दिल्ली के साकेत कोर्ट ने आखिरकार एक बहुप्रतीक्षित फैसला सुना दिया. वह पल मन को छू गया. हम इसीलिए खुश हैं कि चलो, अब फिर ऐसा होगा तो दोषियों को कम से कम फांसी तो होगी! वहीं, यह कचोट भी है कि क्या बार-बार ये घटनाएं दोहरायी जाती रहेंगी? हम लोग अपनी मानसिकता कब बदलेंगे?
कब महिलाएं भी सम्मान की हकदार होंगी? दामिनी को न्याय मिला, उसका स्वागत, पर चिंता अभी शेष है. कोशिश तो यह होनी चाहिए कि ऐसी परिस्थितियां जन्म ही न लें. अपने घर-परिवेश, समाज और जीवन में एक सही बदलाव लायें. नयी पीढ़ी को जीवनमूल्यों से परिचित कराया जाये. उन्हें आदर्श, न्याय, अनुशासन और गरिमा के संस्कारों का नया पाठ पढ़ाया जाये. इस बदलाव से ही कोई उम्मीद बनेगी, वरना ऐसे दरिंदों के लिए फांसी से भी बड़ी सजा की खोज करनी होगी.
पद्मा मिश्र, जमशेदपुर