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।।अनुज कुमार सिन्हा।। झारखंड के लिए सुकूनवाली खबर. राज्य बनने के बाद पहली बार झारखंड के साथ कुछ न्याय हुआ है. रघुराम राजन कमेटी ने केंद्र को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें झारखंड को देश के उन 10 राज्यों में शामिल करने की अनुशंसा की गयी है, जो सबसे कम विकसित राज्य हैं. कम विकसित […]

।।अनुज कुमार सिन्हा।।

झारखंड के लिए सुकूनवाली खबर. राज्य बनने के बाद पहली बार झारखंड के साथ कुछ न्याय हुआ है. रघुराम राजन कमेटी ने केंद्र को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें झारखंड को देश के उन 10 राज्यों में शामिल करने की अनुशंसा की गयी है, जो सबसे कम विकसित राज्य हैं. कम विकसित राज्यों की सूची में झारखंड से पहले ओड़िशा, बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के नाम हैं. झारखंड पांचवें स्थान पर है. यानी अब बिहार के साथ-साथ झारखंड को विशेष केंद्रीय सहायता मिलना तय है. बार-बार बिहार को विशेष राज्य का दरजा देने की बात तो उठ रही थी, पर झारखंड कहीं चर्चा में भी नहीं था.

केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला ने तो संसद में कह दिया था कि झारखंड को विशेष राज्य या विशेष पैकेज नहीं मिलेगा. वह क्षण झारखंड के लिए दुखदायी थी. झटका लगा था. गरीब राज्य, पैसे की कमी, अर्थव्यवस्था चौपट, आय के साधन नहीं के बराबर और केंद्र का ऐसा तीखा रुख . नेता तो पहले चुप बैठ गये. पर प्रभात खबर चुप नहीं बैठा रहा. झारखंड की उपेक्षा और झारखंड को विशेष राज्य/सहायता का मामला तो कई सालों से प्रभात खबर उठाता रहा, पर इसी वर्ष अप्रैल में प्रभात खबर ने लंबा अभियान छेड़ दिया. 21 अप्रैल 2013 के अंक में प्रभात खबर ने राज्य का आंकड़ा देते हुए अभियान छेड़ा.

राजनीतिक दलों, नेताओं को सक्रिय किया. उद्यमियों, बुद्धिजीवियों और अर्थशास्त्रियों को जोड़ा. लोगों को बताया कि क्यों झारखंड को विशेष पैकेज मिलना चाहिए. झारखंड के जो हालात हैं, उसमें बगैर बड़ी केंद्रीय सहायता के राज्य चल नहीं सकता. झारखंड का हक बनता है. उसे मिलना ही चाहिए. यह कह कर कि झारखंड में खनिज भरे पड़े हैं, कोयला-लोहा की भरमार है, केंद्र बच नहीं सकता. राज्य को चलाने के लिए पैसा चाहिए, अपना राजस्व चाहिए. झारखंड में आय के स्त्रोत बढ़ नहीं रहे हैं, अंदरूनी हालात ऐसे हैं कि नयी कंपनियां नहीं आ पा रही हैं, केंद्र रॉयल्टी नहीं बढ़ा रहा, झारखंड में जो कंपनियां कार्यरत हैं भी, उनका टैक्स दूसरे राज्यों में जमा होता है, ऐसे में झारखंड को उसका हिस्सा मिल नहीं पाता. यह हिस्सा भी झारखंड को मिलना चाहिए. झारखंड को भले ही कम विकसित राज्यों की श्रेणी में स्थान मिल गया हो, पर जब तक उसे बड़ी राशि नहीं मिलती, राज्य का बहुत भला नहीं होगा. हां, पहले जहां राज्य को 0.3 फीसदी राशि मिलती, अब वह बढ़ कर 3.88 फीसदी हो जायेगी. यूपी (16.41 फीसदी), बिहार (12.04 फीसदी) की तुलना में यह बहुत कम है. अभी राज्य में कांग्रेस के सहयोग से सरकार चल रही है. अगर कांग्रेस चाहे तो झारखंड को मिलनेवाली राशि और बढ़ा सकती है, पर इसके लिए केंद्र पर दबाव बनाना होगा.

राजनीतिक दलों ने भी अपना दायित्व निभाया. भाजपा, आजसू, जेवीएम, झामुमो सभी ने इस मामले को उठाया. अर्जुनमुंडा ने दस्तावेज के जरिये मामले को आगे बढ़ाया, जबकि आजसू के सुदेश महतो इस मामले को लेकर सड़क पर उतर गये. धरना-प्रदर्शन किया. जिलों तक इसे ले गये. बाबूलाल मरांडी ने इसे चुनावी मुद्दा बनाने की बात की. खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस मामले में प्रधानमंत्री से मिले. गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे तो कमेटी के चेयरमैन डॉ रघुराम राजन से मुलाकात कर बिहार के पहले झारखंड को विशेष पैकेज देने की मांग रख दी. यानी कांग्रेस को छोड़ कर एक तरह से पूरा झारखंड इस मामले पर एक रहा. एक कांग्रेसी मंत्री ने साफ-साफ कह दिया था कि झारखंड को विशेष सहायता नहीं मिलनी चाहिए. ऐसे मंत्रियों को जनविरोधी मंत्री कहने में हिचक नहीं होना चाहिए. रहेंगे झारखंड में, खायेंगे झारखंड में और राज्यहित के विरोध में बयान भी देंगे.

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