्य सचिव के यहां से जुलाई में 35 मामले थे. सितंबर तक इसकी संख्या 37 हो चुकी है. विभाग ने मुख्य सचिव के जनशिकायत कोषांग से प्राप्त आवेदनों में से एक का भी निबटारा बीते तीन महीने से नहीं किया. सरकार से भाजपा के अलग होने पर अब उपमुख्यमंत्री कोई नहीं है.
16 जून से पहले तत्कालीन उपमुख्यमंत्री हर मंगलवार को जनता दरबार लगाया करते थे. वहां से विभाग को चार मामले आये. तीन महीने बाद भी इसका निबटारा नहीं हो सका. हद तो यह कि विभाग दो साल पहले की शिकायतों को भी निबटारा नहीं कर सका है. सेवा यात्रा के क्रम में मुख्यमंत्री को लघु जल संसाधन विभाग से कई मामले मिले, इसमें अब भी 64 लंबित हैं. विभागीय सचिव जनता दरबार लगाया करते हैं. सचिव के यहां से विभाग के संबंधित अधिकारियों को 117 मामले मिले. इनमें मात्र 11 का ही निबटारा हो सका है.