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बेसहारों की जिंदगी संवार रही शोभा

रांची: सड़क पर बेसहारा व लाचार बच्चों को देख दुख-संवेदना तो सभी जताते हैं, पर कुछ गिने-चुने लोग ही हैं, जो ऐसे बच्चों व महिलाओं को आश्रय देते हैं. ऐसे बेसहारा व असहाय बच्चों को आश्रय देने का काम कर रही हैं माहेर संस्था की संचालिका शोभा ओडिया. बचपन से ही महिलाओं पर होनेवाले शोषण-अत्याचार […]

रांची: सड़क पर बेसहारा व लाचार बच्चों को देख दुख-संवेदना तो सभी जताते हैं, पर कुछ गिने-चुने लोग ही हैं, जो ऐसे बच्चों व महिलाओं को आश्रय देते हैं. ऐसे बेसहारा व असहाय बच्चों को आश्रय देने का काम कर रही हैं माहेर संस्था की संचालिका शोभा ओडिया.

बचपन से ही महिलाओं पर होनेवाले शोषण-अत्याचार शोभा को झकझोर कर रख देते थे. सड़क पर बेसहारा बच्चों को देख कर उनके लिए कुछ करने की इच्छा प्रबल हो जाया करती थी. उनकी इस उत्कंठा को विराम मिला संस्था माहेर में. महाराष्ट्र में जन्मी और पली-बढ़ी शोभा पुणो की सिस्टर लुइस कुरियन द्वारा संचालित माहेर से जुड़ गयीं और ऐसे अनाथ और बेसहारा महिलाओं व बच्चों की सेवा में जुट गयीं.

शादी के बाद वर्ष 1997 में रांची आयीं. यहां महिलाओं पर हो रहे शोषण ने शोभा को कुछ कर गुरजने को प्रेरित किया. सिस्टर लुइस के सहयोग से उन्होंने वर्ष 2008 में माहेर संस्था का गठन किया. तब से लेकर अब तक भटकते बेसहारा बच्चों व महिलाओं को अपनी संस्था में आश्रय दे रही हैं. वर्ष 2008 से लेकर अब तक यहां कुल 30 बच्चे हैं. शोभा ने इन बच्चों में ऐसे संस्कार भरे हैं कि आज ये बच्चे एजी चर्च स्कूल एवं संत विंसेंट पॉल स्कूल में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीं महिलाओं को श्रेय देकर उन्हें उनके घर-परिवार तक पहुंचाने का काम कर रही हैं.

समाज भागीदारी निभायें : ये बच्चे देश के भविष्य हैं. इनकी ऊर्जा बेकार नहीं जाने देनी चाहिए. मां-बाप का आश्रय इन्हें नहीं मिला, तो इसमें इनकी कोई गलती नहीं. हम सब को मिल कर इन्हें इनसान बनाने में सहयोग करना चाहिए. ये बच्चे मुङो मां कहते हैं, तो बहुत खुशी होती है. ऐसे बहुत बच्चे हैं, जिनके सिर पर मां-बाप का साया नहीं हैं. मैं और मेरी संस्था उनकी मां हैं. समाज को चाहिए कि ऐसे बच्चों व महिलाओं का सहयोग करें. उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने में भागीदारी निभाये.

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