9.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

राहुल ने जन भावनाओं को समझा

राहुल गांधी पर प्राय: यह आरोप लगता रहा है कि वे संवेदनशील मुद्दों पर कोई प्रतिक्रि या नहीं देते और चुप्पी साधे रखते हैं. लेकिन, जब उन्होंने दागियों की सदस्यता बचाने को लेकर अपनी सरकार द्वारा लाये गये अध्यादेश को फाड़ कर फेंकने की बात कही, तो राजनीतिक गलियारे में इसके भी कई मतलब निकाले […]

राहुल गांधी पर प्राय: यह आरोप लगता रहा है कि वे संवेदनशील मुद्दों पर कोई प्रतिक्रि या नहीं देते और चुप्पी साधे रखते हैं. लेकिन, जब उन्होंने दागियों की सदस्यता बचाने को लेकर अपनी सरकार द्वारा लाये गये अध्यादेश को फाड़ कर फेंकने की बात कही, तो राजनीतिक गलियारे में इसके भी कई मतलब निकाले जाने लगे. किसी ने इसे सियासी नौटंकी कहा, तो कोई उनके बोलने के ढंग और बोलने के समय को लेकर सवाल उठा रहा है.

संभव है कि राहुल आज राजनीति करने के नये तरीके ढूंढ़ रहे हों, मगर यह भी सच्चई है कि सुप्रीम कोर्ट के सख्त फैसलों तथा दागी जन- प्रतिनिधियों के विरुद्ध मौजूदा जन-उबाल की प्रासंगिकता को बखूबी समझ कर ही उन्होंने अध्यादेश के खिलाफ बयान दिया है.

बदलते वक्त के साथ तेजी से बदलती राजनीति और सरकार से अपेक्षित जन आकांक्षाओं का भान राहुल गांधी को अब हो चुका है और शायद इसी वजह से अपनी सरकार की खामियों पर भी वह बड़ी सहजता से बगावती बयान दे डालते हैं, ठीक उसी तरह जैसे उनके दिवंगत पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया था कि दिल्ली से निकला एक रुपया किस तरह आम आदमी तक पहुंच कर दस पैसे में तब्दील हो जाता है.

राहुल यदि आम लोगों की भीड़ में घुस कर आज उनकी आवाज बनने की कोशिश कर रहे हैं, तो यकीनन यह देश की राजनीति के नये दौर में प्रवेश का संकेत है, जहां जन- आकांक्षाओं की बलि चढ़ाना अब किसी भी सरकार को भारी पड़ सकता है. राहुल चांदी के चम्मच के साथ पैदा हुए हैं, फिर भी आज जनता की समस्याओं और जनता के बीच खड़े होकर वह जिस तरह लोकतंत्र के शीर्ष आसन तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं, वह सराहनीय है.
रवींद्र पाठक, ई-मेल से

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें