-दुष्कर्म की घटनाओं ने बढ़ायी बेटियों की सुरक्षा की चिंता
-गांव की महिलाएं बाल विवाह कराने को मजबूर
।।विनोद पाठक।।
गढ़वाः दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं ने ग्रामीण इलाकों में खासकर गरीब व अशिक्षित परिवार की लड़कियों को फिर से नाबालिग अवस्था में ही शादी कर देने के लिए प्रेरित किया है. बेटियों की सुरक्षा से चिंतित ग्रामीण महिलाएं बाल विवाह कराने को मजबूर हो रही हैं. इस हकीकत को गढ़वा जिले के सगमा प्रखंड के सोनडीहा गांव में देखा जा सकता है. हाल यह है कि सोनडीहा पूर्वी टोला जैसे छोटे से गांव में पांच से 15 साल की 25 से अधिक बच्चियों की शादी हो चुकी है. यह आंकड़ा वर्ष 2008 से अब तक का है.
लोग बाल विवाह कराने को मजबूर : ‘घर में खेलत रहे गोटी, अब ससुराल में बेलत बा रोटी’, यह पंक्ति गांवों में व्याप्त बाल विवाह पर खुद बच्ची की मां के मुंह से सुनने को मिलती है. इस प्रथा को रोकने के लिए अन्य कई सामाजिक एवं सरकारी संगठनों के साथ महिला सामाख्या सोसाइटी के बैनर तले भी प्रयास किया गया. इसमें काफी हद तक सफलता भी मिली थी, पर दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं से यहां 15 साल से पहले ही बेटियों की शादी आम बात होती जा रही है.
महिला समूह भी समर्थन में : इस गांव में महिला सामख्या सोसाइटी से जुड़ कर काम करनेवाले महिला समूह जो कभी बाल विवाह के खिलाफ अभियान चला रहे थे, आज बाल विवाह को ही उचित ठहराने में जुट गये हैं. यहां बेटियों के रिश्ता के लिए अभिभावक पांच वर्ष के बाद से ही गंभीर हो जाते हैं. पहले इस पर रोक लगी थी, लेकिन बढ़ रहे यौन उत्पीड़न की घटनाओं ने इनको फिर वहीं लाकर खड़ा कर दिया. यहां कार्यरत दुर्गा, कमला, चमेली व विकास नामक चार समूहों में इस मुद्दों पर एकजुटता है कि क्यों न बच्चियों की शादी 12 वर्ष तक कर दी जाये. इससे बेटियों की सुरक्षा को लेकर निश्चिंत तो हो जायेंगे. शनिवार को इन समूहों के चार वर्षो के मूल्यांकन के दौरान बाल विवाह रोकने के प्रयासों पर जब चर्चा हुई, तो सभी महिलाओं का कुछ ऐसा ही स्वर था.
पांच वर्ष में शादी व 10 वर्ष में दोंगा
चमेली महिला समूह की सहोदरी देवी ने अपनी बेटी की शादी पांच वर्ष में ही कर दी थी. 10 वर्ष में उसका दोंगा हुआ. अभी वह 18 वर्ष की होगी. तीन बच्चों की मां बन चुकी है. स्थिति यह है कि तीनों बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. खुद भी बीमार रहती है. उसका पूरा जीवन ही जैसे पहाड़ हो चुका है. जब पूछा गया कि बेटियों पर ऐसा आप क्यों जुल्म कीं, तो उसने बताया कि शादी करके वह निश्चिंत हो जाना चाहती है. यह स्थिति एकमात्र सहोदरी देवी की नहीं है, बल्कि पूरे समूह की महिलाएं इस बात का समर्थन कर रही हैं.
अभियान चलाने में भी परेशानी : सामाख्या सोसाइटी की जिला संसाधन सेवी शिलवंती हेरेंज व प्रशिक्षिक रू पम तिवारी कहती हैं कि यौन उत्पीड़न की बढ़ रही घटनाओं ने बाल विवाह के खिलाफ अभियान चलाने में परेशानी खड़ी कर दी है. ग्रामीण महिलाएं बेटियों पर किसी की नजर लगे, इसके पहले ही नाबालिग अवस्था में ही शादी करना उचित ठहरा रही हैं. यद्यपि उनका संगठन इस भ्रम को दूर करने का प्रयास कर रहा है.
क्या हैं कारण
– दुष्कर्म की घटनाओं ने महिलाओं में पैदा किया डर
– नाबालिग में ही बेटियों की शादी को उचित ठहरा रही हैं
– पांच वर्ष के होते ही बेटी की शादी के लिए बेचैन हो रही हैं
बेटी सुरक्षित कइसे रही
महिला समूह की चमेली देवी कहती हैं : शादी करे में 18 साल होखे के अब कोई नइखे मानत. इहां त चौदहे-पंद्रह बरिस में लक्ष्के के साथ गलत होखे लागत बा. कइसे कोई मानी. संत- महात्मा सबके त नीयत एके जइसन देखत ही. बेटी सुरक्षित कइसे रही.
क्या है कानूनः बाल विवाह कराने, इसके लिए उकसाने या अन्यथा मदद करने या उसमें शामिल होने, उसे रोकने में विफल रहने या इसे प्रोत्साहित करने में दोषी पाये जाने पर अभिभावक , किसी व्यक्ति या संगठन से जुड़े लोग को अधिकतम दो साल का सश्रम कारावास व एक लाख रुपये तक के जुर्माने या दोनों की सजा मिल सकती है. यह अपराध संज्ञेय तथा गैर जमानती है.