।।अवधेश कुमार।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमला नया नहीं है, लेकिन अब यह कुछ वर्ष पूर्व की तरह आम नहीं है. इसलिए जब भी ऐसी घटना होती है, चिंता बढ़ती है. जिस तरह सेना की वर्दी पहने आतंकियों ने सुबह पहले जम्मू में कठुआ के हीरानगर पुलिस स्टेशन में घुस कर अंधाधुंध गोलियां चलायीं और फिर बाद में सांबा में सेना की कैंप पर हमला किया, उसे आज के हालात में बड़ा आतंकी हमला मानना होगा. तीन-चार आतंकी पुलिस थाने में घुस कर हमला करें और वहां से फिर सेना शिविर तक जाकर खून और विध्वंस का खेल खेलें, यह किसी दृष्टि से छोटी घटना नहीं मानी जा सकती. इसमें तीन बातें साफ हैं. पहला, ये आत्मघाती हमलावर थे. दूसरा, यह औचक हमला नहीं था, इसकी पूर्व तैयारी की गयी थी. तीसरा, आतंकी संदेश देना चाहते हैं कि वे भारत-पाक के अच्छे रिश्ते की कोशिशों को सफल नहीं होने देंगे.
पुलिस अधिकारी कह रहे हैं कि चूंकि सुबह पौने सात बजे आतंकी सेना की वर्दी पहने एक ऑटोरिक्शा में हीरानगर पुलिस स्टेशन के पास पहुंचे, इसलिए पुलिसकर्मियों ने सोचा कि ये सेना के जवान होंगे. थाने के भीतर पहुंचते ही उन्होंने गोलियों की बौछार शुरू कर दी. जब तक पुलिसकर्मी कुछ समझते और जवाबी गोलीबारी करते, वे अपना काम कर निकल चुके थे. निस्संदेह, आत्मघात का संकल्प ले चुके किसी आतंकवादी को रोकना आसान नहीं है. पर जब भी भारत-पाकिस्तान के नेताओं के मिलने का अवसर होता है, आतंकी हमला करके विरोध जताते हैं. सेना एवं पुलिस को सूचना दी जा चुकी थी कि अमेरिका में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच मुलाकात निश्चित है. वैसे तो जम्मू-कश्मीर में तैनान सेना और पुलिस के लिए हमेशा अनौपचारिक रेड अलर्ट रहता है, पर इस सूचना के बाद जितनी चौकसी और सतर्कता रहनी चाहिए, उसमें कमी रह गयी.
ध्यान रहे, पिछले 25 जून को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के कश्मीर दौरे की पूर्व संध्या पर भी आतंकियों ने श्रीनगर के भीतर और बाहर दो जगह हमले किये, जिसमें आठ जवानों की जानें गयी थी और 19 घायल हो गये थे. उस समय अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी भी भारत दौरे पर थे. हिजबुल मुजाहिद्दीन ने तब इसकी जिम्मेवारी लेते हुए आगे भी हमले जारी रखने की धमकी दी थी. इतना ही नहीं, दो दिन पहले ही गृह मंत्रालय ने पूरे देश के लिए आतंकवादी खतरे की चेतावनी जारी की है. भारतीय खुफिया एजेंसियों ने सीमापार से कश्मीर के कुछ इलाकों में किये गये फोन कॉल्स भी पकड़े हैं. इसके अनुसार पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकी साजिशें रची जा रही हैं.
तो भारत-पाक नेताओं के मिलने की पृष्ठभूमि में होनेवाले हमले की परंपरा, हिजबुल मुजाहिद्दीन की घोषणा, गृह मंत्रलय की चेतावनी के बावजूद ये उन्मादी तत्व सुरक्षा के लिए जिम्मेवार पुलिस और सेना पर हमला करने में सफल रहे. पता नहीं हमारे सुरक्षा रणनीतिकारों ने पिछले 17 दिसंबर को अलकायदा नेता अयमान अल जवाहिरी द्वारा जिहादियों के लिए जारी निर्देशों को कितनी गंभीरता से लिया? जवाहिरी ने जिहादियों से कहा था कि जंग लड़ना उनका अधिकार है. कश्मीर से लेकर रूस के कॉकेकस तक, इजरायल से लेकर चीन के शिनजियांग तक जिहादियों को संघर्ष करना चाहिए. हालांकि जवाहिरी ने मजजिदों और बाजारों पर आतंकी हमले बंद करने और इसलामी देश में रहनेवाले हिंदुओं या अन्य धर्मावलंबियों पर हमले न करने की भी अपील की थी. आतंकी शेष निर्देश का कितना पालन करेंगे यह कहना कठिन है, लेकिन कश्मीर में जेहाद जारी रखने के उसके निर्देश को हमें और गंभीरता से लेने की आवश्यकता है. कश्मीर में विश्व भर के आतंकवादियों के लिए संघर्ष करने का यह अलकायदा की ओर से सबसे अंतिम निर्देश है.
हीरानगर थाना पाकिस्तान के साथ लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर है. सीमा पार से आनेवाले आतंकवादियों के वहां तक पहुंचने की आशंका हमेशा बनी रहती है. सीधे टैम्पो से हीरानगर थाना पहुंचना और वहां कार्रवाई करके सांबा तक चले जाना यूं ही नहीं हो सकता. स्थानों की रेकी पहले की गयी होगी, फिर योजना बना कर आत्मघाती हमलावर तैयार किये गये होंगे.
अभी 18 सितंबर को रक्षा मंत्रलय के प्रवक्ता ने बताया था कि इस वर्ष उस दिन तक पाकिस्तान की ओर से 96 बार युद्ध विराम का उल्लंघन किया गया. हाल के दिनों में कई बार सेना द्वारा आतंकवादियों के अड्डों को पकड़ने और हथियार, गोला-बारूद बरामद करने की खबरें आयी हैं. पाकिस्तानी सेना और सत्ता के कुछ तत्व हर हाल में कश्मीर को हिंसाग्रस्त बना कर दोनों देशों के बीच तनाव कायम रखने की नीति पर चल रहे हैं. यह हमारे लिए नया तथ्य नहीं है. लेकिन जब तक हम ईमानदारी से यह स्वीकार नहीं करेंगे कि ये हमले हमारी अपनी दुर्बलताओं के भी नतीजे हैं तब तक हमारी दशा ऐसी ही रहेगी. इस घटना में भी हमें अपने-आपसे यह प्रश्न करना चाहिए.