गया: गया शहर के दक्षिण-पश्चिम दिशा मे ब्रह्नायोनि पहाड़ी के पास अक्षयवट के नाम से प्रसिद्ध बूढ़ा बरगद है. इसकी सही उम्र की जानकारी किसी को नहीं हैं. लेकिन, इसके जड़ व शाखाओं को देख कर लगता है कि इसने कई पीढ़ियों को देखा है. इस बूढ़े बरगद का सेहत आज भी अच्छी है. इससे जुड़ी किवदंती की याद ताजी हो जाती है. गया महात्म्य के अनुसार, इस पवित्र बरगद की सेहत का राज देवी सीता के वरदान मे छिपा है. कथा त्रेता युग की है. मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपने भाई लक्ष्मण व पत्नी सीता के साथ गया में पिंडदान करने आये थे.
आनंद रामायण में वर्णित कथा के अनुसार वनवास की अवधि पूरी करने के बाद भगवान राम अयोध्या लौटे. इसके बाद पितरों के उद्धार के लिए पिंडदान, श्रद्ध, तर्पण करने गया पहुंचे. भगवान राम श्रद्ध सामग्री लेने अपने भाई लक्ष्मण के साथ बाजार गये. देवी सीता फल्गु तट पर बैठी थी. उसी समय राजा दशरथ का हाथ फल्गु नदी मे प्रकट हुए. वह पिंड लेने के लिए तड़प रहे थे. जनक नंदनी ने अपने ससुर से कहा कि श्रीराम आ रहे हैं तब पिंडदान करेंगे. लेकिन, दशरथ की आत्मा ने कहा कि वे प्रतीक्षा नहीं कर सकते.
राजा दशरथ ने पुत्र वधु से बालू का पिंड मांगा. देवी सीता ने ससुर की आत्मा को क्षुब्ध देख फल्गु नदी, गौ, केतकी का फूल, वट वृक्ष को साक्षी मान कर बालू का पिंड बना कर दे दिया. दशरथ की आत्मा तृप्त होकर आशीर्वाद देकर चली गयी. भगवान राम जब लौट कर आये, तो इसकी जानकारी दी गयी. सच्चई की पुष्टि के लिए इन चारों गवाहों को प्रस्तुत किया गया. लेकिन, गाय, फल्गु व केतकी गलत वयानी कर दी, जबकि वट वृक्ष ने इसे सही बताया. देवी सीता ने उन तीनों को झूठ बोलने पर उन्हें शॉप दे दिया, जबकि वट वृक्ष को अक्षय होने का आशीर्वाद दे दिया. सीता के शॉप से फल्गु अंत:सलिला हो गयी. गाय विष्ट भक्षण करने लगी तथा कतकी का फूल शुभ कार्यो से वंचित कर दिया गया. लेकिन, वटवृक्ष आशीर्वाद पाकर अक्षयवट हो गया. यानी जिसका क्षय नहीं होगा.
देवी सीता का आशीर्वाद आज भी अक्षयवट पर दृष्टि गोचर होता है. किसी को सही पता नहीं है कि यह वृक्ष कितना प्राचीन है. लेकिन, यह सत्य है कि सैकड़ों नहीं हजारों वर्ष से निर्विकार भाव से खड़ा है. गया श्रद्ध में अक्षयवट की विशेष महिमा है. विभिन्न पिंड वेदियों पर पिंडदान, श्रद्ध व तर्पण करने के बाद गयापाल पुरोहितों के द्वारा इसी वृक्ष के नीचे ही अपने यजमान को सुफल प्रदान करते हैं और अक्षय होने का आशीर्वाद देते हैं. इसके बाद ही गया श्रद्ध का समापन होता है.