नयी दिल्ली : केंद्र सरकार ने दोषी पाये गये सांसदों व विधायकों को अयोग्य करार देने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निरस्त करने वाले अध्यादेश को मंगलवार को मंजूरी दे दी. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय का प्रस्ताव मंजूर किया गया.
इस अध्यादेश से अब सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश लागू नहीं को सकेगा, जिसमें कहा गया है कि दो साल या उससे अधिक की सजा के प्रावधान वाले अपराधों में दोषी पाये गये सांसदों और विधायकों को अयोग्य करार दिया जायेगा. मतलब यह कि अब सजायाफ्ता जनप्रतिनिधि चुनाव लड़ पायेंगे और सदस्यता भी नहीं जायेगी.
* बिल नहीं हुआ था पारित : सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए सरकार ने संसद के मॉनसून सत्र में कानून में संशोधन का प्रस्ताव किया और जन प्रतिनिधित्व (दूसरा संशोधन) विधेयक 2013 राज्यसभा में पेश किया. हालांकि विधेयक पारित नहीं हो सका. इसे संसदीय समिति के विचारार्थ भेजा गया.
* कैबिनेट व राष्ट्रपति की मिली मंजूरी
* अध्यादेश में क्या
जनप्रतिनिधि अधिनियम के अनुच्छेद–आठ के उप अनुच्छेद (4) में एक प्रावधान जोड़ा गया है, जो कहता है कि यदि 90 दिनों के भीतर अपील दाखिल कर दी जाती है और अदालत ने दोषसिद्धि व सजा पर स्थगनादेश दिया है तो दोषी सांसद या विधायक को अयोग्य नहीं ठहराया जायेगा. हालांकि ऐसे सांसद या विधायक न तो मतदान करने के लिए अधिकृत होंगे और न ही वेतन या भत्ते ले सकेंगे.
* सुप्रीम कोर्ट ने कहा था
सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को अपने फैसले में कहा था की यदि किसी सांसद या विधायक को आपराधिक मामलों में दोषी पाये जाने पर दो साल से अधिक की सजा होती है तो उनकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से रद्द हो जायेगी. साथ ही सजा पूरी कर लेने के बाद भी वे छह साल तक चुनाव लड़ने के अयोग्य माने जायेंगे.
* जेल में रह कर लड़ सकेंगे चुनाव
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उस विधेयक को मंजूरी प्रदान कर दी है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को दरकिनार कर जेल से चुनाव लड़ने के अधिकार को बरकरार रखने का प्रावधान है. जन प्रतिनिधि (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) कानून 2013 में शीर्ष न्यायालय के उस निर्णय को नकार दिया गया है, जिसमें कहा गया था कि जेल में बंद व्यक्ति जन प्रतिनिधि कानून के तहत वोट नहीं डाल सकता. लिहाजा वह चुनाव लड़ने के योग्य नहीं है. संशोधन 10 जुलाई से प्रभावी होगा, जिस दिन कोर्ट ने फैसला सुनाया था.