किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने का अगर संकल्प दृढ़ हो तो सपनों व उम्मीदों की जीत निश्चित है. अभी झारखंड की हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार ‘भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था’ का ध्येय उद्घोष कर, लोगों में भरोसा जगाने में लगी है. युवा मुख्यमंत्री के भरोसे पर लोगों को भी भरोसा है. पर हो क्या रहा है? यह एक चिंतनीय सवाल है. खुद उनके मंत्रिमंडल के ऊर्जा सह वित्त मंत्री राजेंद्र सिंह ने रांची फेडरेशन चेंबर के वार्षिक समारोह में माना कि जहां ‘वाणिज्य कर विभाग व्यापारियों को तंग (?) कर रहा है, वहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड राज्य का भ्रष्टतम बोर्ड है’.
स्पष्ट है कि कोई भी जिम्मेवार पद पर आसीन व्यक्ति बगैर किसी ठोस आधार के डंके की चोट पर ऐसी बातें नहीं कहेगा. यह सही है. पर यहीं यह अहम यक्ष प्रश्न भी खड़ा होता है कि ऐसी परिस्थिति को खत्म करने की पहल कब होगी? कैसे होगी? जग जाहिर है कि राज्य प्रदूषण बोर्ड की ही बात हो, तो काफी कुछ कहा-सुना जा रहा है. यहां तक कि बोर्ड के चेयरमैन मणि शंकर कांग्रेस के नेता हैं. पार्टी के राज्य अध्यक्ष की ओर से लगातार त्यागपत्र देने को कहा जा रहा है. मणि शंकर त्याग-पत्र देने के लिए थोड़ी मोहलत मांग रहे हैं और दूसरी ओर पार्टी अध्यक्ष को चुनौती भी दे रहे हैं.
यही नहीं, मोहलत व मुरव्वत की बेला में भी वह न केवल बड़े-बड़े फैसले ले रहे हैं, बल्कि रोज ट्रांसफर-पोंस्टिंग भी कर रहे हैं. चेयरमैन महोदय, मंत्री जी के दल से ही सरोकार रखते हैं. ऐसे में ‘13 साल बनाम 13 माह’ का नारा उछालनेवाले स्वयं ही उसे कुतरते नजर नहीं आ रहे? इसी तरह अन्य विकास और कल्याणकारी योजनाओं में भी भ्रष्टाचार देखा जा रहा है. हर मंत्री भ्रष्टाचार पर बात कर रहा है, लेकिन कार्रवाई करता कोई नजर नहीं आ रहा. स्वास्थ्य मंत्रालय में उपकरण खरीद का मामला हो या कृषि बीज खरीद घोटाले का मामला, भ्रष्टाचार रोकने की कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है.
सिर्फ बातों से कुछ होनेवाला नहीं है. तय है कि सत्ता में बने रहने के लिए चाहे जैसे और जितने जुगाड़-जतन हों पर विकास की ओर बढ़ने की यह शैली कहीं से आम लोगों को आश्वस्त नहीं करती. जरूरत है कि लोगों की उम्मीदों पर यह सरकार खरी उतरे. कथनी व करनी के दिख रहे अंतर को भरोसे की ऊंचाई में तब्दील करे.