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वेतन में गैर-बराबरी का निदान भी जरूरी

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव नवंबर में हैं. लोकसभा चुनाव भी अगले साल अप्रैल-मई तक होने के आसार हैं. ऐसे में यूपीए-2 सरकार ने सातवें वेतन आयोग के गठन को हरी झंडी दी है, तो माना जायेगा कि उसने केंद्र सरकार के तकरीबन 50 लाख कर्मचारियों और 30 लाख पेंशनभोगियों के परिवारों को बतौर मतदाता […]

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव नवंबर में हैं. लोकसभा चुनाव भी अगले साल अप्रैल-मई तक होने के आसार हैं. ऐसे में यूपीए-2 सरकार ने सातवें वेतन आयोग के गठन को हरी झंडी दी है, तो माना जायेगा कि उसने केंद्र सरकार के तकरीबन 50 लाख कर्मचारियों और 30 लाख पेंशनभोगियों के परिवारों को बतौर मतदाता अपनी तरफ खींचने का प्रयास किया है.

हालांकि मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश गलत नहीं है, बशर्ते इससे चुनावी आचार-संहिता का उल्लंघन नहीं होता हो. लेकिन, इस मामले में गैर-बराबरी का सवाल शेष रहता है, क्योंकि मतदाताओं को लुभाने के प्रयास जिस बेहतरी से सत्ताधारी पार्टी कर सकती है, उस तरह से शेष दल नहीं. बात मतदाताओं को लुभाने के मामले में पार्टियों की गैर-बराबर हैसियत से आगे बढ़ कर भारत में विभिन्न उत्पादक हलकों से जुड़े कामगारों के बीच बढ़ रही गैर-बराबरी तक भी जाती है. इस गैर-बराबरी का एक पक्ष केंद्र और राज्य के कर्मचारियों के बीच वेतन और पेंशन के अंतर से जुड़ता है तो दूसरा पक्ष सरकारी कर्मियों की तुलना में निजी क्षेत्र या अनियोजित क्षेत्र में काम करनेवालों से.

छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को मान लेने (2008) के बाद केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन एकबारगी काफी बढ़ गये थे. दबाव में ज्यादातर राज्यों ने भी छठे वेतन आयोग की सिफारिशों पर थोड़े बदलाव के साथ अमल किया और राज्यों के कर्मचारी भी वेतन व सुविधा के मामले में केंद्रीय कर्मचारियों के लगभग बराबर हो गये. लेकिन कुछ राज्य संसाधन की कमी के कारण इन सिफारिशों को अब तक लागू नहीं कर पाये हैं और उनके कर्मचारियों को पुराने वेतनमान से संतोष करना पड़ रहा है. गैर-बराबरी का दूसरा पक्ष इससे कहीं ज्यादा संगीन है.

देश में मौजूद कुल नौकरियों का 10 फीसदी से भी कम अर्थव्यवस्था के नियोजित क्षेत्र में है, शेष नौकरियां अनियोजित क्षेत्र में हैं, जहां मजदूरी, अवकाश, काम से जुड़ी सामाजिक सुरक्षा आदि की कोई गारंटी नहीं होती. एक ऐसे वक्त में जब सरकार खुद गैर-उत्पादक खचरें में कमी करने और संयम बरतने की बात कह रही है, एक और वेतन आयोग के गठन की मंजूरी देकर उसने देश में मौजूद आयगत असमानता की खाई को और बढ़ाने का भी काम किया है.

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